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लू से बचना है तो भरपूर पानी पीते रहें।

गर्मी में जरा-सी सावधानी हटी नही कि लू ने पकड़ा. खासतौर से उत्तर भारत में हर साल हजारों लोग लू का शिकार बनते हैं।कई बार रोगी की मौत तक हो जाती है। हर साल मई-जून के महीनों में दिल्ली समेत सारे उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के ऊपर पहुंच जाता है। कहीं-कहीं पर तो यह 48 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, इतनी तेज गर्मी में चलने वाली हवाएं शरीर को झुलसा कर रख देती है। इन्हें ही ‘‘लू’’ भी कहते हैं।
इतनी गर्मी में अधिक देर तक बाहर -धूप में रहने पर बहुत सारे लोग लू का शिकार हो जाते हैं। हर साल सैकड़ों लोगों के लू लगने के कारण मौत का शिकार हो जाते हैं। लू के कारण बीमार होने वालों की संख्या तो हजारों और लाखों में पहुंच जाती है। वैसे तो मनुष्य गर्म खून वाला प्राणी है। इसका अर्थ यह है कि सामान्य अवस्था में हमारे शरीर के भीतरी हिस्से का तापमान किसी भी मौसम में 98 से 99 डिग्री फारेंहाइट के बीच में रहता है। शरीर का तापमान इससे कम या अधिक होने का अर्थ है शारीरिक क्रियाओं का अस्त-व्यस्त हो जाना, जिनके फलस्वरूप हमारा शरीर अस्वस्थ हो जाता है।
हमारे शरीर में इस प्रकार की व्यवस्था होती है कि वातावरण का तापमान कम या अधिक होने पर भी शरीर के भीतरी हिस्से का तापमान बढऩे नहीं पाता और हमारी समस्त शारीरिक क्रियाएं सुचारू रूप से चलती रहती हैं।
वातावरण का तापमान कम या अधिक होने पर त्वचा में फैली हुई तंत्रिकाओं के माध्यम से मस्तिष्क को तुरंत इसकी सूचना मिल जाती है और सूचना मिलते ही मस्तिष्क शरीर का तापमान की इस घटल-बढ़त से बचाने का उपाय करता है।
वातारण का तापमान कम होने पर शरीर अपनी गर्मी को बाहर नहीं निकलने देता है। दूसरी ओर जैविक क्रियाओं द्वारा ऊर्जा पैदा करके शरीर को गरम रखता है। आसपास का तापमान बढ़ते ही मस्तिष्क से आदेश पाकर पसीने की ग्रन्थियां सक्रिय हो जाती हैं। अधिक पसीना निकलने और उसके वाष्पीकरण में ऊर्जा के खर्च होने से शरीर को ठंडक मिलती है। त्वचा के माध्यम से भी शरीर से ऊर्जा अथवा गर्मी का उत्सर्जन होता है और शरीर के भीतरी हिस्से का तापमान बढऩे नहीं पाता है। मस्तिष्क में हाइफेलमस इन सारी क्रियाओं पर नियंत्रण रखता है।


हमारा शरीर कितनी गर्मी सह सकता है यह निकट वातावरण की मर्गी और नमी, हवा के बहाव,और व्यक्ति किस प्रकार का शारीरिक श्रम कर रहा है, इस बात पर निर्भर करता है। यदि हवा में नमी न हो तो हम कई घंटे बिना श्रम किए 150 डिग्री फारेंहाइट तापमान को भी बरदाश्त कर सकते हैं। लेकिन हवा में नमी की मात्रा अधिक होने पर 100 डिग्री फारेंहाइट तापमान भी सहन नहीं होता है।
होता यह है कि अधिक गर्मी में धूप में रहने पर शरीर कुछ समय तक तो अपना तापमान बढऩे नहीं देता है लेकिन यदि गर्मी अधिक हो और अधिक समय तक धुप में रहे तब शरीर के तापमान को नियंत्रित करने वाली व्यवस्था अव्यवस्थित हो जाती है। इसके फलस्वरूप पहले तो पसीना निकलना बंद हो जाता है। जिससे शरीर के भीतर का तापमान तेजी से बढऩे लगता है। तापमान बहुत बढ़ जाने पर शरीर की कोशिकाओं के रसायनों को बहुत अधिक क्षति पहुंचती है। मस्तिष्क की कोशिकाएं सबसे पहले प्रभावित होती है। बाद में शरीर के अन्य अंगों जैसे गुर्दे और रक्तवाहिनियों की कोशिकाएं प्रभावित होती हैं.और हम इसको ही लू लगना कहते हैं।
लू का प्रभाव थोड़े कम गरम परंतु नम वातावरण में कई घंटे तक लगातार मेहनत वाला काम करने से भी हो जाता है। यदि वातावरण में नमी न हो परंतु काम करने वाल व्यक्ति की पसीने वाली ग्रन्थियां ठीक से काम न करें तब भी लू लग जाती है। लू का असर बूढ़ों और बच्चों तथा मधुमेह के रोगियों पर जल्दी होता है।
लू के शिकार व्यक्ति को तेज सिरदर्द होता है,प्यास लगती है,मतली होती है,बेहोशी छाने लगती है और भूख बिल्कुल नहीं लगती है। हालत अधिक खराब होने पर वह बेहोश हो जाता है। इस समय त्वचा एक दम शुष्क और उसका तापमान 105 डिग्री फारेंनहाइड के आस-पास या उससे भी अधिक हो जाता है। इसके बाद में हृदय की धडक़न रूक जाने से रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।
लू से प्रभावित व्यक्ति का उपचार जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी प्रारंभ कर देना चाहिए। सबसे पहली आवश्यकता होती है रोगी को ठंडे और हवादार स्थान में ले जाना। रोगी के कपड़े या तो ढीले करके अथवा उतार कर उसके पूरे शरीर को ठंडे पानी से भीगे कपड़े से लपेट दें और पंखा चला कर पानी को वाष्पित होने दें। ऐसा करने से शरीर का तापमान धीरे-धीरें कम होगा। यदि संभव हो तो रोगी को कपड़े में लपेटने से पूर्व बर्फीले पानी से नहला दें। शरीर का तापमान कम हो जाने पर भीगा कपड़ा हटाकर उसे पहले सूखे कपड़े में लपेट दें। इतना सब करने के साथ-साथ रोगी को बिना देरी किए अच्छे डॉक्टर को दिखाना न भूलें।
यदि लू का असर हल्का है और बिना समय गवाएं उसे उपयुक्त उपचार मिल गया है वह पूरी तरह स्वस्थ हो जाएगा। लेकिन अधिक गंभीर अवस्था में यदि मृत्यु किसी तरह टल गयी तो मस्तिष्क स्थाई रूप से प्रभावित हो सकता है। लू से बचने के लिए गर्मी में अधिक देर तक तेज धूप में काम न करें। लेकिन यदि काम बहुत आवश्यक हो तो बीच-बीच में छाया में सुस्ताते रहें और धूप में सिर को हमेशा ढक कर रखें। साथ ही बीच-बीच में काफी मात्रा में पानी पीते रहें।

विनीता झा
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