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भारत और एशियाई देशों के नेतृत्व में विश्व रचना की नई  पहल

विश्व को अहिंसक  बनाने की दिशा में एशियाई देशों के साथ भारत की पहल

विश्व के लिए मानवतावादी शांति चिंतक प्रो.पुष्पित अवस्थी

प्रो.पुष्पित अवस्थी
अध्यक्ष
हिंदी यूनिवर्स फाउंडेशन
गार्डियन आफ अर्थ एंड ग्लोबल कल्चर नीदरलैंड्स, यूरोप

   सम्पूर्ण एशिया वंदनीय है। श्रमजीवी मानव समाज से समृद्ध है। खेती और प्रकृति जीवन की मूल शक्ति है।गत कुछ वर्षो से जब से यूरोप में आर्थिक तंगी ,कोरोना   और उसके बाद सत्ता शाहियो के पद   मद से युद्धों की राजनीति ने अंगड़ाई ली है। एशिया महाद्वीप की सांस्कृतिक और प्राकृतिक शक्तियां मनुष्यता की पक्षधर होकर सामने प्रकट हो रही हैं।

यूरोपीय देश, इस  समय युद्ध के चक्रव्यूह में इस  तरह से ग्रस्त है कि  राजनीति, आर्थिक और सांस्कृतिक स्तर पर इनकी छवि दिन ब दिन क्षत विक्षत होती नजर आ रही है। अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के द्वारा सारे बौद्धिक योगासन और समझोतो निमित्त शीर्ष आसन करने के बावजूद रूस और यूक्रेन में युद्ध विराम नहीं हो सका और  उधर गाजा और इजराइल ने युद्ध छेड़ दिया।  इधर प्रकृति भी यूरोप और अमेरिका से खुश नहीं है।

जैसे उनके मांसाहारी जीवन शैली का प्रतिरोध करने के निमित्त उसने भी अपने मौसम के सारे विधान ही उल्ट पलट दिए हैं। ऐसे में, गहरे अर्थों में विश्व में सर्वाधिक आबादी वाला भारत देश  एशियाई देशों के शांति प्रिय प्राकृतिक मूल्यों का नेतृत्व करने में सक्षम दिख रहा है।

इंडोनेशिया, बाली, थाइलैंड जैसे द्वीप समूह में आज भी प्राचीन आर्य और भारतीय संस्कृति की चिन्ह है, जिनसे श्रीराम संस्कृति और मानवीय संस्कृति की खुशबू आती है। मरिश्स फिजी,जैसे भारत वंशी द्वीप  भारती संस्कृति के आज भी दीप द्वीप बने हुए मनुष्यता का प्रकाश फैला रहे है। श्री राम का जीवन  चरित्र ने इन देशों के नागरिकों को अपना भक्त बना  दिया है जबकि पश्चिमी देश भौतिकता के जाल में इस तरह फंस गए कि उन्हें मुक्ति के लिए प्रकृति सम्मत रास्ता मिलना कठिन हो गया है।

ऐसे में भारत देश की अपनी शक्तियों की नियत से स्पष्ट है कि एक ओर उनके पास युद्ध के विरुद्ध होने की राजनीतिक और शासन की आचरण संहिता  है तो दूसरी ओर मानव धर्म की तुला पर सम्पूर्ण विश्व को एक करने की शक्ति है।

जिस तरह शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योग दिवस के रूप में पूरे विश्वको एक कर लिया  है वैसे ही मन मानस की शक्ति के लिए प्रकृति सम्मत होने का  रास्ता दिखा देगा।

एशियाई देशों में भारत उन देशों की सांस्कृतिक शक्ति के साथ जुड़कर वैश्विक स्तर पर  भौतिकता के प्रतिरोध की अस्मिता रचने में तत्पर है। शीघ्र ही विश्व मंगल निमित्त भारत के नेतृत्व में एशियाई देशों की यह करिश्माई भूमिका दिखाई देगी।

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