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आजादी के अमृत महोत्सव के उद्देश्यों को चरितार्थ करती ‘राष्ट्र साधना के पथिक’

अमृत काल का आगाज़ हो चुका है। अमृत काल अर्थात आज़ादी के पचहत्तर वर्ष पूर्ण होने ( 15 अगस्त, 2022) से लेकर सौवें वर्ष तक का काल। इस अमृत काल का विज़न भारत को एक मज़बूत वित्तीय क्षेत्र के साथ प्रौद्योगिकी-संचालित और ज्ञान-आधारित, सशक्त और समावेशी अर्थव्यवस्था के रूप में विकसित करना है। अमृत काल आरम्भ होने के पचहत्तर सप्ताह पूर्व से ही आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया गया।

इस महोत्सव में लिए गये पांच प्रणों में सबसे पहला प्रण था “स्वतंत्रता संग्राम” जिसका मूल उद्देश्य था “इतिहास में मील के पत्थर, गुमनाम नायकों आदि को याद करना”। इसके माध्यम से न केवल उन गुमनाम नायकों की कहानियों को जीवंत करने का प्रयास किया गया जिनके बलिदान ने हमारे लिए स्वतंत्रता को वास्तविक बना दिया बल्कि 15 अगस्त, 1947 की ऐतिहासिक यात्रा में शामिल उन सभी छोटे बड़े आन्दोलनों से आम जन को परिचित कराने का प्रयास किया गया जिन्हें इतिहास लेखन के दौरान पर्याप्त महत्व नहीं मिल सका ताकि भारत की भावी पीढ़ी इन क्रांतिकारियों के देशप्रेम, त्याग और बलिदान से प्रेरित होकर अमृतकाल में एक सुखी समृद्ध विकसित और सुनहरे भारत के निर्माण की ओर अग्रसर हो सकें। अमृत महोत्सव के इसी उद्देश्य को जीवंत कर रहा है स्वतंत्रता संग्राम में खुद की आहुति देकर मिसाल प्रस्तुत करने वाले 38 क्रांतिकारियों, 10 वीरांगनाओं और एक दिल दहला देने वाले घटनाक्रम से सुसज्जित वरिष्ठ साहित्यकार प्रमोद दीक्षित ‘मलय’ के संपादन में प्रकाशित पुस्तक “राष्ट्र साधना के पथिक”।

शैक्षिक संवाद मंच उत्तर प्रदेश के पुस्तक प्रकाशन योजना के अंतर्गत रुद्रादित्य प्रकाशन प्रयागराज द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में उत्तर प्रदेश के 12 शिक्षकों और 37 शिक्षिकाओं के ऐतिहासिक लेखों को दो खण्डों में विभाजित किया गया है। प्रथम खंड में 1857 की उस प्रथम क्रांति के नायकों को समाहित किया गया है जिसे कतिपय इतिहासकारों ने क्रांति या स्वतंत्रता संग्राम नहीं माना था। इस खंड में आपको भारतीयों के बीच स्वतंत्रता की अलख जगाने वाली वीरांगना झांसी की रानी के जीवन आहुति की कहानी वर्षा श्रीवास्तव सुनाएंगी तो लक्ष्मीबाई का रूप धारण कर उनके लिए ढाल बनने वाली झलकारी बाई की गाथा कंचन बाला उकेरती नजर आएंगी।

29 मार्च,1857 की क्रांति की शुरुआत करने वाले बलिया की माटी के लाल मंगल पांडे की गाथा को शिवाली जायसवाल ने शब्द दिये हैं तो अपनी शायरियों से युवाओं में जोश भर कर क्रांति को नेतृत्व प्रदान करने वाले बहादुर शाह जफर की कहानी सुमन सिंह और दिल्ली को 134 दिनों तक आजाद रखने वाले हरियाणा के गुमनाम नायक राजा नाहर सिंह और उनके साथी गुलाब सैनी और भूरा बाल्मीकि से आपका परिचय कराएंगी नीता कुमारी। बुशरा सिद्दीकी ने बिरजिस कादिर को लखनऊ का नवाब घोषित करते हुए क्रांति का बिगुल फूंकने वाली बेगम हजरत महल और कानपुर में क्रांति को धार देने वाले तात्या टोपे की गाथा मीना भाटिया ने और उनके सहयोगी रहे गुमनाम अजीमुल्ला खां की गाथा को आसिया फारूकी ने विस्तार पूर्वक बयां किया है।

जगदीशपुर के वयोवृद्ध राजा बाबू कुंवर सिंह की अपने हाथ से अपना हाथ काटने की राजेंद्र प्रसाद राव द्वारा लिखी गई गाथा आपकी आंखें नम कर देंगी। सीमा मिश्रा द्वारा लिखी जोधा सिंह अटैया की बावन इमली वाली घटना और अभिषेक कुमार द्वारा लिखित राप्ती नदी के किनारे स्थित सिद्धार्थनगर जनपद के अमरगढ़ की घटना के दौरान हुई अंग्रेजों की बर्बरता दिल दहलाने के लिए काफी है।

राप्ती नदी के किनारे स्थित गोरखपुर के नरहरपुर स्टेट के राजा हरिप्रसाद मल्ल के पराक्रम की रवींद्रनाथ यादव द्वारा लिखी गाथा और लोकप्रिय तरकुलही देवी की आज भी चले आ रहे बलिदान की परंपरा के पीछे बाबू बन्धू सिंह के त्याग, बलिदान, शौर्य, भक्ति और शक्ति की गाथा गर्व से आपका मस्तक ऊंचा कर जाएंगी। श्रुति त्रिपाठी द्वारा लिखित वीरांगना रानी तलाश कुंवरि द्वारा आत्मसम्मान की रक्षा हेतु स्वयं का गर्दन धड़ से अलग कर देने की घटना से पाठक जहां सिर से पांव तक सिहर जाता है तो वही आयुक्त श्री विनोद शंकर चौबे जी द्वारा किया गये प्रयास में एक उम्मीद की किरण दिखाई पड़ती है।

पुस्तक के दूसरे खंड में 1857 की क्रांति के बाद भारत की स्वाधीनता आंदोलन में अपनी आहुति देने वाले 35 क्रांतिकारियों और वीरांगनाओं के व्यक्तित्व और कृतित्व से रूबरू कराया गया है जिनमें क्रांतिकारी आंदोलन के दोनो चरणों के क्रांतिकारी, आदिवासी आंदोलन को धार देने वाले नेता, आम जनमानस में वैचारिक क्रांति लाने वाले समाज सुधारक, पत्रकार, शिक्षाविद् और आध्यात्मिक व्यक्तियों के साथ ऐसे नायकों के जीवनगाथा को शामिल किया गया है जो देश के भीतर और देश के बाहर  रह कर भी स्वाधीनता आंदोलन के साक्षी तो रहे ही स्वतंत्रता के पश्चात एक सुदृढ़ समृद्ध और अखंड भारत के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

राजबहादुर यादव, स्मृति दीक्षित और डॉ सुमन गुप्ता के लेख के माध्यम से आप स्वाधीनता की राह में उदारवाद के विपरीत मत रखने वाले उग्र राष्ट्रवाद के जनक लाल बाल पाल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से आप परिचित होंगे।  19 वर्षीय बालक खुदीराम बोस द्वारा मुजफ्फरपुर के सत्र न्यायाधीश किंग्सफोर्ड पर बम फेंकने की अनुराधा दोहरे द्वारा लिखी घटना और जलियांवाला बाग हत्याकांड के साक्षी रहे उधम सिंह के कमलेश पाण्डेय द्वारा लिखित लंदन में जाकर माइकल ओड वायर को गोलियों से भून देने की घटना आपको रोमांचित कर देगी।

देश की आजादी के लिए क्रांतिकारी घटनाओं को अंजाम देने में आ रहे अर्थ संकट से उबरने के लिए 1925 में  काकोरी ट्रेन एक्शन को सफल बनाने वाले युवा क्रांतिकारियों  राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह के जीवन वृत्त को ऋतु श्रीवास्तव, प्रमोद दीक्षित मलय, प्रतिभा यादव और डॉ. प्रज्ञा त्रिवेदी ने क्रमवार अपने शब्द शिल्प से सजाया है। सांडर्स की हत्या में शामिल भगत सिंह, राजगुरु और आजाद चंद्रशेखर आजाद की ओमकार पाण्डेय, नम्रता श्रीवास्तव और प्रतिमा उमराव द्वारा लिखी जीवनी आपको युवा जोश से परिचित कराएगी तो भगत सिंह और राजगुरु को भगाने में सहयोग के दौरान दुर्गा भाभी का वह कथन आपके समक्ष एक भारतीय वीरांगना की सच्ची तस्वीर को प्रस्तुत कर देगा जिसे आभा त्रिपाठी द्वारा लिखा गया है–

“यदि पुलिस गोली चलाए तो मेरे बेटे को आगे कर देना, क्योंकि देश को अभी तुम्हारी जरूरत है, बेटे की नही।” शहनाज बानो द्वारा लिखित असेंबली बम कांड के आरोपी शहीद सुखदेव, अनीता मिश्रा द्वारा लिखित जतिन दा के 63 दिन की भूख हड़ताल, हरियाली श्रीवास्तव द्वारा लिखित सावरकर द्वारा बनाई गई योजना, डॉ. रचना सिंह द्वारा लिखित हेमू कालाणी के भगत सिंह जैसे फांसी पर लटकने की घटनाएं भारतीय स्वाधीनता के क्रांतिकारी पक्ष का विधिवत वर्णन करती हैं।तो वहीं सीमा कुमारी द्वारा लिखित क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त के उपेक्षा की कहानी आजादी के बाद की व्यवस्था पर कुठाराघात करती है।

        यह सफर यहीं नहीं रुकता। रीनू पाल का लेख आपको अल्लूरी सीताराम राजू से मुखातिब कराएगा जिनके जीवन पर एस०एस० राजामौली द्वारा निर्देशित फिल्म आर.आर.आर. बनी है जिसके नाटू-नाटू गाने को इसी वर्ष ऑस्कर अवार्ड से पुरस्कृत किया गया है। मोनिका सिंह ने आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा के जीवन चरित्र को बखूबी उकेरा है। आजाद हिंद फौज के महानायक रासबिहारी बोस, युवा दिलों की धड़कन सुभाष चंद्र बोस और कैप्टन लक्ष्मी सहगल के जीवन चरित्र का डॉ. पूजा यादव, गायत्री त्रिपाठी और पूजा चतुर्वेदी ने सुंदर उल्लेख किया है।

पत्रकारिता के स्तंभ गदर पार्टी के संस्थापक लाला हरदयाल, आई.सी.एस. अधिकारी का पद त्याग कर अध्यात्म की दुनिया में कदम रखने वाले अरविंद घोष, भारत के शैक्षिक स्तंभ और बी.एच.यू. के संस्थापक मालवीय जी और अपनी पत्रकारिता से जन चेतना लाने वाला गणेश शंकर विद्यार्थी के जीवन चरित्र को क्रमशः विवेक पाठक, विधु सिंह, डॉ श्रवण कुमार गुप्त और अनिल राजभर ने अत्यंत शानदार तरीके से प्रस्तुत किया है। नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित राजा महेंद्र प्रताप सिंह और भारत कोकिला, कांग्रेस की प्रथम भारतीय महिला अध्यक्ष सरोजिनी नायडू की गाथा कुमुद जी और मनीषदेव गुप्ता के शब्दों में आप तक पहुंचेगी।

       पुस्तक में आप कुछ ऐसे महान विभूतियों से भी परिचित होंगे जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में स्वयं को तो समर्पित किया ही, स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत को अखंड समृद्ध सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याययुक्त प्रजातंत्र के रूप में स्थापित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राष्ट्रीय एकता के शिल्पी भारत के प्रथम गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल (अरविंद कुमार सिंह), दिल्ली की पहली महिला मेयर अरूणा आसफ अली (अर्चना वर्मा), उत्तर प्रदेश की पहले मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी (डॉ रेणु देवी), गाजीपुर की माटी के लाल विश्वनाथ शर्मा (शीला सिंह) और बस्ती के राममूर्ति त्रिपाठी (माधुरी त्रिपाठी) के व्यक्तित्व और कार्यों से पुस्तक आपको परिचित कराएगी।

युवा शिक्षाविद और साहित्यकार आलोक कुमार मिश्रा द्वारा लिखित अत्यंत सारगर्भित और नवीन दृष्टि से लगभग सभी लेखों का विश्लेषण और प्रतिनिधित्व करती हुई भूमिका ने पुस्तक की गरिमा और बढ़ा दी है। पुस्तक की छपाई रुद्रादित्य प्रकाशन प्रयागराज द्वारा मोटे पीले पेपर पर स्पष्ट और दृश्य फॉन्ट में की गई है। राज भगत द्वारा डिजाइन किया हुआ कवर पुस्तक को आकर्षक बना रहा है। प्रमोद दीक्षित मलय ने अपने संपादकीय लेख में स्वाधीनता के इतिहास को अत्यंत संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए राष्ट्र साधना के मार्ग पर स्वयं की आहुति देने वाले पथिकों की गाथा लेखन प्रक्रिया का वर्णन किया है। आपके संपादकीय कार्य से पुस्तक त्रुटि रहित और प्रवाहमय हुई है। निश्चित रूप से यह पुस्तक पाठक के मन में स्वतंत्रता के दीवानों के विचारों को अंतर्निहित कर राष्ट्र साधना हेतु प्रेरित करेगी।

कृति – राष्ट्र साधना के पथिक

विधा – आजादी के गुमनाम नायकों की जीवनी

प्रमोद दीक्षित मलय शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)

संपादक – प्रमोद दीक्षित मलय

प्रकाशक – रुद्रादित्य प्रकाशन, प्रयागराज

पृष्ठ – 168,   मूल्य – ₹ 350

समीक्षक शैक्षिक संवाद मंच से जुड़े रचनाधर्मी शिक्षक हैं। गोरखपुर (उ.प्र.)

दुर्गेश्वर राय

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