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अंधविश्वास 

मिश्रीलाल पंवार
जोधपुर इकाई, महा सचिव,
जर्नलिस्ट एसोसिएशन आफ राजस्थान
मानव अधिकार सेवा संघ
राष्ट्रीय सेन्टर कमेटी सदस्य

उस दिन मै सुबह सुबह आफिस पहुंच गया। दरवाजे पर चौकीदार गणेश मिल गया। वह कुर्सी पर बैठा हुआ कांप रहा था।

मैंने उसे कांपते हुए देखा तो पूछा,” क्या हुआ। कांप क्यों रहे हो। बुखार आ गया है क्या? “

उसने बिना बोले चौराहे की तरफ इशारा किया। मैंने पलटकर देखा, वहां लाल कपड़े से ढकी हुई मटकी रखी हुई थी। शायद किसी अंधविश्वासी का काम था। 

मैंने चौकीदार की तरफ देखा और समझ गया कि वह इस कथित टोना टोटका से डर गया है। मैंने उसका डर मिटाने के लिए उस मटकी को लात मारकर फोड़ दिया और उसके भीतर से बिखरे कचरे को उठाकर दूर कचरा पात्र में डाल आया। वापस आकर चौकीदार से बोला, “अब डरने की जरूरत नहीं है। वैसे भी ये जादू टोना बकवास के अलावा कुछ नहीं है।” 

उसे यूं समझा कर मैं वापस घर आ गया। शाम को आफिस पहुंचा तो पता चला कि चौकीदार को तेज बुखार आ गया है। मैं उसे मिलने गया तो देखा कि वह अब भी डर से कांप रहा था। मुझे देखते ही वह बोला,” किसी ने मुझे मारने के लिए मेरे उपर जादू टोना कर दिया है। मैं अब नहीं बचूंगा।”

मैंने उसे समझाया, ” यह केवल अंधविश्वास है। जादू टोना जैसा संसार में कुछ भी नहीं होता। अगर सच में जादू टोना जैसा कुछ होता तो मैं खुद अब तक मर चुका होता। क्यों कि मटके को मैंने रात मार कर चकनाचूर किया है।”

मैं चौकीदार को समझा कर काम में लग गया। दूसरे दिन किसी काम से शहर से बाहर जाना पड़ा। चार दिन बाद वापस लौटा तो समाचार मिला कि चौकीदार गणेश का निधन हो चुका है।

 सुनकर मेरी आंखें भर आईं। मेरे देखते  एक स्वस्थ्य एवं हस्टपुस्ट आदमी अंधविश्वास की भेंट चढ़ चुका था।

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