पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय सचिव सुश्री लीना नंदन ने कहा कि भारत अपने सभी जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने में सक्रिय रूप से नेतृत्व करेगा। दुबई में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र का फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) कॉप-28 के अवसर पर भारतीय पवेलियन में ‘सतत शीतलन की दिशा में भारत की यात्रा’ विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के मामले में भारत की वर्तमान स्थिति में इस संकल्प से बेहतर कुछ नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि जब भारत ने 2015 में राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) की घोषणा की थी, तो हमने 2030 तक उत्सर्जन तीव्रता में 33-35 प्रतिशत कमी लाने की परिकल्पना की थी, लेकिन हमने इसके प्रयासों को बड़े पैमाने पर आगे बढ़ाया है। भारत ने विकास जारी रखा है, इसने आर्थिक विकास से उत्सर्जन को भी उत्तरोत्तर कम किया है और इसके परिणामस्वरूप 2019 में ही सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की उत्सर्जन तीव्रता में 33 प्रतिशत की कमी आई है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय सचिव सुश्री लीना नंदन ने इस सफलता का श्रेय भारत द्वारा अपनी आवश्यकताओं के लिए नवीकरणीय ऊर्जा को दिए गए समान प्रोत्साहन को दिया।
सुश्री नंदन ने यह भी कहा कि भारत अपनी उपलब्धियों और जलवायु महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाने के लिए अग्रसर हैं। पिछले साल अद्यतन किए गए एनडीसी हमारी चिंता को दर्शाते हैं कि हमें वास्तव में वैश्विक बंधुत्व भाव के रूप में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि भारत, समस्या का हिस्सा नहीं रहा है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के परिणामों का सामना कर रहा है, और फिर भी भारत ने समाधान में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए कदम बढ़ाया है। यह अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी, विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन के भारत के दृष्टिकोण में प्रभावी ढंग से परिलक्षित होता है।
उन्होंने कहा कि इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान कई देशों के लिए आदर्श मॉडल बन गया है। हमें अपने प्रयासों को सुदृढ़ करने और परिवर्तन में अग्रणी भूमिका निभाने की आवश्यकता है और हमें ऐसे कूलेंट (शीतलक) पर शोध करना होगा जो भारतीय जलवायु परिस्थितियों के लिए सबसे उपयुक्त हों। उन्होंने कहा कि इस शोध को उद्योगों के साथ विचार-विमर्श के जरिए तय किया जाना चाहिए ताकि इस तकनीक को जल्द अपनाया जा सके और आगे बढ़ाया जा सके।
उन्होंने कहा कि भारत तय करेगा कि उसका जिम्मेदारीपूर्ण और सतत रूप से विकास कैसे हो। सचिव ने कहा कि भारत सरकार इस दिशा में महत्वपूर्ण समाधानों को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने उद्योग और अन्य हितधारकों को भारत को शीतलन के पहलुओं में अग्रणी बनाने के लिए आमंत्रित किया।
पवेलियन में आयोजित कार्यक्रम में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत लक्ष्यों को प्राप्त करने में भारत की सफलता और एक स्थायी शीतलन व थर्मल कम्फर्ट इको-सिस्टम बनाने की दिशा में रोडमैप प्रदर्शित किया गया, जो पर्यावरणीय स्थिरता के लिए एक आवश्यकता बन गया है।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की आर्थिक सलाहकार सुश्री राजश्री रे ने भारत में सतत शीतलन और उष्णता से दूर कर शीतल स्थिति प्राप्त करने के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के महत्व को रेखांकित किया।
इस कार्यक्रम के दौरान ‘सतत शीतलन की दिशा में भारत की यात्रा’ पर एक प्रकाशन जारी किया गया, जो अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं के साथ तालमेल सहित भारत द्वारा की गई विभिन्न पहलों के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों जैसे आवासीय और वाणिज्यिक भवनों, कोल्ड-चेन, प्रशीतन, परिवहन और उद्योगों में शीतलन का महत्वपूर्ण उपयोग है। देश की अपेक्षित आर्थिक वृद्धि के कारण भविष्य में इन और अन्य क्षेत्रों में इस मांग का विस्तार होगा। शीतलन की दिशा में एकीकृत दीर्घकालिक दृष्टिकोण विकसित किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान (आईसीएपी), एक बहु-हितधारक, एकीकृत और परामर्शी प्रक्रिया है, जो विभिन्न क्षेत्रों में शीतलन की मांग और शीतलन आवश्यकताओं के लिए कार्यों को समन्वित करता है।