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गौतम बुद्ध: एक विलक्षण व्यक्तित्व

चंद्रिका (रूपा )सिंह
अधिवक्ता

राजपूतों का गौरवशाली अतीत उनकी वीरता त्याग और बलिदान से ओतप्रोत है, जब मैं उनके गौरवशाली इतिहास का स्मरण कर रही हू,ं तो एक ऐसे युगपुरुष के स्मृति बार-बार उभर कर आती है। जिनको आज संपूर्ण विश्व गौतम बुद्ध के नाम से जानता है। उनके त्याग और तपस्या की कहानी विलक्षण है। उनके त्याग और तपस्या के समान अन्य कोई उदाहरण संपूर्ण मानव जाति में उपलब्ध नहीं है। आज जहां मानव जाति पैसे और सत्ता के लिए समस्त मानव मूल्यों को दरकिनार कर अंधी दौड़ में शामिल है। वहीं इस महान व्यक्ति ने एक राजा होते हुए भी जीवन के समय की खोज में समस्त भोग विलास का त्याग सहर्ष ही कर दिया था। महात्मा बुद्ध का वास्तविक नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ का जन्म 563 ईसवी पूर्व शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन के घर हुआ था। छोटी सी आयु में ही सिद्धार्थ जीवन और मृत्यु की सच्चाई को समझ गए। उन्होंने यह जान लिया कि जिस प्रकार मनुष्य का जन्म लेना एक सच्चाई है। उसी प्रकार बुढ़ापा और निधन भी जीवन की कभी न टलने वाली हकीकत है। जीवन और इसके वास्तविक सत्य की खोज में 29 वर्ष की आयु में अपनी पत्नी यशोधरा और इकलौते पुत्र राहुल को रात में सोता हुआ छोड़कर राजमहल से निकलकर जंगलों की ओर प्रस्थान कर गए 6 वर्षों के कठोर तप के बाद भी वह अपने उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पाए। इसके पश्चात सिद्धार्थ गया पहुंचे और एक वटवृक्ष के नीचे समाधि लगा कर बैठ गए और निश्चय किया कि अपने प्रश्नों के उत्तर जाने बिना वह यहां से उठेंगे नहीं लगभग 49 दिनों तक ध्यान में रहने के बाद उन्हें सर्वोच्च ज्ञान की प्राप्ति हुई और मात्र 35 वर्ष की आयु में ही वह सिद्धार्थ से महात्मा बुध बन गए! बौद्ध धर्म के उपदेशों का संकलन उनके शिष्यों ने तिपिटकों के अंतर्गत किया।
तिपिटक संख्या में तीन हैविनय पिटक सूतपिटक अभिघमम पिटकप्रसंग वश केस पुत्ततिय सुत में भगवान बुद्ध द्वारा दिए गए उपदेशा अनुसार सुनी सुनाई बातों में अथवा सदियों से चली आ रही परंपरा अथवा शास्त्रों में दी गई बातों अथवा किसी के द्वारा दिए गए धर्मों पदेश का विवेक द्वारा परीक्षण करना चाहिए कि उपरोक्त कथन मानव मात्र के हित में है अथवा अहित में है। उन्होंने किसी का भी और स्वयं का भी अंधानुकरण करने से लोगों को वर्जित किया।
भगवान बुद्ध के उपदेशों का सार इस प्रकार।।सम्यक ज्ञान बुद्ध के अनुसार धर्म यह है जीवन की पवित्रता बनाए रखना जीवन में पूर्णता प्राप्त करना समस्त प्रकार के तृष्णा का त्याग करना निर्वाण प्राप्त करना यह मानना कि सभी प्रकार के संस्कार अनित्य हैं। बुद्ध के अनुसार धर्म यह है परा प्रकृति में विश्वास करना धर्म की पुस्तकों का वाचन मात्र करना उनको आचरण में ना लाना बुध के अनुसार सम्यक आचरण को धर्म शास्त्र के अनुसार अष्टांगिक मार्ग के नाम से जाने जाते हैं। यह निम्न है सम्यक दृष्टि दृष्टि का अर्थ है कि जीवन में हमेशा सुख दुख आता रहता है। हमें अपने नजरिए को सही रखना चाहिए अगर दुख है तो उसे दूर भी किया जा सकता है सम्यक संकल्प इसका अर्थ है कि जीवन में जो काम करने योग्य है जिससे दूसरों का ढंभला होता है। हमें उसे करने का संकल्प लेना चाहिए और ऐसे काम कभी नहीं करनी चाहिए। जो समेत लोगों के लिए हानिकारक साबित हो सम्यक वचन इसका अर्थ है कि मनुष्य को अपनी वाणी का सदैव सदुपयोग ही करना चाहिए। असत्य निंदा और अनावश्यक बातों से बचना चाहिए। समयक कुर्बान मनुष्य को किसी भी प्राणी के प्रति मन वचन कर्म से हिंसक व्यवहार नहीं करना चाहिए। उसे दुराचार और भोग विलास से दूर रहना चाहिए। सम्यक व्यायाम बुरी और अनैतिक आदतों को छोड़ने का सम्यक आजीविका गलत अनैतिक या अधार्मिकमिक तरीकों से आजीविका नहीं प्राप्त करना चाहिए । सम्यक स्मृति इसका अर्थ यह है कि हमें कभी भी यह नहीं भूलना चाहिए कि सांसारिक जीवन क्षणिक और नाशवान है। सम्यक समाधि ध्यान की वह अवस्था जिसमें मन की स्थिरता चंचलता शांत होती है। तथा विचारों का अनावश्यक भटकाव रुकता है। बौद्ध धर्म का सर्वाधिक प्रचार एवं प्रसार का श्रेय सम्राट अशोक को जाता है। लगभग 80 वर्ष की आयु में गौतम बुध महानिर्वाण को प्राप्त हुए।
चंद्रिका ( रूपा) सिंह, अधिवक्ता

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