**मैं हूं आज की नारी*
नयी हैं राहें नयी है, मंजिले
नये अरमानों का नया है आसमा
नयी सोच और नए पंखों संग उड़ चली
करने मुट्ठी में दुनिया सारी
मैं हूं आज की नारी ।
भूली नहीं परंपरा और संस्कृति
रूढ़िवादी बेड़ियों को तोड़ा है अनगिनत आंसुओं को पी कर मैंने यह साहस बटोरा
अब बुलंदियों को छूने की है तैयारी
मैं हूं आज की नारी।
मेरी अस्मिता पर आंख उठाकर
मुझे तोड़ने का दुस्साहस कायरों ने किया है
भूल न पाए कोई कि खूंखार शेरनी को घायल किया है, बहुत सहा मैंने अब सजा देने की है बारी ।
नहीं झुकूंगी ना टूटूंगी
मैं हूं आज की नारी।
अबला नहीं सबला हूं मैं
ये सिद्ध कर मैंने दिखलाया है जल थल नभ हर तरफ विजय का परचम लहराया है
इस जज्बे को सलाम कर रही है
ये दुनिया सारी
मैं हूं आज की नारी ।
आसान नहीं था भ्रूण हत्या से आत्मसम्मान की रक्षा करने तक का सफर
घूंघट की ओट से चांद पर कदम रखने तक की डगर निरंतर लड़ी ना थकी ना मैं हारी
मैं हूं आज की नारी ।
मैं हूं आज की नारी ।
श्रीमती चंद्रिका ( रूपा )सिंह
अधिवक्ता
अखिल भारतीय क्षत्रिय महिला महासंघ अध्यक्ष