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सुखद मनोहर धूप

जो जन तपता धूप में, छोड़ छाँव की आस।
चढ़े सफलता सीढ़ियाँ, मन में दृढ़ विश्वास।।

धूप परीक्षा ले सदा, करती कठिन सवाल।
खरे कसौटी जो नहीं, करते वही बवाल।।

तन-मन गरमाहट भरे, सुखद मनोहर धूप।
बिना धूप के कब मिले, भोजन भेषज रूप।।

करें मिताई धूप से, सुख-दुख अपने भूल।
जोर उसी का छाँव पर, मिलें राह में फूल।।

किरणें सूरज की भरें, सकल सृष्टि में प्राण।
वायु मृदा नभ धरा जल, सबका शुभ कल्याण।।

प्रमोद दीक्षित मलय
शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)

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