पुस्तक मन को प्रिय सदा, पुस्तक लगती गीत।
शुष्क हृदय रस घोलती, पुस्तक मृदु नवनीत।
पुस्तक जिनके पास हो, होते नहीं निराश।
मन में धरती है भरी, मुट्ठी में आकाश।।
पुस्तक गठरी ज्ञान की, पुस्तक सच्ची मीत।
पथ के कंटक बीनती, सदा दिलाती जीत।।
मुक्ता माणिक रत्न हैं, पुस्तक प्रिय पुखराज।
शिखर चढ़े हैं वीर वे, साथ निभाते आज।।
पुस्तक पृष्ठों में दबी, मानव मन की पीर।
शब्द पिघल कर बह रहे, जैसे निर्मल नीर।।
प्रमोद दीक्षित मलय