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विज्ञान के दुरुपयोग का खामियाजा अंतत: हम मनुष्यों को ही भुगतना होगा

28 फरवरी राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर विशेष-

 ‌‌‌      – सुरेश सिं​ह बैस “शाश्वत”

आज का युग विज्ञान का युग है। मानव जाति विज्ञान से इस कटर प्रभावित हुई है कि दुनिया को अब विज्ञान की दुनिया कहा जाने लगा है। विज्ञान ने मनुष्य की पुरानी काया ही पलट कर रख दी है। यदि आज सौ वर्ष की आयु का देहाती व्यक्ति हो तो वह टेलीविजन पर चलते-फिरते व्यक्तियों को भूत-प्रेत समझ कर भाग खड़ा हो, मनुष्य के जीवन का अब शायद ही कोई ऐसा पहलू बचा हो जहाँ विज्ञान की दखलंदाजी न हो। निश्चय ही मनुष्य की किसी घटना का कारण जानने की प्र वृत्ति के कारण ही पिछली दो ढाई शताब्दी में ढेरों वैज्ञानिक खोजें हुई हैं। मनुष्य के लिए विज्ञान की खोज एक-एक नवीन जिज्ञासा को जागृत करने वाली है। विश्व में चहुँ ओर विज्ञान की दुन्दुभी बज रही है। प्राचीन संस्कृत और धर्म के बंधन चरमरा कर टूट रहे हैं। नीवन मान्यताएं जन्म ले रही है। मानव जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन हो रहे हैं। विज्ञान ने अनेको आश्चर्य जनक नीवन अविष्कारों के द्वारा मानव जीवन को सुखमय बना दिया है। इसमें कृषि, औषधि, मनोरंजन और आवागमन के साधनों में अभूतपूर्व प्रगति की है।

विज्ञान ने मानव जीवन को बहुत अधिक प्रभावित किया है। इसलिए उसे कुछ पंक्तियों में लिखना मुश्किल है। फिर भी मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है। कि आज का मानव विज्ञान के अधीन है। वर्तमान सभ्यता के विकास का पूर्ण श्रेय विज्ञान को जाता है। आवागमन के द्रुत साधनों यथा हवाई जहाज, रेलगाड़ी, बस, मोटर, कार आदि तथा संचार की चमत्कारिक सुविधाओं यथा उपग्रह, इंटरनेट, वायरलैस, टेलीविजन, टेलीफोन, मोबाइल, इंटरनेट, फैक्स आदि ने दुरियों को लगभग समाप्त कर दिया है।

 विज्ञान के एक महत्वपूर्ण अविष्कार बिजली ने दुनिया का रंग ही बदल दिया है। मशीन के अविष्कार के बाद आज मनुष्य ने कम्प्यूटर और उससे भी एक कदम आगे मशीनी मानव तक तैयार कर लिया है। अंतरिक्ष और दूसरे ग्रहों की सैर से लेकर दैनिक जीवन के हर मुकाम पर

विज्ञान मौजूद है। चौबीस घंटे की हमारी दिनचर्या में हर वक्त किसी न किसी रूप में विज्ञान हमारे साथ होता है।विज्ञान ने कृषि के क्षेत्र में अपने नवीन अविष्कारों द्वारा दुनिया की तीव्र गति से बढ़ने वाली जनसंख्या को अनेकों प्रकार के खाद्य पदार्थ सुलभ कराने में बड़ी सहायता की है। रासायनिक खाद, ट्रैक्टर, कीटनाशक औषधि तथा ऐसे-ऐसे अविष्कार किए हैं जिनसे कृषक का जीवन सुखी हो गया है। नवीन प्रकार की उपज बढ़ाने वाले पदार्थों की खोज विज्ञान की देन है। ट्यूबवेल से सिंचाई में बड़ी सुविधा हुई है। और कृषको की वर्षा ऋतु के पानी पर निर्भरता बहुत कुछ कम हो गई है। विज्ञान ने भूमि के अतिरिक्त जल में भी रासायनिक तत्वों के आधार पर पौधे उगाना संभव कर दिया है। इन पौधों में भी सभी प्रकार के आवश्यक तत्व पाए जाते हैं। जापानी कृषि विज्ञान की नवीन खोजौ के आधार पर ही विश्व में ख्याति प्राप्त कर सके हैं। फसल काटने और बोने की नवीन मशीने विज्ञान की ही देन है। 

औषधि जगत में विज्ञान के आश्चर्यजनक प्रगति की है। प्राचीन युग में मानव के लिए शल्य चिकित्सा बड़ी कष्टदायक थी। शल्य क्रिया का नाम सुनकर रोगी कांप उठता था। और जब यह क्रिया आवश्यक हो जाती थी तो रोगी को रोते-चीखते एवं दर्द से तड़पते हुए कार्य करना पड़ता था। बहुत से रोगी तो कष्ट और असह्य पीडा के कल्पना मात्र से ही आपरेशन टेबल पर अपना दम तोड देते थे, परतु विज्ञान ने क्लोरोफार्म नाम की एक अपूर्व औषधि के अविष्कार से मानव की पीड़ा को समाप्त कर दिया है। अब गंभीर आपरेशन बिना किसी पीडा के संभव हो गये हैं। एक्सरे दूसरा महत्वपूर्ण अविष्कार है, जिसके द्वारा शरीर के आंतरिक अंगों का फोटो लेकर उनका उपचार करना संभव हो गया है। वही एण्डोस्कोपी, सोनोग्राफी के माध्यम से शरीर के अंदरुनी हिस्से की प्रत्येक नस-नस की जानकारी हमें सचित्र देखने को मिलने लगी है। फलतः शरीर की कोई भी व्याधि हो

उसका पता लगाकर उसका उचित इलाज संभव हो गया है। इसके अतिरिक्त अनेको प्राणदायक इंजेक्शनों, वैक्सीन के द्वारा भी विज्ञान ने मानव जीवन की रक्षा के साधन जुटाए हैं।

मनोरंजन के क्षेत्र में सिनेमा, रेडियो, टेलीविजन, विडियो, सी डी आदि मानव जीवन को सुखमय एवं आनंदप्रद बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। सिनेमा जन साधारण के मनोरंजन का सबसे सस्ता साधन है। इसका प्रयोग सभी के लिए सुलभ है। तीन घंटे का सस्ता मन बहलाव का साधन इसके अतिरिक्त अन्य कोई नहीं हो सकता वंही टेलीविजन के द्वारा हम अपने घरों पर ही मनोरंजक कार्यक्रम देख एवं सुन सकते हैं।

  रेडियो, टेप, सी डी के द्वारा मन पसंद गानों को सुन सकते हैं। इस प्रकार मानव ने मनोरंजन के लिए अनेको साधन जुटा लिए हैं विज्ञान के द्वारा। चंद्र विजय विज्ञान का अनोखा चमत्कार है। मानव प्राचीन काल से ही स्वर्ग की कल्पना करता आया है। और उसका विश्वास था कि देवता चंद्रलोक में निवास करते हैं। ज्ञान के पिपासु उनके वैज्ञानिकों ने मानव रहस्य की गुत्थी को सुलझा दिया और चंदा मामा दूर के जैसी लोरियों का मिथक तोड़ते हुए चंदा भामा को नजदीक ला दिया विज्ञान ने। रुस के आंतरिक्ष यान लूना-2 ने 12 सितंबर 1959 को चंद्रलोक में प्रथम उड़ान भरी थी। इसके बाद रुस ने 1960 में अंतरिक्ष यान द्वारा दो कुत्ते भेजे जो चंद्रलोक की यात्रा करके सफलता पूर्वक लौट आए। इसके पश्चात मानव को अंतरिक्ष में भेजने की योजनाएं बनाई जाने लगी। और 16 अप्रैल 1972 को अपोलो-16 चंद्रलोक की यात्रा पर चल पड़ा, विभिन्न कठिनाईयों के होते हुए भी इसने अपनी उड़ान जारी रखी ओर अंत में 21 अप्रैल सन 1972 को चंद्रमा के धरातल पर उतरने में सफलता प्राप्त की। चंद्रलोक में मनुष्य के कदम पहली बार पड़े थे । इसके पश्चात चंद्रलोक के यात्री अपनी दस दिन की उड़ान पूरी करके 27 अप्रैल 1972 की रात्रि को 3 बजकर 45 मिनट पर प्रशांत महासागर के द्वीप समूह में सकुशल उतरे थे। इस प्रकार इन अभूतपूर्व सफलता से विश्व अचंभे में पड़ गया। भविष्य में मानव की आवास समस्या इस सफलता के द्वारा हल करने में सहायता मिल सकेगी।

 अब वह दिन दूर नहीं जब मानव पक्षियों की भांति उड़कर चंद्रलोक में अपना आशियाना स्थापित कर संसार की भीड़-भाड़ से बचकर शांतिपूर्ण जीवन यापन कर सकेगा। चंद्रलोक की सफलता से प्रेरित होकर अब विज्ञान ने एक कदम और आगे बढ़कर अब मंगल पर कदम रखने की कार्यवाही शुरु कर दी है। जिसमें भारत ने भी उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है अब तो भारत सूर्य के भी गहन अध्ययन के लिए अग्रसर हो चुका है। परंतु, उपरोक्त सभी उपलब्धियों के रचनात्मक पक्ष के ठीक उलट एक पक्ष और है जिसका रास्ता विध्वंसक है।       

मानव मस्तिष्क जब तक कल्याण विकास और रचना कृतित्व के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ रहेगा। तब तक तो कोई खतरा नहीं है। लेकिन जब मानव के छुद्र स्वार्थ बिगड़ी मानसिकता या किसी दुर्घटना के कारण यही विज्ञान हमारे लिए बहुत बडी समस्या और भयंकर तबाही भी बन सकता है। उदाहरणार्थ आज दुनिया के पास इतने ज्यादा परमाणु बम मौजूद हैं कि उनके विध्वंसक उपयोग से पृथ्वी को एक बार नहीं पचासों बार तबाह किया जा सकता है। ये तो मात्र परमाणु बमों की ही बात है। रासावनिक बमों से तो पूरी प्रकृति और समस्त जीव जगत का खात्मा कुछ घंटों में ही किया जा सकता है, ऐसे-ऐसे विनाशक अविष्कार मनुष्य ने इजाद किए हुए हैं, जो जरा सी भी चूक या लापरवाही पर दुनिया के लिए काल बन सकते हैं।

विज्ञान ने जहां जीवन को सुखमय बनाने में अपना योगदान दिया है। वहीं उसने मानव विनाश के साधन भी जुटा दिए हैं। जापान के शहर नागाशाकी और हीरोशिमा का नरसंहार अभी दुनिया के मानस पटल से विस्मृत नहीं हो सका है। आज का मनुष्य विज्ञान की ऐसी उपलब्धियों से भयभीत है। डॉ. एलीसन जिन्होंने अणुबम की खोज में अपना सक्रिय योगदान दिया था। उन्होंने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है कि अणुबम की खोज पर प्रसन्नता अवश्य हुई थी। लेकिन उसके विस्फोटक उपस्थित से हृदय द्रावक विनाश को देखकर उनको भी यह कहना पड़ा था कि अब दुबारा फिर कभी भविष्य में इस एटम बम का विस्फोट न किया जाए। वैसे मूलतः विज्ञान वास्तव में इतना हानिकारक ‘नहीं है। जितना मनुष्य का युद्ध और उसकी वैज्ञानिक पाशविक प्रवृत्ति, युद्ध के लिए विनाशकारी यंत्रों की खोज ही विज्ञान को मानव के लिए हानिकारक सिद्ध करती है। फलतः हमारे जीवन को आरामदायक और सुविधाजनक बनाने वाला विज्ञान किसी दिन पूरी मानव जाति के विनाश का कारण भी बन सकता है। परमाणु शक्ति और फिर उसके जरिए भयंकर किस्म के परमाणु बम बन जाने के बाद विश्व मानवता के सिर पर नंगी तलवार लटकी हुई है।

चूंकि विज्ञान प्रकृति के ऊपर मानव की जीत है, इसलिए हर मोड़ पर विज्ञान के खतरे भी मौजूद हैं। विज्ञान के कारण हुए औद्योगिकीकरण ने हमारे पर्यावरण को भी विनाश की ओर ढकेलने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। अंधाधुध विकास और सुविधाओं के अंधाधुंध उपयोग के कारण विज्ञान कई तरह से हमारे लिए अभिशाप भी बन गया है। जरुरत इस बात की है कि विज्ञान का उपयोग विवेक सम्मत ढंग से सृजनात्मक कायों में किया जाए। 

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”

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