– सुरेश सिंह बैस
बिलासपुर। मलेरिया को लेकर संवेदनशील रहे जिले की तस्वीर अब बदल गई है। पिछले आठ वर्षों में मलेरिया के मरीजों की पहचान के लिए होने वाली जांच तो बढ़ी है। इसमें सामने आया है कि मरीज मिलने की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2017 में 2020 मलेरिया पीड़ित मिले थे। वहीं वर्ष 2019 में मरीजों की संख्या 938 रह गई। वही चार साल बाद 2023 में यह आंकड़ा गिरकर महज 63 रह गई हैं। इसी तरह वर्ष 2022 के पहले 3 माह में सिर्फ पांच मलेरिया पीड़ित ही मिले हैं। इस स्थिति तक पहुंचने में केंद्र सरकार की ओर से दिए गए मेडिकेटेड मच्छरदानी, लोगों की जागरूकता के साथ मलेरिया विभाग के मैदानी अमला द्वारा किए गए कार्य था ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्ष 2016 से पहले जिले में साम मलेरिया पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा था डीटी दवा के छिड़काव के बाद भी वर्ष 2016 में 1607 मामले सामने आए थे वहीं वर्ष 2017 में यह आंकड़ा 2020 पिडित तक पहुंच गया।
मलेरिया के 70 प्रतिशत मरीज गौरेला, पेंड्रा व मरवारी क्षेत्र में मिलें। इसे केंद्र सरकार ने गंभीरता से लिया और तीनों ब्लाक के लिए दो लाख 19 हजार मेडिकेटेड मच्छरदानी भेजी। इसके वितरण के बाद अप्रत्याशित रूप से मलेरिया के मामले में कमी देखी गई। वर्ष 2018 में मलेरिया मरीजों की संख्या 1339 रही गईं थी। इसी तरह वर्ष 2019 में मलेरिया के सिर्फ 938 मरीज मिले। वहीं वर्ष 2020 में 64, 2021 में 64, 2022 में 39, 2023 में महज 63 मिले हैं। इसी तरह साल 2024 के प्रथम तीन माह में मलेरिया के सिर्फ पांच मामले ही सामने आए हैं। आंकड़ों से साफ है कि जिला मलेरिया मुक्त बनाने की दिशा में अग्रसर है। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार मलेरिया की वजह से वर्ष 2016 में दो और वर्ष 2017 में एक मौत हुई है। तीतों मरीजों का इलाज निजी हास्पिटल में चल रहा था। इसमें से कोई भी बिलासपुर जिले का नहीं था। इसके बाद से मलेरिया से किसी मरीज की मौत वर्तमान स्थिति तक नहीं हुई है।