ऐ कवि सबकी कहते रहना।
नदियों की कलकल के संग बहते रहना।
ऐ कवि सबकी कहते रहना।
सफ़र पे निकलना तो बदलना ना रास्ता।
चाहे कुश-कांटों से पड़े तेरा वास्ता।
हवाओं की सन-सन के संग बढ़ते रहना।
ऐ कवि सबकी कहते रहना।
मुड़ जो गये भूल जाओगे ठिकाना।
रुलाना हंसाना दिलों में समाना।
कविताओं को जन-जन के संग जोड़ते रहना।
ऐ कवि सबकी कहते रहना।
नदियों की कलकल के संग बहते रहना।
ऐ कवि सबकी कहते रहना।
रौनक द्विवेदी (करथ, आरा)