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गुरु बिन होय न बोध

जो जन चाहें मुक्ति सुख, निज जीवन कल्यान।
गुरुपद पंकज का करें, सदा हृदय में ध्यान।।

आत्म तत्व के भाव का, गुरु बिन होय न बोध।
दर्पण लख निज रूप को, ज्यों शिशु रहे अबोध।।

माया परदा को हटा, करा परम से प्रीति।
भला चाहते शिष्य का, सतगुरु की शुभ रीति।

द्वंद्व तमस में जानिए, गुरु के वचन प्रमाण।
समाधान उर उगे ज्यों, प्राची में दिनमान।।

काट-छाँट कर पौध को, माली दे आकार।
सतगुरु अपने शिष्य की, करते साज सँभार।।


प्रमोद दीक्षित मलय
शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)

           

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