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“बहुत हँसायेगा यह हास्य नाटक ‘बुरे फँसे’ ” – सुभाष चंदर (वरिष्ठ साहित्यकार)

रिंकल शर्मा के हास्य नाटक : ‘बुरे फँसे’

रिंकल शर्मा
रिंकल शर्मा

हिंदी रंगमंच पिछले कई दशकों से हास्य नाटकों की कमी से जूझ रहा है ।  जबकि यह बड़ी अजीब बात है कि हिंदी गद्य लेखन की नींव रखने  में ही हास्य- व्यंग्य  के नाटकों यानी प्रहसनों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हिंदी गद्य के उन्नायक भारतेंदु हरिश्चंद्र के 1873 में प्रकाशित ‘वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति’ और उसके बाद प्रकाशित  ‘अंधेर नगरी चौपट्ट राजा’ और  ‘भारत दुर्दशा’ जैसे प्रहसनों के माध्यम से हास्य -व्यंग्य के नाटकों को बेहद सशक्त शुरुआत दी थी। बाद में उनके समकालीनों ने और उनके परवर्ती लिखो ने भी प्रहसनों पर काम किया पर धीरे-धीरे  इस क्षेत्र से लेखकों का रूझान कम होता गया। व्यंग्य नाटक तो फिर भी देखने में आये लेकिन स्वस्थ हास्य पर केंद्रित नाटकों का अकाल सा पड़ता गया। एक समय जो प्रहसन गद्य साहित्य के केंद्र में था, उसे दोयम दर्ज़े का माना जाने लगा। आलोचकों की उदासीनता ने भी इसके ह्रास में अपनी भूमिका निभाई जबकि रंगमंच को उसकी कमी खलती रही। आज भी अधिकांशतः  रंगमंच हास्य प्रस्तुतियों के लिए या तो विदेशी लेखकों की रचनाओं पर निर्भर रहता है या अन्य भारतीय भाषाओं की रचनाओं पर। कई बार तो यह भी होता है कि सामान्य कहानियों  में हास्य का तड़का लगाकर उनका नाट्य  रूपांतरण करके उन्हें हास्य नाटकों का रूप देने की कोशिश भी की जाती रही है। यह स्थिति रंगमंच में हास्य नाटकों की बेहद कमी को रेखांकित करती है ।  ऐसे समय में प्रसिद्ध युवा कथाकार सुश्री रिंकल शर्मा का हास्य नाटक ‘बुरे फंसे’ तेज गर्मी में  ठंडी हवा के झोंके सा आनंद देता है। 

यह हास्य नाटक  बेहद सहज अंदाज़ में पाठकों से संवाद करता है और उन्हें जमकर हंसाता- गुदगुदाता  है। कस्बाई परिवेश पर केंद्रित यह कृति  छोटी-छोटी हास्यपरक घटनाओं के माध्यम से हास्य की सृष्टि करती है।  यह कहानी एक पुरानी राइफल की है जिसके आसपास पूरी रचना बुनी गई है। नाटक की कथावस्तु की बात करें तो  कन्हैयालाल उर्फ कल्लन इस नाटक का नायक है। कल्लन एक नालायक और कामचोर प्रवृत्ति का युवक है जो जल्दी से जल्दी अमीर बनने के चक्कर में रहता  है और उसके लिए कोशिश कोई भी नहीं करना चाहता। वह अपनी दादी और नौकरानी चंपा के साथ अपने पूर्वजों की बनी हवेली में रहता है। हवेली पुरानी और जर्जर है । इस हवेली पर बहुत सारे लोगों की नज़र है। इनमें से रहमत शेख भी है जो हैदराबाद से आया हुआ है और अपनी पत्नी और अपने नौ बच्चों  के साथ  कल्लन की हवेली में मामूली से किराए पर रहता है। वह अपनी बेटी शबनम की शादी कल्लन से कराकर इस हवेली पर कब्जा करना चाहता है। उधर कल्लन खुद भी यही चाहता है कि वह हवेली को बेचकर इसके पैसे से अपनी खूब ऐश करे। वह हवेली के लिए एक ग्राहक भी खोजकर लाता है। पर दादी और चम्पा उसे भगा देते हैं। इधर एक त्रिकोणीय प्रेम का चक्कर भी साथ में चल रहा है। कल्लन शबनम से एकतरफा प्रेम करता है जबकि शबनम उसकी ओर बहुत ध्यान नहीं देती। वह छज्जू नाम के एक हज़्ज़ाम से मोहब्बत करती है और उसी से शादी करने पर आमादा है। उधर रहमत शेख की पूरी कोशिश  है कि शबनम किसी भी तरह कल्लन  से शादी कर ले , ताकि वह जल्दी से जल्दी हवेली कब्जा सके। उसके लिए वह धर्म की दीवार को तोड़ने के लिए भी तैयार है। छज्जू भी काफी खुराफाती किस्म का प्राणी है जो रहमत की चाल की काट करता रहता है। इसी बीच में   दादाजी के राइफल का किस्सा केंद्र में आता है और धीरे धीरे  यही राइफल और उससे जुड़े किस्से इस नाटक को एक सशक्त हास्य नाटक का दर्जा देने में सफल हो जाते हैं।   रहमत शेख अपनी अलग खिचड़ी पकाता रहता है। इन्हीं पात्रों के आसपास नाटक को रचा गया है पर केंद्र में दादाजी की राइफल है।  इस राइफल से जुड़े हुए किस्से सुनाकर कल्लन लोगों के सामने खुद को शूरवीर का पोता होने का क्रेडिट लेता है। पूरे इलाके में राइफल के चर्चे होते हैं। ये किस्से खूब हंसाते हैं, गुदगुदाते हैं और अंत में हंसते-हंसते चिकोटी भी काट जाते   हैं । तभी एक ऐसी घटना घटती है कि राइफल अचानक बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। रहमत शेख की कारस्तानी और कल्लन के जल्दी अमीर बनने की ललक के कारण कुछ ऐसी घटनाएं घटती हैं कि नाटक की पतीली में पकते हास्य की खुश्बू हर तरफ फैल जाती है। कथावस्तु के बारे में इससे अधिक बताना पाठकों के साथ अन्याय होगा। 

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 अगर हम कृति की भाषा और शिल्प की बात करें तो रिंकल शर्मा ने कृति में भाषाई पक्ष पर बहुत बढ़िया काम किया है। उनकी भाषा, सहज,सरल और पात्रानुकूल है और हास्य की सृष्टि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। रहमत शेख हैदराबाद से आया है तो उसकी भाषा में हैदराबादी हिंदी का पूरा पुट आता है। उसी प्रकार  नौकरानी चंपा ब्रज क्षेत्र से संबंधित है तो  उसकी भाषा में ब्रजभाषा के मुहावरे और स्वाभाविक मस्ती दिखाई देती है जो हास्य के सृजन में पूरी मदद करती है।  इसी तरह लेखिका कल्लन, छज्जू,शबनम आदि पात्रों की भाषा के माध्यम से भी हास्य उपजाने में सफल रही हैं।   इसके अलावा रिंकल शर्मा की संवाद योजना भी बहुत मजबूत है ।  उनके पात्रों के संवाद बेहद जीवंत और प्रभावी हैं। संवादात्मकता में भाषिक शक्तियों का अच्छा प्रयोग हुआ है। खासकर  विट का तो बेहतरीन प्रयोग हुआ है । इससे नाटक की रोचकता में भी वृद्धि हुई है और प्रभावात्मकता में भी।। कहीं -कहीं वक्रोक्ति और प्रतीकात्मकता का भी अच्छा प्रयोग देखने को मिला है जिससे रचना में गुणवत्ता बढ़ी है। बाकी मंचीय प्रस्तुति को ध्यान में रखकर जो संकेत चिह्न लेखिका ने दिये हैं, वे यह स्पष्ट इंगित करते हैं कि लेखिका ने इस दृष्टि से भी कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है। 

मेरा मानना है कि  हास्य नाटक ‘बुरे फंसे’  हास्य नाटकों की कमी से जूझते हुए हिंदी रंगमंच को संजीवनी तो प्रदान करेगा ही , पाठकों / दर्शको को  शुद्ध हास्य की  एक  सशक्त प्रस्तुति से भी परिचित  करायेगा जो निसंदेह उनके लिए एक याद रखने वाला अनुभव सिद्ध होगा।  

 कृति : बुरे फंसे

(हास्य नाटक

लेखिका –  रिंकल शर्मा

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