भारत में मोटापा तेजी से बढ़ता ही जा रहा है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है हमारी आज की लाइफस्टाइल और अन्य चीजें। अब मोटापा कम करने के लएि आपको कठिन एक्सरसाइज करने की जरूरत नहीं है। आप कुछ आसान तरीकों से भी अपना मोटापा कम कर सकते हैं। मोटापे के प्रमुख्य कारण अत्यधिक कैलोरी वाले खाद्य का सेवन, शारीरिक गतिविधियों का अभाव, आनुवांशिकी का मिश्रण हो सकता है। हालांकि मात्र आनुवांशिक, चिकित्सकीय या मानसिक रोग के कारण बहुत ही कम संख्या में पाये जाते हैं। आज के समय में वजन कम करना लोगों की मुख्य प्राथमकिताओं में से एक होती जा रही है। आजकल की इस बिजी लाइफ में हर कोई वजन कम करने की कोशशि में जुटा है। हम आपको बताते हैं कि ऐसे कौन से वो आसान तरीके हैं जो आपके वजन को कंट्रोल में कर सकते हैं। यह कई बीमारियों की जड़ है लिहाजा इससे बचा जाना चाहिए। कई लोगों का मानना होता है कि अच्छी लाइफस्टाइल के लिए बेरिएट्रिक सर्जरी अनिवार्य हो जाती है। हालांकि मरीज का बीएमआई 35 से अधिक होने की स्थिति में उसे सर्जरी करवाने की सलाह दी जाती है.
खासियत
विश्वभर में बैरिएट्रिक सर्जरी मोटापे की लड़ाई के खिलाफ एक मुख्य और सबसे बेहतरीन उपकरण के रूप में सामने आया है। विश्व भर में बहुत से लोग मोटापे का शिकार हो रहे हैं। बच्चों में मोटापा बड़ी तेजी से बढ़ रहा है और किशोर अवस्था तक वह पूरी तरह से मोटापे की जकड़ में आ चुके होते हैं, जिस कारण कई अन्य रोग जैसे डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रोल का भी शिकार हो जाते हैं। लेप्रोस्कोपी विधि द्वारा की जाने वाली इस सर्जरी के दौरान रोगी को केवल 3 से 4 दिन तक ही अस्पताल में रहना पड़ता है। इस सर्जरी द्वारा डायबिटीज और हाईपरटेंशन को भी क्योर कर सकते हैं। बेरिएट्रिक सर्जरी में पेट का ऑपरेशन किया जाता है और एक लंबी अवधि में वजन कम हो जाता है। इस सर्जरी का लाभ यह है कि रोगियों में मधुमेह की समस्या का समाधान हो जाता है। जो लोग अन्य तरीके से मोटापा नहीं घटा सकते हैं, उनके लिए बेरिएट्रिक सर्जरी सबसे अच्छा विकल्प है। इसका सबसे अधिक लाभ वे लोग उठा रहे हैं, जिनका वजन बॉडी मास सूचकांक के आदर्श वजन से 30 से 40 किलो अधिक है। स्लीव गेस्ट्रेटाॅमी बैरिएट्रिक प्रक्रिया का प्रकार है जिससे जल्दी और संतोषजनक वजन कम होता है वे भी खाने को त्यागे बिना। सर्जरी के दौरान, सर्जन पेट के उस पोषन को हटा देता है जिससे स्लीम होने के साथ ही व्यक्ति के खाने की डाइट भी कम हो जाती है। इस वजन घटाने की सर्जरी के लिए सर्जन की छुरी के नीचे जो लोग सबसे अधिक आते है वे 15 से 40 साल तक की उम्र के बीच के लोग होते है और वे लड़कियां जिनकी षादी होने वाली होती है। वर्तमान समय में, दुनियाभर में लेप्रोस्कोपिक एक्सेस बेरिएट्रिक सर्जरी प्रक्रिया की सबसे लोकप्रिय तकनीक है. हालांकि लेप्रोस्कोपिक तकनीक को कई ट्रोकार्स के प्लेसमेंट की सुविधा की आवश्यकता है। हाल ही में, सिंगल चीरा लेप्रोस्कोपिक सर्जरी या स्केरजेस सर्जरी विकसित किया गया है, जो लेप्रोस्कोपिक स्लीव गेस्ट्रेक्टाॅमी का एकल चीरा पद्धति है जिसका उपयोग नाभि में एक पोर्टल के रूप में डाला जाता है।
एसआईएल यानी एकल चीरा लेप्रोस्कोपी में विशेष मल्टीचैनल उपकरण का परिचय है जिसके अंतर्गत लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में नाभि के माध्यम से मात्र एक चीरा लगाकर सर्जरी की जाती है. इस पद्धति का लाभ यह होता है कि यह पोर्ट को चीरे द्वारा एक साइट की नाभि को सीमित करता है, बेहतर सौंदर्य निखाता है और सर्जरी के दर्द को कम भी करता है। आॅपरेशन के पश्चात कम दर्द, पेट में पर्याप्त कमी, जल्दी से मरीज की रिकवरी, कम घाव जटिलताओं, और बेहतर कॉस्मेटिक परिणामों में तब्दीली होती है। इस प्रक्रिया की कीमत 15000 से 20000 तक है। इसमें पारंपरिक मल्टीपोर्ट लेप्रोस्कोपी स्लीव गेस्ट्रेक्टाॅमी से अधिक खर्च होता है. लेप्रोस्कोपिक स्लीव गेस्ट्रेक्टाॅमी तकनीकी द्वारा अब जवां मोटी महिलाओं और पुरुषों के स्लीम होने के लिए बेहतर विकल्प मौजूद है जिसमें कम असुविधा, तेजी से रिकवरी के साथ कम समय और बिना कोई निशान के इलाज संभव है।
प्रक्रिया हुई आसान
पीड़ित व्यक्ति के शरीर में एक छोटा चीरा लगाकर इस सर्जरी के जरिये दिशा दिखाने वाले बेहद सूक्ष्म ट्यूब डाले जाते हैं। इसके बाद उन ट्यूबों से होकर ये उपकरण अंदर जाते हैं। एक छोटा कैमरा उन उपकरणों को सर्जरी की जगह तक पहुंचा देता है। इस प्रकार सर्जन अपना कार्य बखूबी कर सकता है।
विशेषताएं
पीड़ित व्यक्ति की अस्पताल से दो-तीन दिनों में ही छुंट्टी हो जाती है। उसे काम से भी लंबी छुंट्टी लेने की दरकार नहीं है। यूं कह सकते हैं कि बैरिएट्रिक सर्जरी कराइए, काम पर चलिए।
पहले सर्जरी में 5 से 15 मिलीमीटर के चीरे लगते थे लेकिन अब बैरिएट्रिक सर्जरी के अंतर्गत एसआईएल से मात्र एक चीरा लगाया जाता है।
70 से 80 प्रतिशत अतिरिक्त वजन कम होता है।
डा.तरूण मित्तल, बैरिएट्रिक सर्जन, सर गंगाराम हास्पिटल से बातचीत पर आधारित