अनुज ने डाक्टर को रूपये दिए तब लगा कि चारों धाम की यात्रा का आनन्द उसके भीतर हिलोरें मार रहा
अनुज आफिस से घर आया तो बहुत खुश था। वह पत्नी वन्दिनी से बोला, “बधाई हो। भगवान ने तुम्हारी सुन ली है। चार धाम यात्रा के लिए रूपयों की व्यवस्था हो गई है। तुम तैयारियां शुरू कर दो। अगले सप्ताह ही चलना है।”
यह कहते अनुज ने अपने बैग से डेढ़ लाख रुपए निकाले और पत्नी के हाथ में रख दिए।
नन्दिनी से रूपए लेते हुए पूछा,” मगर इतने रुपए तुम लाए कहां से?”
अनुज ने कहा,” तुम चिंता मत करो। कोई डाका नहीं डाला है। हमनें बैंकिंग सोसायटी में जो रूपये जमा कराते थे, वे मिल गए हैं।”
दोनों अभी बातें कर ही रहे थे कि माबाईल की घंटी बज उठी। नन्दिनी ने देखा, कामवाली बाई सरोज का फोन था। अनुज ने पूछा, “किसका फ़ोन है?”
“सरोज का फोन है ।”
उसने बात की तो पता चला कि उसके पति को हार्टअटैक का दौरा पड़ा है। वो अस्पताल में हैं। इसलिए आज काम पर नहीं आ पाएगी।
नन्दिनी के चेहरे पर चिंता की लकीरें देख कर अनुज घबरा गया। उसने पूछा, “क्या हुआ?”
नन्दनी ने बताया कि सरोज के पति को हार्टअटैक का दौरा पड़ा है। पता नहीं इस गरीब के भाग्य में भगवान ने कितने दुख लिखे हैं।
कुछ क्षण बाद वह बोली, “चलो अस्पताल होकर आते हैं। सरोज वहां अकेली है।”
दोनों अस्पताल पहुंचे तो सरोज एक कोने में बैठी रो रहो थी। अनुज ने डाक्टर से बात की तो उसने बताया कि तुरंत सर्जरी करनी होगी। अन्यथा मरीज को बचाना मुश्किल है। अनुज नन्दनी के पास आया और बोला, “बहुत चिंता वाली बात है। डाक्टर तुरंत आपरेशन का कह रहा है। ये गरीब तो एक एक पैसे के लिए संघर्ष करती है। इतने रुपए कहां से लाएगी? ऐसे में इसके पति का बचना संभव नहीं लगता।”
“तुम यहीं रुको। मैं पांच मिनट में वापस आती हूं।” अनुज कुछ पूछता उससे पहले ही नन्दिनी निकल पड़ी। कुछ देर बाद वापस लौटी तो उसके हाथ में एक बैंग था। उसने बेग में से डेढ़ लाख रुपए निकाले और पति को देते कहा, “भगवान ने ये रूपये शायद इस ग़रीब के लिए ही भेजे हैं। प्लीज़, इसकी जान बचा लिजिए। किसी की जान बचाने से बढ़ कर चार धाम की यात्रा नहीं हो सकती।”
अनुज ने डाक्टर को रूपये दिए तब लगा कि चारों धाम की यात्रा का आनन्द उसके भीतर हिलोरें मार रहा है।