राम जगत आधार हैं, राम सृष्टि के हेतु।
राम सकल व्यवहार में, गगन फहरता केतु।।
देह-गेह में राम हैं, रोम-रोम में राम।
राम रमे हर श्वास में, कण-कण में हैं राम।।
राम लोक में व्याप्त हैं, जैसे चीनी ईख।
माखन घी है दूध में, नहीं पड़े हैं दीख।।
आस जीव को राम की, राम मिले सुख होय।
स्वारथ का संसार है, मलय कहे जग रोय।।
जीव बँधा भव रज्जु में, मानव जीवन लोक।
राम मिले तो सिद्ध है, मलय सधे परलोक।।
प्रमोद दीक्षित मलय
शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)