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व्यक्ति की शारीरिक भाषा उसके व्यक्तित्व के विषय में बहुत कुछ बयां कर देती है

सक्सेस गुरु ए के मिश्रा
निदेशक
चाणक्य आई ए एस एकेडमी

यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि जैसे-जैसे एक व्यक्ति अपने बचपन की अवस्था से विकसित होता हुआ किशोरा वस्था और फिर वयस्कावस्था तक पहुंचता है,वह एक विशेष प्रकार का व्यवहार और सोच विकसित कर लेता है,जो कि उसके घर,पड़ोस,विद्यालय और समाज में मौजूद विभिन्न परिस्थितियों  का प्रतिफल होता है। यह काफी हद तक उसकी चाल-ढाल,बातचीत के तौर-तरीकों तथा व्यक्तित्व से संबंधित अन्य गतिविधियों को प्रभावित करता है। औपचारिक तथा अनौपचारिक परिस्थितियों में ये तौर-तरीके समाज द्वारा स्थापित मानकों से भिन्न हो सकते हैं। व्यक्ति की शारीरिक भाषा उसके व्यक्तित्व के विषय में बहुत कुछ बयां कर देती है। आपको हमेशा कमर सीधी रखते हुए चलना चाहिए और बैठते समय उचित मुद्रा का ध्यान देना चाहिए। एक मृदु मुस्कान के साथ उचित अभिव्यक्ति आपके व्यक्तित्व को चार चांद लगा सकती है। बातचीत के दौरान आप को हंसमुख और आत्मविश्वास से लबरेज लगना चाहिए।

साथ ही,एकाग्र एवं दत्तचित रहना भी जरूरी होता है। एकाग्रचित्तता से तात्पर्य सामने वाले व्यक्ति की इच्छा और आवश्यकता के साथ तालमेल बैठाना होता है। जिससे आप बातचीत कर रहे हों उसकी बात को ध्यान पूर्वक सुनना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति चाहता है कि दूसरे व्यक्ति के साथ उसकी अंत:क्रिया फायदेमंद तथा सूचनाप्रद हो,तो एस समय सुनने की कला को विकसित करना आवश्यक हो जाता है।

साक्षात्कार अथवा सामूहिक चर्चा जैसे औपचारिक अवसरों के लिए कुछ स्वीकृत मानक विकसित किये गये हैं,जिनका इन अवसरों पर अवश्य ही पालन किया जाना चाहिए। साक्षत्कार की प्रक्रिया के दौरान उम्मीदवार को अपनी शारीरिक गतिविधियों (जैसे हाथ-पैर हिलाना आदि)को जितना संभव हो सके,कम कर लेना चाहिए। हाथों को इधर-उधर हिलाना,पलकों को जल्दी-जल्दी ऊपर-नीचे करना और अजीब तरह से मुंह बनाना आदि गतिविधियां साक्षात्कार लेने वाले व्यक्ति के मन पर अनावश्यक रूप से गलत प्रभाव डालती हैं। इसी प्रकार की कुछ अन्य गतिधियां भी हैं,जिन पर विशेष रूप से ध्यान दिये जाने की जरूरत है,जैसे दरवाजा खोलते अथवा बंद करते समय अनावश्यक आवाज करना या कुर्सी को खींचते समय चीखने जैसी आवाज उत्पन्न होना। इस प्रकार की गतिविधियों से साक्षात्कार लेने वाले व्यक्ति पर न केवल विपरीत प्रभाव पड़ता है,बल्कि वह चिड़चिड़ापन भी महसूस करता है और उम्मीदवार के प्रति उदासीन हो सकता है।

उम्मीदवार को सीधी अवस्था में कुर्सी पर बैठना चाहिए ,परंतु एकदम जड़ होकर भी नहीं.जब उम्मीदवार को अपने बैठने की मुद्रा बदलने की इच्छा हो तो उसे ऐसे उपयुक्त समय का चयन करना चाहिए,जब उस पर किसी की नजर न हो। अल्पावधि के साक्षात्कार के दौरान बैठने की मुद्रा बदलने के प्रयास से हमेशा परहेज करना चाहिए। अल्पावधि के साक्षत्कार के दौरान बैठने की मुद्रा बदलने के प्रयास से हमेशा परहेज करना चाहिए। बैठने की सर्वोपयुक्त मुद्रा में उम्मीदवार को अपने दोनेां हाथ बांधकर मेज के नीचे रखने चाहिए, जिससे वह आरामदायक महसूस कर सके.साक्षात्कार आरंभ होते ही उम्मीदवार को सामने वाले व्यक्ति द्वारा पूछे गये प्रश्र का उत्तर देते समय इधर-उधर न देखकर सीधे उसी की तरफ देखना चाहिए। इससे आपका आत्मविश्वास प्रदर्शित होता है। इधर-उधर देखने से ऐसा लगता है कि आप असहज महसूस कर रहे हैं और अपने डर तथा बेचैनी को  छुपाने का प्रयास कर रहे हैं। अपनी बात को प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत करने के लिए उम्मीदवार अपनी शारीरिक भाषा का इस्तेमाल कर सकता है। साक्षात्कार लेने वाले व्यक्ति का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए आप बोलते हुए अपने सिर,हाथों आदि का उपयुक्त एवं प्रभावशाली तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं। इस कला में माहिर होने के लिए आप नियमित रूप से प्रतिदिन समाचार वाचकों के हाव-भाव तथा मुद्राओं का अवलोकन कर सकते है। इसी प्रकार साक्षात्कार लेने वाले की बात सुनते समय थोड़ा आगे की ओर झुक सकते हैं। इससे ऐसा लगता है कि सामने वाले की बात सुनने में आप रूचि ले रहे हैं और बात को ध्यान पूर्वक सुन रहे हैं। शारीरिक भाषा अपनी बात को प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत करने में सहायक सिद्घ होते है,परंतु अंतत: आपके मुख से निकले शब्द ही अंतिम रूप से निर्णायक होते हैं।

यदि आप की शारीरिक भाषा एकदम अलग प्रकार का संकेत देती है,तो चाहे अपने कितनी भी दक्षता के साथ अपना जीवन-वृत्त तैयार क्यों न किया हो या सभी कठिन प्रश्रों का भी सही जवाब क्यों न  दिया हो ,साक्षात्कार की बाध को पार करना आसान नहीं होगा।

किसी से बात करते समय और साक्षात्कार के दौरान निम्रलिखित बातों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए।

संयमित लहजे में स्पष्टï रूप से अपनी बात कहें,आवश्यकतानुसार लहजे में परिवर्तन करें तथा एकरसता से बचें।

बोलने से पहले थोड़ा विराम लें,एकदम बोलने से गलतियों होने की संभावना रहती है।

सामान्य से थोड़ा धीमी आवाज मं बात करें।

बहुत ऊंचा अथवा बहुत धाीमा न बोलें।

किसी भी बिंदु पर असहमति की स्थिति में उत्तेजित न हों।

बोलते समय अपने हाथ,मुंह पर न रखें।

बोलते समय अपनी आवाज के तारत्व का ध्यान रखें (अधिक तारत्व वाली आवाज कर्ण कटु मानी जाती है) ।

आपकी आवाज में उत्साह और उत्सुकता झलकनी चाहिए.आगे की ओर झुकना, हाथ खुले रखना, स्वीकृति में सिर को थोड़ा झुकाना आदि क्रियाएं जिम्मेदारी या उत्सुकतो को दर्शाती हैं।

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