Site icon AVK NEWS SERVICES

उपराष्ट्रपति ने नागौर के मेड़ता सिटी में स्वर्गीय नाथूराम मिर्धा की प्रतिमा का अनावरण किया

किसान को आरक्षण के सकारात्मक नतीजे देखने को मिल रहे हैं : उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने ग्रामीण किसान युवाओं में बढ़ती नशाखोरी और क्षणिक सरल लाभ के लिए कानून के उल्लंघन की प्रवृत्ति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए आगाह किया कि कानून के साथ खिलवाड़ करना न सिर्फ उनके लिए महंगा पड़ेगा बल्कि ग्रामीण किसान समुदाय को भी बदनाम करेगा। उन्होंने कहा कि कानून से ऊपर कोई नहीं होता, देर सबेर कानून का शिकंजा अवश्य कसेगा। उपराष्ट्रपति आज नागौर के मेड़ता सिटी में स्वर्गीय नाथूराम मिर्धा की प्रतिमा के अनावरण के अवसर पर संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि किसान कौम के लिए आरक्षण की लड़ाई कठिन थी जिसमें स्वयं उनका भी योगदान रहा लेकिन आज उसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कृषि, ग्रामीण विकास और सरकारी योजनाओं का लाभ किसानों का अधिकार है। श्री धनखड़ ने किसान युवाओं से कृषि और ग्रामीण विकास के मार्ग पर चलने का आह्वाहन किया। कुछ वर्गों द्वारा पुराने ट्रैक्टरों को हटाए जाने का विरोध किए जाने का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि किसानों ने सदैव परिवर्तन को आगे बढ़ कर अपनाया है। हमें चाहिए कि आज दुनिया में जो हो रहा है हम उससे भी आगे बढ़ें।

भारत के आर्थिक विकास में कृषि के महत्व की चर्चा करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि विश्व में भारत की आर्थिक प्रगति का डंका किसानों के पसीने के कारण ही बज रहा है।

उपराष्ट्रपति और उनकी पत्नी डॉ. सुदेश धनखड़ आज सुबह राजस्थान की  एक दिन की यात्रा पर जयपुर पहुंचे। वहां से उपराष्ट्रपति पुष्कर गए जहां उन्होंने ऐतिहासिक ब्रह्मा मंदिर, श्री जाट शिव मंदिर के दर्शन किए तथा वहां स्वर्गीय नाथूराम मिर्धा की पहल पर बने विश्राम गृह का दौरा किया। इसके बाद उपराष्ट्रपति ने खरनाल स्थित वीरवर तेजा जी मंदिर के दर्शन किए। शाम को उपराष्ट्रपति ने मेड़ता सिटी में नाथूराम मिर्धा की अष्टधातु की बनी प्रतिमा का अनावरण किया।

श्री धनखड़ ने कहा कि कभी सोचा भी नहीं था कि मुझ जैसे साधारण व्यक्ति को बाबा नाथूराम मिर्धा जैसे विराट व्यक्तित्व की प्रतिमा का अनावरण करने का अवसर मिलेगा। उन्होंने कहा कि नाथूराम जी ने सदैव किसानों के हित की बात की और किसानों को भी उन पर पूरा भरोसा रहा।

कृषि आयोग के अध्यक्ष के रूप में नाथूराम मिर्धा के योगदान को याद करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने सर छोटूराम, किसान केसरी बलदेव मिर्धा और चौधरी चरण सिंह के सपनों को साकार करने का कार्य किया। इस अवसर की तुलना उपराष्ट्रपति पद की शपथ लेने के अवसर से की। उपराष्ट्रपति ने कहा कि वे नाथूराम  मिर्धा के स्वप्न को पूरा करने का हरसंभव प्रयास करेंगे।

इस अवसर पर राजस्थान सरकार में कृषि मंत्री श्री लालचंद कटारिया, क्षेत्र के पूर्व विधायक श्री रिछपाल मिर्धा तथा नागौर की पूर्व सांसद सुश्री ज्योति मिर्धा सहित अनेक जनप्रतिनिधि, वरिष्ठ अधिकारी तथा बड़ी संख्या में किसान उपस्थित रहे।

उपराष्ट्रपति के भाषण का मूलपाठ निम्न है

आज मेरे जीवन का यादगार पल है। बाबा जैसा और कोई नहीं है दूर-दूर तक भी नजर फैलाएं,  बाबा की रीढ़ की हड्डी बहुत मजबूत थी।  बाबा का  पूरा कार्यकाल एक-एक मिनट 24 कैरेट गोल्ड की तरह किसान के लिए था। याद करो वह जमाना जब जागीरदारों की कितनी ताकत थी? उस समय कानून की पढ़ाई लेकर बाबा ने जो किया वह कोई सोच भी नहीं सकता।

मेरे और मेरी धर्मपत्नी के लिए आज एक यादगार पल है। उपराष्ट्रपति की शपथ के बराबर यह मौका है मेरे लिए। नाथूराम मिर्धा, एक सोच है, और वे दूर की सोचने वाले आदमी थे। समाज के निर्माणकर्ता, जिन्हें लोग आज भी याद करते हैं। उपराष्ट्रपति बनने के बाद मैंने बाबा का भाषण मंगाया, उनकी सोच बड़ी ही गहराई की थी। जब वे कृषि आयोग के अध्यक्ष थे और मामला था कि किसान को क्या कीमत मिले, उनकी रिपोर्ट आज भी पढ़ने लायक है।

बाबा ने जिस काम की शुरुआत की, उसे आगे बढ़ाना आपका और मेरा कर्तव्य है। चारों तरफ देखिए बाबा की चादर पर  कोई कालिख नहीं लगी।  आज के जमाने में राजनीति कोयले की खान के समान है जिसमें कालिख जरूर लगती है। लेकिन बाबा के ऊपर कभी कोई कालिख नहीं लगी।

बाबा ने किसानों के लिए बहुत काम किए। जयपुर में किसान छात्रावास बाबा की देन है। बाबा ने कई संस्थानों को बड़ा किया लेकिन मन में एक ही बात रखी थी खुद के घर में कुछ नहीं आना है, सब कुछ जनता के लिए जाना है।

बाबा में जरूर कुछ खास था और उनका कोई मुकाबला नहीं है। राजस्थान विधानसभा या लोकसभा हो, सही मायने में वे देश के किसान के विकास में मील का पत्थर हैं, उस महापुरुष की  प्रतिमा का अनावरण करने का सौभाग्य मेरे जैसे साधारण आदमी को मिला है। मेरे दिल की बात यह है कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं इतना बड़ा आदमी  हो जाऊंगा की नाथूराम मिर्धा जी की प्रतिमा का अनावरण करूंगा।

मेरे जीवन में इतना बड़ा अवसर कभी नहीं आया, अतः मैंने बहुत सोच समझकर आज का कार्यक्रम किया और मैंने सोचा था कि मुझे आज के कार्यक्रम में बाबा की आत्मा के अनुसार कार्य करना है। तो मैंने शुरुआत की सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा जी के मंदिर में जाकर। फिर जाट शिव मंदिर में पूजा की, फिर मैं धर्मशाला गया जहां मैंने अपनी धर्म पत्नी के साथ बाबा की सभी तस्वीरों के सामने अपनी फोटो खिंचवाई। मेरा मन भर गया, बाबा कितना बड़े व्यक्तित्व है और उनके साइड में मैं भी खड़ा था।

फिर हम वीर तेजाजी के जन्मस्थान पर गए, वहां नतमस्तक होकर और ऊर्जावान होकर मैं मूर्ति अनावरण के लिए आया। मुझे लगता है हम सभी को नाथूराम जी की दो-तीन बातें याद रखना चाहिए – शिक्षा पर जोर दिया लेकिन कभी किसी को गलत काम करने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया।

और आज के दिन मैं खरी बात नहीं करूंगा तो बाबा के साथ उचित न्याय नहीं होगा क्योंकि वह भी खरी-खरी बात ही कहते थे।

मैं आपसे चिंतन करने के लिए कहूंगा कि हमारे नवयुवक भटकने नहीं चाहिए। अगर आज वे भटक गए और नशे के चक्कर आ गए, कानून के साथ खिलवाड़ कर लिया… हो सकता है कि कानून तोड़ने से तुम्हारा कोई काम निकल जाए। पर मेरी बात याद रखना, गलत काम के गलत अंजाम होते हैं। कानून को हाथ में लेना खुद को बर्बाद करना तो है ही लेकिन अपने समाज को भी कलंकित करना है।

मेरी बात को ध्यान रखना, कोई कानून से ऊपर नहीं है, कानून का शिकंजा देर-सवेर आपकी गर्दन तक पहुंचेगा, टाइम लग सकता है पर कानून का दरवाजा आपको फेस  करना पड़ेग।

ऐसी परिस्थिति में जब हमारे किसान पुत्र प्रतिभावान है, मेहनती है, कड़ी मेहनत कर सकते हैं, मैं उनको आह्वान करता हूं  कृषि, ग्रामीण विकास और सरकारी योजनाओं में भागीदारी, मानव अधिकार है।

जब आरक्षण की लड़ाई लड़ी गई थी किसान समुदाय के लिए, किसान जातियों के लिए, वह लड़ाई आसान नहीं थी। पर जो 20 साल पहले हुआ उसका नतीजा आज जमीन पर देखने को मिल रहा है, उसका नतीजा जबरदस्त रूप से देखने को मिल रहा है।

हमें कोशिश करनी चाहिए कि कृषि के मामले में ग्रामीण विकास के मामले में हम देश और दुनिया को रास्ता दिखाएं। मैं चाहूंगा कि हमारे बच्चे गलत मामलों में न पड़ें, बल्कि प्रगति पर रास्ते पर चलें, सकारात्मक रूप से आगे बढ़ें, समाज कल्याण की सोचें, देश की सोचें और रास्तों से ना भटकें।

माताओं, बहनों, बुजुर्गों और मेरे युवा साथियों वो कहते हैं ना मैंने कम कहा है ज्यादा समझना।

यदि अगर अब नहीं सोचेंगे, तो सोचने का समय नहीं रहेगा। यह देश मूल रूप से किसानों का देश है। यदि हमारी अर्थव्यवस्था का डंका दुनिया में बज रहा है, तो किसान के खून पसीने की वजह से बज रहा है। किसान बदल रहा है। 

मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ, मेरे को पीड़ा हुई, परेशानी हुई जब किसी ने कह दिया कि 10 साल के ट्रैक्टर को सड़क से नहीं हटने देंगे। इसमें दो बड़ी बातें हैं एक कानून का उल्लंघन, किसान का बेटा जो सबके लिए अनाज पैदा करता है वह कानून के खिलाफ कैसे जा सकता है? और उससे भी ज्यादा गंभीर बात पीड़ा की बात परेशानी की बात कि हम समय के साथ नहीं बदलेंगे।

कृषि के क्षेत्र में जो इजरायल में हो रहा है, हम उससे आगे जाना चाहेंगे।  दुनिया के किसी भी कोने में खेती विकास में जो कुछ हो रहा है पशुपालन में जो कुछ और हो रहा है, हम उससे भी आगे जाएंगे।

मुझे आपसे एक ही बात कहनी है बाबा की मूर्ति का अनावरण एक दिन का घटनाक्रम नहीं है। मैं अनावरण कर रहा था तो मेरे मन में एक बात आई और ज्योति जी को मैंने कहा भी कि मैं दिल्ली जाते ही सबसे पहले इंडियन काउंसिल ऑफ़ एग्रीकल्चर रिसर्च  से अनुरोध करूंगा की मूर्ति के आसपास जो भूमि है उसमें यहां की मिट्टी के अनुसार यहां के मौसम के अनुसार वह पेड़ लगाए जाएं जिससे ये जगह हरी भरी दिखे। वो काम हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा?

140 करोड़ को भोजन देने वाली कौम किसान की है, यह भी अगर भविष्य की नहीं सोचेगा तो कौन सोचेगा?

भाइयों और बहनों, मुझे और मेरी धर्मपत्नी को यहां आकर बहुत अच्छा लगा है। यादगार दिन है।

आज मैं यहाँ से तीन बातें लेकर जा रहा हूँ। बाबाजी जितनी मजबूत रीढ़ की हड्डी नहीं हो सतकी, चाहे किसी डॉक्टर को दिखा लो, और हम रीढ़ की हड्डी को हमेशा मजबूत रखेंगे। यह हमारी संस्कृति का प्रतीक है, हमारी सोच का प्रतीक है, हमारे समाज के हित के लिए है, हमारे किसान के विकास के लिए है यह मैं समझता हूँ।

मेरे को तो बड़ा आश्चर्य होता है जब दक्षिण भारत के किसान नेता  बात करते हैं तो वह नाथूराम जी को याद करते हैं। वह कहते हैं उनकी रिपोर्ट पढ़ी?

मैं अगर कोई नाथूराम अनुसंधान अनुसंधान केंद्र अगर बनेगा तो उन्होंने जितने भाषण दिया पार्लियामेंट में वह भेजूंगा। उनकी एक अलग से पुस्तिका बनाऊंगा ताकि उनकी सोच के बारे में आपको पता चल।

नाथूराम मिर्धा ने हमेशा अपने समय से आगे सोचा है आज  वह अगर जिंदा होते तो एक बात का जरूर दुख करते कि हमारे  कुछ बच्चे रास्ते से हट गए हैं और रास्तों से हटके जो काम कर रहे हैं उन्हें लगता है उसमें फायदा है, उन्हें मजा आता है यह काम करने में धमकाने में, लोगों से डराकर काम कराने, पर यह गलती मत करो।  वह काम इतना खतरनाक है जैसे कि कोई आदमी का डायबिटीज से बीमार है वो रोज मीठी खीर खा रहा है, इससे जीवन कम होता है।

मैं यहां पर आकर बहुत प्रसन्न हुआ हूं और दोबारा भी आने का मन करेगा। मैं बस यही कहूंगा कि जो इतने लोग इकट्ठे हुए हैं यह सब बाबा का पराक्रम है बाबा की बात को आगे बढ़ाएं यही हमें प्रण लेना चाहिए।

Exit mobile version