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बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध की शिक्षाएं

बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म के संस्थापक , सिद्धार्थ गौतम कपिलवस्तु (नेपाल) के शाक्य राजा शुद्धोधन के पुत्र थे। उनकी माता का नाम महामाया था। उनका जन्म लुम्बिनी वन में उस समय हुआ था, जब उनकी माता अपने पिता के घर जा रहीं थी। उनके जन्म के सात दिन बाद ही उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। उनकी जन्मतिथि पाँच सौ पैंसठ वर्ष ईसा पूर्व मानी जाती हैं। उनके जन्म पर जो पुरोहित उपस्थित थे। उन्होंने भविष्यवाणी की कि वह या तो चक्रवर्ती राजा होगा या फिर ज्ञानी साधु सन्यासी ।
सिद्धार्थ बचपन से ही चिंतनशील थे। खेलकूद व अन्य मनोरंजन में उनका मन न लगता था। राजा को भय हुआ कि कहीं उनका पुत्र भविष्यवाणी के अनुसार साधु न हो जायें। अतः उन्होंने उसे गृहस्थ जीवन में प्रवृत्त करने के लिये उसका विवाह यशोधरा से कर दिया। गौतम का एक पुत्र हुआ जिसका नाम राहुल रखा गया। लेकिन होता वही है, जो विधाता को मंजूर रहता है। विधि ने जो उनके जीवन के लिए निर्धारित किया था। आखिर उसने चार घटनाओं के कारण युवराज और गृहस्थ धर्म में प्रवेश कर चुके राजकुमार सिद्धार्थ के जीवन को पूरी तरह से बदल कर रख दिया।
चार घटनाओं ने गौतम के जीवन को बहुत प्रभावित किया। इन्हीं घटनाओं के कारण गौतम को जीवन की क्षण भंगुरता पर बड़ा क्षोभ हुआ। इन घटनाओं का गौतम पर बड़ा प्रभाव पड़ा, और उन्होंने सत्य की खोज करने का निर्णय कर लिया। इन चारों घटनाओं को “चार महान संकेत” कहते हैं।

एक रात को वह अपनी पत्नी, पुत्र तथा सांसारिक वैभवों को त्याग कर आखिरकार राजमहल से निकल गये। उनके घर त्याग को “महाभिनिष्क्रमण” कहते हैं। सत्य की खोज में गौतम पहले तपस्वी ब्राह्मणों के शिष्य हुये, किंतु उनकी शिक्षा दीक्षा से सिद्धार्थ को संतोष नहीं हुआ और वे पाँच शिष्यों के साथ उरुबेला नामक वन में तपस्या के लिये गये। इस वन में गौतम ने बड़ी कठोर तपस्था की। बागाभ्यास आदि से उन्होंने अपना शरीर सुखा डाला। इस तपस्या से उन्हें कुछ मानसिक शांति मिली किंतु उनका लक्ष्य था, ज्ञान प्राप्ति एक बार तो वह मरणासन्न हो गये। तब उन्होंने थोड़ा सा दूध पीकर प्राण रक्षा की। अब उन्होंने निश्चय किया कि देह दण्ड और कठोर तपस्या ज्ञान प्राप्ति के साधन नहीं हैं। अतः निराश होकर उन्होंने तप, उपवास, आदि का त्याग कर दिया। तपस्या छोड़ने के बाद गौतम गया के निकट एक पीपल के वृक्ष के नीचे समाधि लगाकर बैठ गये। रात्रि के अंतिम प्रहर में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई, और तब से वे “बुद्ध” कहलाने लगे।
सांसारिक जीवन के संबंध में बुद्ध भगवान के विचार तर्क युक्त थे। उन्होंने सर्व साधारण को सरल तथा सुस्पष्ट भाषा में समझाया कि जीवन के कष्टों से कैसे छुटकारा मिल सकता है। बुद्ध की शिक्षायें निम्न हैं।:

सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”

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