अगर एक बार पाचन तंत्र में खराबी आ जाये तो हम जो भी खाते हैं, उसे सही से पचा नहीं पाते हैं
अस्त-व्यस्त जीवनशैली और अनियमित खानपान के कारण आज पाचन की समस्या बेहद आम हो गई है। चाहें बुजुर्ग लोग हों या युवा लगभग सभी लोग इसकी चपेट में तेजी से आ रहे हैं। चिकित्सकों का मानना है कि हर दूसरा व्यक्ति आए दिन पाचन की समस्या का शिकार बन कर रहा है। इस स्थिति में पाचन को बेहतर बनाना बहुत जरूरी है, क्योंकि पाचन तंत्र के ठीक से कार्य करने पर ही अच्छे स्वास्थ्य की कामना की जा सकती है। हमारे द्वारा सेवन किये गए भोजन को सही रूप से शरीर में पहुंचाने का काम हमारा पाचन तंत्र ही करता है। यह खाने को ऊर्जा के रूप में बदल कर शरीर को पोषण और शक्ति प्रदान करने में भी मदद करता है और हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाता है। अगर एक बार पाचन तंत्र में खराबी आ जाये तो हम जो भी खाते हैं, उसे सही से पचा नहीं पाते हैं।
परिणामस्वररूप शरीर को आवश्यक विटामिन्स और मिनरल्स पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाते हैं। इससे हमारे शरीर में हानिकारक तत्वों की वृद्धि हो जाती है, जिससे इम्यून सिस्टम भी धीरे-धीरे काम करना बंद कर देता है। खराब पाचन के कारण कब्ज, गैस, ब्लोटिंग, एसिड रिफ्लक्स, शारीरिक कमजोरी और वजन घटने व बढ़ने जैसी गंभीर समस्याएँ आती हैं।
पाचन तंत्र को बेहतर बनाने के लिए सही खानपान
आइये जानते हैं कि पाचन तंत्र को बेहतर बनाने के लिए सही खानपान के बारे में:
भरपूर मात्रा में फाइबर लें- फाइबर युक्त आहार अच्छे पाचन के लिए बहुत फ़ायतेमंद होता है। घुलनशील फाइबर पानी को सोख लेता है और आपके मल में रेशेदार तत्व जोड़ने में मदद करता है। अघुलनशील फाइबर एक विशाल टूथब्रश की तरह काम करता है, जो आपके पाचन तंत्र को सब कुछ साथ रखने में मदद करता है। घुलनशील फाइबर जई का चोकर, फलियां, नट और बीज में पाया जाता है, जबकि सब्जियां, साबुत अनाज और गेहूं का चोकर अघुलनशील फाइबर के अच्छे स्रोत हैं। फाइबर से भरपूर आहार खराब पाचन के कारण होने वाले अल्सर, बवासीर, रिफ्लक्स, डायवर्टिक्युलाइटिस (पाचन की एक बीमारी जिसमें आंतों की दीवारों पर बने डायवर्टीकुला नाम के छोटे-छोटे पाउच में संक्रमण फैल जाता है या फिर सूजन आ जाती है) और इरिटेबल बोवेल सिंड्रोम जैसी स्थितियों के जोखिम को कम करने में मदद करता है। प्रीबायोटिक्स एक अन्य प्रकार के फाइबर हैं जो आपके स्वस्थ आंत बैक्टीरिया को खिलाते हैं। इस फाइबर वाला उच्च आहार आंत्र की सूजन के जोखिम को कम करने में मददगार है। ये कई फलों, सब्जियों और अनाजों में पाए जाते हैं।
हेल्दी फैट्स आहार में शामिल करें
अच्छे पाचन के लिए पर्याप्त वसा लेने की आवश्यकता हो सकती है। वसा आपको भोजन करने के बाद संतुष्ट महसूस करने में मदद करता है और अक्सर उचित पोषक अवशोषण के लिए इसकी जरूरत पड़ती है। इसके अतिरिक्त, ओमेगा -3 फैटी एसिड अल्सरेटिव कोलाइटिस जैसे आंतों में सूजन से जुड़े रोगों के विकास के जोखिम को कम कर सकता है। ओमेगा -3 फैटी एसिड अलसी के बीज, चिया सीड्स, नट्स (विशेषकर अखरोट) जैसे भरपूर खाद्य पदार्थों और वसायुक्त मछली जैसे सैल्मन, मैकेरल और सार्डिन में प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैं।
आंत-सहायक पोषक तत्वों को शामिल करें
प्रोबायोटिक्स फायदेमंद बैक्टीरिया होते हैं जो सप्लीमेंट (पूरक) के रूप में लेने पर पाचन स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं। ये स्वस्थ बैक्टीरिया उन अपचनीय तंतुओं को तोड़कर पाचन में सहायता करते हैं, जो गैस और सूजन का कारण बन सकते हैं। प्रोबायोटिक्स साउरक्राउट, किमची और मिसो जैसे खमीरयुक्त खाद्य पदार्थों में पाए जाते हैं। इसके अलावा यह दही में भी होता है जिसमें जीवित और सक्रिय जीवाणु हैं। ग्लूटामाइन एक एमिनो एसिड है जो गंभीर रूप बीमार लोगों में आंतों की पारगम्यता (छिद्रयुक्त आंत) को कम करने में मदद करता है। ग्लूटामाइन सोयाबीन, अंडे और बादाम जैसे खाद्य पदार्थ में पाया जाता है। जिंक एक खनिज है जो एक स्वस्थ आंत के लिए महत्वपूर्ण है, और इसकी कमी से विभिन्न जठरांत्र संबंधी विकार हो सकते हैं। जिंक सीपदार मछली और सूरजमुखी के बीजों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
शरीर में नमी का स्तर बनाए रखें
अपर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ का सेवन कब्ज का सामान्य कारण है। कब्ज को रोकने के लिए प्रतिदिन 1.5-2 लीटर गैर-कैफीन युक्त तरल पदार्थ लें। यदि आप गर्म जलवायु में रहते हैं या ज्यादा व्यायाम करते हैं तो अधिक मात्रा में तरल पदार्थ ले सकते हैं। इसके अलावा पानी की प्रचुर मात्रा में आपूर्ति के लिए ककड़ी/खीरा, तोरी, अजवाइन, टमाटर, खरबूजे, स्ट्रॉबेरी, अंगूर और आड़ू जैसे फल और सब्जियों का भी सेवन कर सकते हैं।
तनाव नियंत्रित करें
तनाव आपके पाचन तंत्र पर कहर ढा सकता है। इससे पेट में अल्सर, दस्त, कब्ज और इरिटेबल बोवेल सिंड्रोम हो सकते हैं। तनाव हमारे पाचन तंत्र को कई तरह से नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। यह पेट में रक्त और ऑक्सीजन के प्रवाह में कमी, ऐंठन, आंतों के बैक्टीरिया में असंतुलन और सूजन का कारण बन सकता है। ये लक्षण आगे चलकर गैस्ट्रो इंटेस्टाइनल (जीआई) विकारों जैसे कि इरिटेबल बाउल सिंड्रोम, इरिटेबल बाउल डिजीज, पेप्टिक अल्सर या गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज में विकसित हो सकते हैं।
तनाव प्रबंधन के लिए गहरी पेट की श्वास लेना, ध्यान या योग कर सकते हैं ये न केवल आपकी मानसिकता बल्कि आपके पाचन में भी सुधार कर सकते हैं।
भोजन करने के दौरान बरतें सावधानी
खाना खाने के दौरान ध्यान न देने पर व्यक्ति कम समय में ज्यादा भोजन का सेवन कर जाता है जिससे ब्लोटिंग, गैस और अपच हो सकती है। इसलिए खाना धीरे-धीरे खाएं। अपने टीवी को बंद करके और अपने फोन को दूर करके अपने भोजन पर ध्यान दें। अपने भोजन की प्रकृति, तापमान और स्वाद पर ध्यान दें।
कुछ बुरी आदतों को छोड़ें
धूम्रपान, बहुत अधिक शराब पीना और रात में देर से खाना जैसी बुरी आदतें को छोड़ दें क्योंकि ये आपके संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए अच्छी नहीं हैं। धूम्रपान करने से एसिड रिफ्लक्स (आंतों में मौजूद एसिड निकल जाने पर सीने में तेज जलन होना) विकसित होने का खतरा दोगुना हो जाता है। धूम्रपान से पेट के अल्सर, अल्सरेटिव कोलाइटिस और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर वाले लोगों में सर्जरी को बढ़ावा दे सकता है। शराब के सेवन से आपके पेट में एसिड का उत्पादन बढ़ सकता है और हार्टबर्न (बदहज़मी), एसिड रिफ्लक्स और पेट के अल्सर का कारण बन सकती है। देर रात भोजन करना और फिर सोने के लिए लेट जाना हार्टबर्न (बदहज़मी) और अपच पैदा कर सकता है।
पाचन स्वास्थ्य में सुधार के लिए अपनाएं ये तरीके:
• तनाव को कम करने और आंत के स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए आप कई चीजें कर सकते हैं।
• नियमित रूप से व्यायाम करें। यह काफी हद तक तनाव से राहत प्रदान करता है। इसके अलावा व्यायाम पेडू क्षेत्र और पेट की दीवार में सहायक मांसपेशियों को मजबूत करता है। इन मांसपेशियों के मजबूत होने से शरीर को सीधा रखने में मदद मिलती है, जो पेट के माध्यम से मल को उचित रूप से त्याग करने में मददगार है।
• तनाव प्रबंधन के लिए जहाँ तक संभव हो सके तनाव लेने से बचें। समाज में लोगों के साथ घुलना-मिलना भी बेहद जरूरी है। पर्याप्त मात्र में नींद अवश्य लें या आराम करें, इससे तनाव के स्तर को कम करने में मदद मिलेगी।
• तले-भुने भारी मसालेदार जंक फ़ूड से दूरी बनाये रखना ही बेहतर होगा।
• शराब एवं कैफीन युक्त पदार्थों के सेवन से बचें।
• शरीर को शुद्ध कर फिर से तैयार करने के लिए मक्का, गेहूं (और ग्लूटेन), अंडे, सोया, और दूध से निर्मित खाद्य पदार्थ जैसे उच्च एलर्जीनिक खाद्य पदार्थों के सेवन से बचें। साथ ही डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों, लाल मीट, रिफ़ाइन्ड शुगर और कृत्रिम मिठास वाले पदार्थों को आहार में शामिल न करें।
• शरीर में से विषाक्त तत्वों को निकालने के लिए हरी पत्तेदार सब्जियां, जामुन, अनानास, नट्स, अंकुरित बीज, सेम, मसूर, नट और अखरोट आधारित दूध, अजवाइन, ब्रोकोली, सन बीज, गोभी, बिना मिठास वाला नारियल दूध से बनी दही का नियमित रूप से इस्तेमाल करें।
(डॉ. संजय कुमार, निदेशक एवं सीनियर कंसल्टेंट, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग, क्यूआरजी हेल्थ सिटी अस्पताल, फरीदाबाद और किरण शर्मा, वरिष्ठ आहार विशेषज्ञ, क्यूआरजी हेल्थ सिटी हॉस्पिटल, फरीदाबाद से बातचीत पर आधारित)