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पता ही नहीं चला

कृष्ण प्रताप सिंह

*कैसे कटा 21 से 60* 
*तक का यह सफ़र,* 
*पता ही नहीं चला ।*

*क्या पाया, क्या खोया,*
*क्यों खोया,*
*पता ही नहीं चला !*

*बीता बचपन,* 
*गई जवानी* 
*कब आया बुढ़ापा,* 
*पता ही नहीं चला ।*

*कल बेटे थे,* 
*कब ससुर हो गये,* 
*पता ही नहीं चला !*

*कब पापा से* 
*दादु या नानु बन गये!* 
*पता ही नहीं चला ।* 

*कोई कहता सठिया गये,*
*कोई कहता छा गये,* 
*क्या सच है,* 
*पता ही नहीं चला !*

*पहले माँ बाप की चली,*
*फिर बीवी की चली,* 
*फिर चली बच्चों की,* 
*अपनी कब चली,* 
*पता ही नहीं चला !*

*बीवी कहती* 
*अब तो समझ जाओ,* 
*क्या समझूँ,* 
*क्या न समझूँ,* 
*न जाने क्यों,* 
*पता ही नहीं चला !*

*दिल कहता जवान हूँ मैं,*
*उम्र कहती है नादान हूँ मैं,* 
*इस चक्कर में कब* 
*घुटनें घिस गये,* 
*पता ही नहीं चला !*

*झड़ गये बाल,* 
*लटक गये गाल,* 
*लग गया चश्मा,* 
*कब बदली यह सूरत* 
*पता ही नहीं चला !*

*समय बदला,* 
*मैं बदला* 
*बदल गई* *मित्र-*
*मंडली भी* 
*कितने छूट गये,* 
*कितने रह गये मित्र,* 
*पता ही नही चला*

*कल तक अठखेलियाँ*
*करते थे मित्रों के साथ,* 
*कब सीनियर सिटिज़न* 
*की लाइन में आ गये,* 
*पता ही नहीं चला !*

*बहु, जमाईं, नाते, पोते,*
*खुशियाँ आई,* 
*कब मुस्कुराई उदास*
*ज़िन्दगी,*
*पता ही नहीं चला ।*

*जी भर के जी लो प्यारे*
*फिर न कहना कि……*
*”मुझे पता ही नहीं चला।”*

कृष्ण प्रताप सिंह (प्रबंधक

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