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बचपन को ना धकेले तनाव में !

पहले काम की व्यवस्था में बच्चों को किसी भी चीज के लिए माना नहीं करना फिर अचानक ही हजारों बंदिशें और फैसले बच्चों पर थोपना शुरू कर देना। ऐसा ही हाल आज हरेक घर का है। अक्सर पैरेंटस बच्चों की शैतानियां और मनमर्जीया देखकर चिंतित रहते है कि भविष्य में हमारा बच्चा क्या करेगा।

इस कारण कभी-कभार पैरेंट्स उनपर काफी गुस्सा करने के साथ ही पिटाई तक कर देते हैं। बच्चों के साथ पैरेंट्स का इस तरह का व्यवहार उनके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बाधक बनने के साथ ही बच्चों को उनके पैरेंटस से दूर भी करता है। इस परिस्थिति के लिए पैरेंटस ही कसुरवार होते है इसलिए उन्हें ही इससे निकलने का प्यार भरा रास्ता निकलना होगा। आइए कुछ ऐसे रास्ते अपनाएं जिन पर चल कर आप बच्चों को आजादी देकर भी उनका ख्याल रख सकती हैं।

उतनी ही आजादी दें, जितनी जरूरी हो:-

पहले काम के चक्कर में आप उन्हें कुछ भी करने के लिए माना नहीं करते और हां कर देते है। उस हां के बाद जब आप उनपर अंकुश लगाने लगते है तो बच्चों का वो रास नहीं आता और वे चिड़चिड़े हो जाते है। उसका व्यवहार हर बार ना सुनते-सुनते उत्तेजित होने लगता है इसलिए पैरेंटस को शुरूआत से ही बच्चों को उतनी ही आजादी देनी चाहिए जिसके लिए वे कभी रोक-टोक ना कर सकें। और जिससे बच्चों को पता चल सकें कि उनकी सीमा कहां तक हैं।

बनें बच्चों के रोल माॅडल:-

माता-पिता का निरंकुशता व्यवहार, आपसी लड़ाई-झगड़ा एवं कलहपूर्ण वातावरण बच्चों में असुरक्षा एवं तनाव की स्थिति उत्पन्न करता है। कभी न भूलें कि आप ही अपने बच्चे के रोल मॉडल हैं। अधिकतर लड़के अपने पिता की तरह और बेटियां मां की तरह व्यवहार करते हैं। बच्चे को सदैव अच्छे व्यवहार के लिए प्रेरित करें। बच्चा कुछ मांगे तो सामथ्र्य के अनुसार अवश्य दिलाएं, पर यदि बार-बार जिद्द करे तो आवश्यक नहीं कि उसकी जिद्द हमेशा पूरी की जाए। कभी ना कहना भी सीखें, साथ ही उसे यह अवश्य बताएं कि आप उसे यह वस्तु अभी क्यों नहीं दिला रहे हैं।

बचपन से ही सिखाएं एटीकेट्स:-

बच्चों को शेयर करना सिखाएं। आपका बच्चा दूसरे बच्चे के हाथ से खिलौना छीन लेता है, पर अपना खिलौैना उसे नहीं देना चाहता। इसके लिए उसे समझाएं। दो साल के बच्चे को थैंक्यू, सॉरी जैसे एटीकेट अवश्य सिखाएं। किसी के आने पर नमस्ते और जाने पर बाय करवाना ना भूले। उसे अपने कपड़े, जूते और किताबें सही जगह पर रखना सिखाएं।

थोड़े बड़े होने पर उन्हें बिस्तर ठीक करना व कमरा सुव्यवस्थित रखना अवश्य सिखाएं। बचपन में सीखा गया अनुशासन पूरे जीवन को अनुशासित करता है। पढ़ने-लिखने, टीवी देखने, यूजिक सुनने और इंटरनेट का समय उसके साथ मिलकर निश्चित करें। जब वह आपकी इच्छानुसार कार्य करे तो शाबासी देना न भूलें। ध्यान रहे कि अनुशासित बच्चे जीवन की हर समस्या का सामना पूर्ण आत्मविश्वास से करते हैं।

बच्चों पर सावधानी से रखें नजर:-

बच्चा किसी अध्यापक, दोस्त या किसी बड़ी आयु के व्यक्ति के साथ अधिक समय बिता रहा है तो चैक करें कि वो क्या बातें करते हैं। इसके विपरीत यदि वो किसी टीचर, पड़ोसी या परिचित के पास अकेले जाने को मना करे, तो उसे प्यार से विश्वास में लेकर कारण अवश्य पता करें। उसके दोस्तों के बारे में पूरी जानकारी रखें, पर बच्चे को यह न लगे कि आप उसकी जासूसी कर रहे हैं। आप बच्चे से मित्रवत व्यवहार रखेंगे तो वह स्वयं ही आपको सही बताएगा।

न थोपें उनपर जबरन अपने फैसले:-

आदर्श माता-पिता बनने के लिए जरूरी है कि बच्चों की भावनाओं का पूरा ध्यान रखें। अपने निर्णय उन पर न थोपें। जिस विषय में उनकी रुचि है वही पढने दें। उनके मित्रों के सामने भूल कर भी उनका अपमान न करें। घर की वस्तुओं की खरीदारी में उनकी राय अवश्य शामिल करें। इससे वे खुद को महत्वपूर्ण समझेंगे। बच्चों को बड़ों से प्यार और स मान की अपेक्षा होती है। वो उन्हें भरपूर दीजिए और बदले में वही प्यार और स मान झोली भर कर पाइए।

माता-पिता बनना सृष्टि का सबसे गौरवपूर्ण उपहार है, पर उसको निभाना बेहद कठिन है। खास टिप्स बच्चे की हर बात को प्यार से सुनें। इस तरह के व्यवहार से आप अपने बच्चे से दोस्ताना संबन्ध रख सकती हैं। अपने बच्चे से कभी यह न कहें कि बाद में बात करते हैं, अभी मैं व्यस्त हूं। बच्चे के साथ पूरा वक्त बिताएं। बच्चा अगर अपनी कोई बात आपसे साझा करना चाहता है, तो उसी समय सुनें और अपनी राय दें।

आपकी झप्पी और दुलार से आपका बच्चा आपके करीब आएगा। बच्चे की छोटी-छोटी बातों से उसे प्यार से झप्पी दें, दुलार करें, इससे आपका बच्चा सुरक्षित, खुशमिजाज और दोस्त बना रहेगा। बच्चे से बात करें और हल निकालें। अगर आप अपने बच्चे की मानसिक द्वंद और उसके विचार को सही समय पर नहीं समझ पाए तो बच्चे का मानसिक विकास उस दिशा में नहीं होगा, जिस तरह आप उसे देखना चाहते हैं। उसे बातों-बातों में हौसले और प्रेरणादायक कहानियां सुनाइए।

डा. आषिमा श्रीवास्तव क्लीनिकल साइकोलाजिस्ट, चाइल्ड एंड एडल्ट, मैक्स हास्पिटल, पटपड़गंज से बातचीत पर आधारित

विनीता झा
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