Site icon AVK NEWS SERVICES

नौ रात देवी मां दुर्गा तेरे नाम – नवरात्रि

होली बीतने के बाद अक्सर लोगों को एक बड़े त्योहार का इंतजार रहता है-नवरात्रि। नौ दिनों तक चलने वाली नवरात्रि का महत्व ही अलग है । यह वर्ष में दो बार मनाई जाती है। एक बार अश्विन माह के शुक्लपक्ष के आरंभ से ही नवरात्रि प्रारंभ होती है और दूसरी आश्विन माह में मनाई जाती है। नवरात्रि का अर्थ है- नौ रातें। नवरात्रि के दौरान हम भगवान रूपी शक्ति को जगत माता के रूप में पूजते हैं। नौ दिन मातारानी व उनके नौ रूपों को पूजने का प्रचलन है। दरअसल ऐसी मान्यता है कि मां हमारा दुख हरने वाली है। कष्टों से मुक्ति देने वाली है। इसलिए उन्हें 108 नामों से जाना जाता है जिनमें मुख्य हैं- सती, साध्वी, भावप्रीता, भवानी, भावमोचनी, आर्या, दुर्गा, जया, आद्या, त्रिनेत्रा, शूलधारिणी, पिनाकधारिणी, चित्रा, चंद्रघंटा, महातपा, मनरू, बुद्धि, अहंकारा, चित्ररूपा, चिता, चिति, सर्वमंत्रमयी, सत्ता, सत्यानंदस्वरूपिणी, अनंता, भाव्या, भाविनी, भव्या, अभव्या, सदागति, शंाभवी, देवमाता आदि।
वास्तव में लोगों का ऐसा मानना है कि भगवान ने अपनी अद्भुत ताकत व शक्तियों को संजोकर जगत की मां को जन्म दिया है, जो कि अपने समस्त संसार रूपी बच्चों पर अपनी छाया रखती है। हालांकि वर्ष में दो बार नवरात्रियों का आयोजन इसलिए होता है ताकि हम उस शक्ति को धन्यवाद कर सकें जो कि धरती को सूर्य के चारों ओर भ्रमण करने में मदद करती है और इस भ्रमण से पूरे संसार में बदलाव होते हैं। वे बदलाव हम इंसानों को उनसे जूझने व उनके साथ चलने की ताकत दें, इसीलिए सर्वश्रेष्ठ शक्ति को पूजा जाता है। नवरात्रि को तीन भागों में बांटा गया है। पहले भाग में पहले तीन नवरात्रों के दौरान दुर्गा के उस रूप को पूजा जाता है जिसने धरती पर बुराई को नाश करने का बीड़ा उठाया है। दूसरे भाग में अन्य तीन नवरात्रों में धन की देवी मां लक्ष्मी की अराधना की जाती है जो कि अपने निर्धन भक्तों पर धनरूपी वर्षा कर सकें। आखिर के तीन नवरात्रों में बृद्धि की देवी सरस्वती जी की पूजा अर्चना कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास किया जाता है। इस लिए नवरात्रि को नौ रातों तक मनाया जाता है ताकि मां के सभी रूपों की अराधना की जा सके।
नवरात्रि के दौरान सबसे पहले घर में एक मिट्टी का कलश स्थापित किया जाता है और उस पर नौ दिनों के लिए अखण्ड ज्योत जलाई जाती है। यह कलश समस्त विश्व का प्रतीक माना जाता है और उस पर जलाई जाने वाली अखण्ड ज्योत से उस आदिशक्ति को पूजा जाता है जो संसार की संचालक है। वैसे वैज्ञानिक तौर पर भी इसके कई प्रमाण हैं जैसे नौ दिनों तक दीया जलने से घर में मौजूद नकारात्मक उूर्जा का स्तर धीरे-धीरे कम होने लगता है। उस ज्योत में से निकलने वाली सकरात्मक उॅर्जा से वहां आसपास के लोगों की डिवाइन शक्ति भी सुधरती है। समस्त संसार में उपलब्ध उर्जा इस ज्योत की ओर आकर्षित होती है और वहां के जीवों को प्रभावित करती है। इससे पर्यावरण में सात्विकता व चौतन्य का विकास होता है। यदि किसी कारणवश यह ज्योत बीच में बुझ जाती है तो इसका प्रायश्चित करने के लिए लोग पूरे दिन निर्जल उपवास करते हैं और जितनी देर के लिए दीया अखण्डित हुआ, उतनी देर के लिए मां के नाम की माला का जाप किया जाता है।
नवरात्रि में अधिकतर पुरुष व महिलाएं पहले व आखिरी या फिर नौ दिन का उपवास करते हैं। वे अनाज का सेवन न करते हुए केवल फल फूल व उपवास में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्रियों का ही सेवन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि अगर सही ढंग से उपवास किया जाए तो तीन प्रतिशत तक पुण्य कमाया जाता है लेकिन कुछ बातों का ध्यान देना आवश्यक है जैसे पूरे दिन सोना नहीं चाहिए बल्कि जगे रहना चाहिए। कुंवारी कन्या का नौ दिन तक पूजन करना चाहिए व उसे नौ दिन भोग लगाना चाहिए। मां को नैवेद्य का भोग लगाना चाहिए। कई जगहों पर मां के नाम पर बने गानों पर गरबा खेला जाता है। गरबे में ताली बजाने का बहुत ही महत्व है क्यों कि इससे देवों को जगाकर उनका आहवाहन किया जाता है।
हर कार्य को करने का अपना एक नियम होता है। उसी प्रकार देवी की अराधना करने के भी कई नियम हैं जैसे – पूजा करने से पहले माथे पर गीला कुमकुम अवश्य लगाएं। देवी मां को भी गीला कुमकुम ही लगाएं। एक या नौ के गुणा में फूल अर्पण करें जैसे कमल, निशिगंध, गुलाब आदि चढ़ाए जा सकते हैं। दो अगरबत्ती जलाकर मां के आगे लगाएं। माता को चमेली का तेल ही चढ़ाना चाहिए। रंगोली बनाकर भी देवी को प्रसन्न किया जाता है। इस तरह नौ दिन तक देवी मां की अराधना जोर शोर से की जाती है। अष्टमी के दिन या नवमी के दिन लोग अपने घर कुंवारी कन्याओं को भोग लगाकर अपने उपवास को संपूर्ण करते हैं। उसी दिन घरों में हवन भी किया जाता है। फिर दसवें दिन देवी के कलश आदि को विसर्जित कर दिया जाता है। इस तरह नौ दिन पूरे देश में नवरात्रि की धूम देखने को मिलती है। जगह-जगह डांडिया खेला जाता है और गरबे का आयोजन किया जाता है। प्रस्तुति: सोनी राय

Exit mobile version