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तरबूज खाइये और गर्मी को दूर भगाइये ।

तरबूज में 90 फीसदी पानी होता है। इसलिए गर्मी का मुकाबला करने के लिए इससे अच्छा कोई फल नहीं। शायद यही वजह है कि इसका जन्म अफ्रीका के गर्म इलाके में हुआ। तरबूज पर काफी वैज्ञानिक अनुसंधान भी हुए हैं।
गर्मी के झलसते मौसम में तरबूज की तरावट शरीर और मन दोनों को प्रसन्न कर देती है। तरबूज के सेवन से ‘‘लू’’ और गर्मी की खुश्की से शरीर की रक्षा होती है। शायद इसीलिए कविवर बिहारी ने कहा है-‘‘प्यासे दुपहर जेठ के जिए मतीरन सोधि’’। राजस्थान में तरबूज को ‘‘मतीरन’’ कहा जाता है। तरबूज के स्वादिष्टï गूदे में अन्य पोषक तत्वों के अलावा 90 फीसदी पानी मौजूद होता है। पानी के इस विशाल भंडार ने तरबूज को रेगिस्तानी इलाकों में ‘‘अमृत’’ जैसी प्रतिष्ठा दिलाई है। उल्लेखनीय है कि तरबूज का जन्म भी अफ्रीका के गर्म इलाके में हुआ था। वहीं से यह दुनियां भर में फैला। हिन्दुस्तान में तरबूज कब और कैसे आया,इस बात को ठीक जानकारी नहीं है। लेकिन हाल में ही कुछ ऐसे सबूत मिले हैं जिनसे पता लगता है कि हड़प्पा सभ्यता के दौरान भारत में तरबूज उगाया जाता था। प्राचीन संस्कृत साहित्य में तरबूज का जिक्र है। संस्कृति में तरबूज को ‘‘कालिंदा’’ और ‘‘कालिंग’’ नाम से पुकारा गया है। आज तरबूज को लगभग पूरे देश में उगाया जाता है। देश के रेतीले रेगिस्तानी इलाके और नदियों के किनारों के कददार गर्मी के मौसम में तरबूज की लंबी लताओं और विशाल फलों से पटे दिखाई देते हैं। फिर भी तरबूज उगाने वाले प्रमुख देशों में भारत का नाम नहीं है।
वैज्ञानिक साहित्य में तरबूज को फलों के बीच नहीं,बल्कि सब्जियों के बीच जगह मिली है। इसका शायद यह है कि तरबूज ऐसे कुल से ताल्लुक रखता है, जिसमें सब्जियों का बहुमत है। इस कुल का नाम है ‘‘कुकर बिटेसी’’ और इसमें लौकी,कददू,जैसी सब्जियां आती हैं। वैसे इसका सबसे करीबी रिश्तेदार टिंडा है,तरबूज की बेलों की लंबाई 40 फुट तक देखी गई है। दस-बारह किलोग्राम तक के फल होना आम बात है। लेकिन एक मन वजन तक के फल देखे गए हैं। फलों का आकार गोल या अंडाकार होता है। फलों की सतह किस्म के अनुसार हल्की हरी,गहरी हरी,हरी-काली या हल्की हरी पर गहरी हरी धारियों दार होती है। लेकिन सभी किस्मों के पके फलों में गूदा गुलाबी या चटक लाल होता है। लेकिन बीजों का रंग आमतौर पर लाल या काला होता है। सफेद हरे,पीले और भूरे बीज भी देखे गए हैं। बीजों का पोषक महत्व गूदे की तुलना मे कही ज्यादा है। इसलिए दुनिया के कुछ हिस्सों मे बड़े बीजों वाली किस्में केवल बीज प्राप्त करने के उद्देश्य से ही उगाई जाती हैं।
उत्तर भारत में मुख्य रूप से ‘‘शाहजहांपुरी’’,‘‘जौनपुरी लाल’’,‘‘फर्रूखाबादी’’,‘‘फैजाबादी’’ ,‘‘भागलपूरी’’,
‘‘इलाहाबादी’’ और ‘‘बरेली कलां’’ किस्में उगाई जाती हैं। ये सभी किस्में बड़े तरबूजों वाली हैं। बड़े तरबूज व्यावसायिक दृष्टिï कोण से ठीक होते हैं, लेकिन आजकल के छोटे परिवारों के लिए बहुत महंगे पड़ते हैं। इस कारण छोटे परिवार अक्सर इस सस्ते और पौष्टिïक फल का लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं। इस समस्या को सुलझाने के लिए नई दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान (पूसा इंस्टीट्ïयूट के नाम से मशहूर)के फल विभाग ने  ‘‘शुगर बेबी’’ नामक किस्म विकसित की है। इस गाढ़े हरें रंग की किस्म के फलों का औसत भार केवल 2-3 किलोग्राम होता है। इसका गूदा लाल और बेहद मीठा होता है। इस किस्म को जल्दी से जल्दी बागवानों के बीच लोकप्रिय करने की जरूरत है। छोटे फलों वाली एक अमेरिकी किस्म,‘‘न्यू हैम्पशायर मिजेट’’ को भारत में बड़े पैमाने पर उगाने के प्रयास जारी हैं। इसके फलों का भार लगभग डेढ़-दो किलोगाम तक होता है। फलों के हल्के पीले-हरे छिलके पर गाढ़ी हरी धारियां होती हैं। इसका छिलका पतला है,इसलिए अंदर के लाल गूदे की मात्रा ज्यादा होती हैं। मध्यम आकार और भार वाले फलों की एक जापानी किस्म,‘‘असाही यमातो’’ भी भारत लाई गई है। इसे भारत में उगाने के नतीजे ज्यादा उत्साहजनक नहीं हैं। वैसे इसका गूदा और सुर्ख लाल रंग का है।
बेहतर गुणों वाली विदेशी किस्मों और भारतीयों किस्मों के मेल से कुछ संकर किस्में भी विकसित की गई हैं। इसमें सबसे ज्यादा सफलता बंगलौर के भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान को मिली हैं। इसने ‘‘अर्का ज्योति’’ नामक दो किस्में विकसित की हैं। ‘‘अर्का ज्योति’’ को राजस्थान की ‘‘आईआईएचआर-20’’ और अमेरिका की ‘‘क्रिमसन स्वीट’’ किस्म  के मेल से तैयार किया गया है जब कि ‘‘अर्का मानिक’’ अमेरिका की इसी किस्म और राजस्थान की ‘‘आईआईएचआर-21’’ के संयोगों  से विकसित की गई है। ‘‘अर्का ज्योति’’ को सन्ï 1971 में और ‘‘अर्का मानिक’’ को सन्ï 1980 में उगाने के लिए जारी किया गया। दोनों ही किस्मों के फलों का और भार 5-6 किलोग्राम है।
अगर उन्नत किस्मों को लगातार वैज्ञानिक ढंग से तरबूज की बागवानी की जाए तो एक हैक्टेयर भूमि में 500-600 क्विंटल फल मिल सकते हैं। लागत खर्च और मजदूरी को निकाल देने पर भी एक हैक्टेयर भूमि में दो से चार हजार रूपए तक आमदनी हो सकती है। नदी के तटों पर पड़ी बेकार कछारी भूमि का इससे बेहतर इस्तेमाल नहीं हो सकता। कुछ बागवान अनजाने में कच्चे फलों को तोडक़र अपनी आमदनी कम कर लेते हैं। वैज्ञानिकों ने पके फलों को पहचानने के तीन तरीके सुझाए हैं। पहला,जहां तरबूज जमीन को छूता है,वहां सफेद या हल्के रंग कर धब्बा फल पकने पर हल्का पीला पड़ जाता है,दूसरा,फलों पर थपथपाने से पके फल से भारी आवाज निकलती है और तीसरा,पके फलों के डंठल का रंग हरे से भूरा पड़ जाता है या ऐसा लगता है जैसे डंठल सूख गया हो। बाजार में तरबूज खरीदते समय ग्राहक भी इसी आधार पर पके फलों को चुन सकते हैं। इधर-उधर ले जाने में फलों को फटने से बचाने के लिए सलाह दी गई है कि फलों को बाग से दोपहर बाद तोड़ा जाए।
तरबूज के फलों को आयुर्वेद में बहुत महत्व प्राप्त है। इसका कारण यह है कि इसमें अनेक  पोषक तत्व,विटामिन  और खनिज लवण पाए जाते है। फलों के 100 ग्राम गूदे से 36 कैलोरी ऊर्जा मिलने के अलावा 9.1 ग्रारम कार्बोहाड्रेट 0.6 ग्राम प्रोटीन और 0.1 ग्राम वसा भी प्राप्त होती है। गूदे की इतनी ही मात्रा से 300 आइयू विटामिन-ए,6 मिग्रा विटामिन -सी और विटामिन -बी और बी-2 भी मिलते हैं। गूदे से कैल्सियम,लोहा,मैग्रीशियम और फास्फोरस जैसे महत्वपूर्ण खनिज भी मिलते हैं। आश्चर्यजनक बात यह है कि अक्सर बेकार समझकर फेंक दिए जाने वाले बीज पोषण की दृष्टिï से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। सौ ग्राम बीजों से 514 कैलोरी ऊर्जा मिलती है। बीजों की इतनी ही मात्रा से 40 ग्राम प्रोटीन और 43 ग्राम वसा भी मिलती है। बीजों में खनिज लवण की मात्रा गूदे की तुलना में कही ज्यादा पाई जाती है। शायद यही कारण है कि तरबूज के बीजों की गिरी बाजार में महंगे दामों पर बिकती है। बीजों की गिरी का इस्तेमाल अनेक स्वादिष्टï व्यंजन में किया जाता है।बीजों से तेल भी निकाला जा सकता है। इस तेल को रोशनी के लिए जलाया जा सकता है। गूदे और छिलके का सफेद भाग भी बेकार नहीं है। इसे पकाकर सब्जी बनाई जा सकती है। गूद से रस निकालकर शराब भी बनाई जा सकती है।
पीलिया के रोगियों को तरबूज बहुत फायदा पहुंचाता है,क्यों कि यह शरीर में खून बाढाता है और खून साफ करता है। खून साफ करने के गुण के कारण चमड़ी के रोगियों में भी तरबूज का सेवन करने से लाभ होता है। तरबूज कफनाशक भी है.कहा जाता है कि तरबूज का नियमित सेवन उच्च रक्त-चाप (हाई ब्लड प्रशेर को)को बढऩे से रोकता है।

विनीता झा

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