कविता व्यक्ति को रचती है, एक दृष्टि देती है। एक रचनाकार अपने परिवेश से सोये कथ्य के धागे उठाकर समय के करघे पर शब्दों के ताने-बानों से उस स्वप्निल लोक अंबर की बुनावट करता है जहाँ मानवता का पल्लवन हो सके। जहाँ संवेदनाओं का स्वर मुखरित हो, जहाँ परस्पर विश्वास और न्याय के नवल आयाम स्थापित हो सकें, जहाँ विश्व तमाम सीमाओं, कुंठाओं एवं अंतर्विरोधों से परे केवल और केवल मानवता के पक्ष में खड़ा दिखाई दे, जहाँ शांति एवं सौहार्द की निर्मल धारा प्रवहमान हो।
कामायनी प्रकाशन प्रयागराज से 2022 में प्रकाशित शिक्षिका प्रतिमा यादव की प्रथम काव्य कृति “पंखुड़ियाँ” में सम्मिलित रचनाएँ उस विश्वास को पोषण देती हैं जो बेहतर परिवेश रचने के लिए अपने हिस्से का काम बहुत गम्भीरता एवं कर्मठता से कर रहा है। इन कविताओं का कथ्य विस्तार व्यापक है। प्रकृति, पर्यावरण की रक्षा एवं समृद्धि के लिए आह्वान है तो बेटी को बचाने-पढ़ाने एवं आगे बढ़ाने का प्रखर संदेश भी। अतीत के पृष्ठ बाँचती वाणी है तो सुखद भविष्य के दृश्य देखते नयन भी। बचपन की खट्टी-मिट्ठी स्मृतियाँ हैं तो वर्तमान के संघर्ष का चित्रण भी। हिन्दी भाषा के प्रति आत्मीयता के चटख रंग हैं तो छात्राओं की अभिलाषा का मृदुल स्वर भी। प्रतिमा यादव की दृष्टि से कोई क्षेत्र छूटा नहीं है। उन्होंने समय के पदचाप की आहट को न केवल सुना है बल्कि उभरते भावों को अनुभव के धागों में पिरोकर बुना भी है। इसीलिए कोरोना काल भी उनकी कविताओं का विषय बना है।
प्रतिमा यादव कविता को मन के भावों का सहज प्रकटीकरण मानते हुए कहती हैं –
कवयित्री शब्द की शक्ति एवं सामर्थ्य को खूब समझती हैं और शब्दों के उचित बर्ताव का संकेत भी करती हैं,
आलस्य एवं प्रमाद से लक्ष्य प्राप्त सम्भव नहीं। जीवन में सफलता एवं उपलब्धियाँ प्राप्त करने के लिए सतत संघर्ष आवश्यक होता है। तभी वह जीवन में सतत कर्मरत रह संघर्ष को प्रेरित करती हैं। सुंदर पंक्तियाँ देखिए –
और एक अन्य कविता ‘हौसले’ में अवसरों की तलाश करने वालों का वंदन करते हुए कहती हैं कि,
शहर में आकर भी रचनाकार को उनका अपना गाँव और वहाँ के लोग नहीं भूले हैं। वह उनकी कमी को महसूस करती हैं। तभी तो गाँव को स्मरण करते हुए लिखती हैं –
वहीं बालिकाओं के मन की बात लेखनी के माध्यम से व्यक्त करती हैं कि,
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर अभिभावकों को बालिकाओं के प्रति उनके कर्तव्य की ओर ध्यान दिलाती हैं तो आजादी के अमृत महोत्सव पर नील गगन में फहराते लाखों तिरंगा झंडों के सुंदर दृश्यों का अंकन भी करती हैं। वह जीवन में सतत गतिमान रहने में विश्वास करती हैं। इसीलिए अपनी ‘कविता चल जिंदगी थोड़ा और चलते हैं’ में मन के भाव साझा करती हैं कि,
अपनी रचना ‘अनोखे रिश्ते’ में वह लिखती हैं –
कवियत्री प्रतिमा यादव शिक्षिका हैं, इसलिए पुस्तक में विद्यार्थियों और शिक्षकों से जुड़ी हुई रचनाएँ भी शामिल हैं। उन्होंने पारंपरिक पर्व एवं त्योहारों पर लिखा है तो माँ, बेटी एवं बेटा के आत्मीय संबंधों पर भी। रचनाओं में देश का गौरव गान है तो लेखनी की अपरिमित शक्ति का वर्णन भी। मनुष्य की कर्तव्य निष्ठा को प्रणाम निवेदित किया गया है तो कीमती वक्त की पहचान करने की सीख भी।
कविता के रचना पथ पर प्रतिमा यादव ने अपना पहला पग ही रखा है। स्वाभाविक है कविता के व्याकरण, छंद विधान, बिंब एवं प्रतीक योजना, शब्द शक्ति एवं रस अलंकार आदि पर पकड़ दृढ़ नहीं है किंतु रचना शिथिल होकर धारा से भटकी भी नहीं है। भावों की प्रबलता है जो पाठकों को बाँधे रखेगी।
शिक्षिका एवं कवयित्री प्रतिमा यादव कविता के फलक पर अपना सशक्त उपस्थिति दर्ज कराने के लिए प्रथम काव्य कृति ‘पंखुड़ियाँ’ के द्वारा दस्तक दे दी है। उनकी कविताओं का स्वर मानवीय संवेदना से युक्त है, ममता-समता एवं करुणा से ओतप्रोत है। उनकी कविताओं में जीवन के रंग एवं आहट है। उनमें नैराश्य एवं कुंठा के धुँधले चित्र नहीं बल्कि प्रेरणा, आशा एवं विश्वास के मोहक चित्र पूरी ऊर्जा एवं स्निग्घता के साथ उभरे हैं। मुझे विश्वास है, भविष्य में उनकी रचनाधर्मिता भाव एवं संवेदना के स्तर पर अधिक प्रखर होकर प्रकट होती रहेगी। वास्तव में ‘पंखुड़ियाँ’ सुगंध बिखेरती रचनाओं का सुखद संसार रचती हैं। कामायनी प्रकाशन, प्रयागराज से 2022 में प्रकाशित ‘पंखुड़ियाँ’ पुस्तक का मुद्रण नेचुरल शेड येलो पेपर पर साफ-सुथरा और आँखों को सुख देने वाला है। आवरण राज भगत का है। मूल्य उचित प्रतीत होता है। मेरा मानना है कि साहित्य जगत में कृति को यथोचित सम्मान मिलेगा ही, साथ ही सुधी पाठकों का मन भी सुवासित करेगी।