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अभिव्यक्ति की आजादी और प्रावधान में चौथे स्तंभ की भूमिका

अभिव्यक्ति की आजादी की आवश्यकता तो बरसों से महसूस की जा रही थी। विश्व के प्रायः प्रत्येक देशों में तानाशाही प्रवृत्ति बढ़ रही थी शासनाध्यक्षों द्वारा प्रेस की आजादी और उनके कर्मियों के कार्यों में अनुचित रूप से दखलअंदाजी और दबाव का प्रचलन आम हो चुका था। और यही बात होता जब प्रेस की आजादी की आवाजें भारत सहित सारी दुनिया में उठने लगी थी! जब तक के भारत में अंग्रेज शासन था तब तक अंग्रेजों ने देश की स्वतंत्रता का पूरी तरह से हनन करके रखा हुआ था! प्रेस पर उनका अंकुश था! अभिव्यक्ति की आजादी तो मानो थी ही नहीं। अगर कोई थोड़ा भी कुछ न्याय की बातें करता , उसे या तो मार दिया जाता या जेल में ठूंस दिया जाता था! भारत की स्वतंत्रता पश्चात प्रेस को संविधान के अनुरूप पूरी तरह से स्वतंत्र कर दिया गया, और प्रेस और मीडिया हर लेखक, कवि स्वतंत्र हवा में खुलकर अपनी बातें रखने लगे! क्योंकि भारत के काल में ऐसा देखने को आने लगा कि भारत की आजादी के बाद प्रेस की स्वतंत्रता और उनके व्यक्तियों जब उनकी कमजोरियों और उनके गलत निर्णयों पर उंगलियां उठाने लगे तो अंकुश की प्रवृति औरयां इनमें भी जाग उठी। शासन और शासित के मध्य में प्रेस पर और उसकी आजादी पर लोगों की अभिव्यक्ति पर तरह-तरह के प्रयोग किए जाने लगे। और उन्हे दबाने का प्रयास किया जाने लगा। यही वह समय था जब वैश्विक रूप से प्रेस की आजादी और स्वतंत्रता के लिए हर तरफ से आवाजें उठने लगीं। जिन पर  ध्यान देने की अत्यंत आवश्यकता थी। पहले तो संयुक्त राष्ट्र सभा की तुरंत पहल करते हुए आवश्यक बैठक आहूत की गई, और इस बैठक में यह निर्णय लिया गया की प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी के लिए कानूनी प्रावधानों का होना अनिवार्य आवश्यक है। और प्रेस की स्वतंत्रता का सुरक्षित रहना भी अत्यंत आवश्यक है।

  और तब संयुक्त राष्ट्र महासभा एवं यूनेस्को के संयुक्त तत्वाधान में उनके जन सूचना विभाग ने सर्वप्रथम 3 मई 1991 को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस या सिर्फ विश्व प्रेस दिवस के रूप में घोषित किया। 3 मई  को सर्वप्रथम प्रेस की स्वतंत्रता के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने और सरकारों को अधिकार का सम्मान करने और बनाए रखने के उनके कर्तव्य की याद दिलाने के लिए मनाया गया। 1948 के मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विंडहोक घोषणा की वर्षगांठ को चिह्नित करने के लिए, अफ्रीकी अखबार के पत्रकारों द्वारा एक साथ रखे गए, स्वतंत्र प्रेस सिद्धांतों का एक बयान 1991 में विंडहोक के नाम से संस्था स्थापित की गई। जो

अनुच्छेद 19 , एक अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन है। जो दुनिया भर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचना की स्वतंत्रता की रक्षा और बढ़ावा देने के लिए काम करता है। इसकी स्थापना 1987 में हुई थी।संगठन का नाम मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद 19 से लिया गया है, जिसमें कहा गया है:—“सभी को राय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है; अधिकार में बिना किसी हस्तक्षेप के राय रखने और सीमाओं की परवाह किए बिना किसी भी मीडिया के माध्यम से जानकारी और विचार प्राप्त करने, प्राप्त करने और प्रदान करने की स्वतंत्रता शामिल है।”

       यह”विंडहोक “नाम संगठनों में एक प्रवृत्ति का एक उदाहरण है। जिसका नामकरण संधियों और कानून के वर्गों के बाद किया जाता है, कुछ ऐसा जिसे ज़ाचरी एल्किन्स ने “अध्याय-कविता ब्रांडिंग” कहा है। यह दिन पत्रकारों के खिलाफ अपराधों के लिए दण्ड से मुक्ति के स्तर की ओर ध्यान आकर्षित करता है, जो विश्व स्तर पर बहुत अधिक है। यूनेस्को कीअभिव्यक्ति को दबाने हेतु मारे गए पत्रकारों की वेधशाला के अनुसार, 2006 और 2020 के बीच, दुनिया भर में बारह सौ से अधिक पत्रकार मारे गए हैं! इन हत्याओं के दस में से नौ मामले न्यायिक रूप से अनसुलझे हैं।    ‌ 

       चूंकि पत्रकार सभी नागरिकों को तथ्यों की रिपोर्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इसलिए उनके खिलाफ हमलों के लिए दंड का विशेष रूप से हानिकारक प्रभाव पड़ता है। जिससे जन जागरूकता और रचनात्मक बहस सीमित हो जाती है। 

     इसके पश्चात 2 नवंबर को, दुनिया भर के संगठनों और व्यक्तियों को अपने देशों में अनसुलझे मामलों के बारे में बात करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। और कार्रवाई और न्याय की मांग करने के लिए सरकार और अंतर सरकारी अधिकारियों को पत्र लिखा जाता है। यूनेस्को पत्रकारों की सुरक्षा और दण्ड से मुक्ति के खतरे पर यूनेस्को के महानिदेशक की द्विवार्षिक रिपोर्ट के निष्कर्षों पर एक जागरूकता बढ़ाने वाला अभियान द वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ न्यूजपेपर्स एंड न्यूज पब्लिशर्स “वान-ईफरा” एक गैर-लाभकारी, गैर सरकारी संगठन है! जो  सौ देशों में छिहत्तर राष्ट्रीय समाचार पत्र संघों, बारह समाचार एजेंसियों,दस क्षेत्रीय प्रेस संगठनों और कई व्यक्तिगत समाचार पत्रों के अधिकारियों से बना है। इस एसोसिएशन की स्थापना 1948 में हुई थी। और 2011 तक, विश्व स्तर पर  अठ्ठारह हजार से अधिक प्रकाशनों का प्रतिनिधित्व किया। “वान” का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करना और उसे बढ़ावा देना है। वहीं  समाचार पत्र प्रकाशन के विकास का समर्थन करना और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देना है। 

           साथ ही इसने यूनेस्को, संयुक्त राष्ट्र और यूरोप की परिषद के लिए परामर्श प्रदान किया है । इसका सताया कर सकते हैं कि अभी भी इतने प्रावधान हो जाने के बाद भी यह किए गए उपाय अपर्याप्त हैं। इसके लिए आवश्यक है कि और अधिक तत्कालिक घटनाओं व कारणों को देखते हुए ठोस उपाय वह नियम बनाए जाने की नितांत महती आवश्यकता है।

सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
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