भोपाल : जेनरेशन-जेड के लिए व कोविड के बाद शिक्षा पाने के लिए विकसित तकनीक पर चर्चा के लिए प्रथम टेस्ट प्रेप द्वारा एक राउंड टेबल वेबिनार का आयोजन किया गया. जिसमें पैनलिस्ट के तौर पर शारदा विद्या मंदिर, बाघमुगलिया भोपाल की प्रिंसिपल गीता छाबड़ा, डाउनटाउन स्कूल गुवाहाटी की प्रिंसिपल माया फर्नांडीस और स्प्रिंगडेल्स स्कूल पूसा रोड की टीचर माला गुप्ता मौजूद रहीं. मॉडरेटर के रूप में सौरभ नंदा मौजूद रहे. पैनलिस्ट गीता छाबड़ा के पास शिक्षकों को प्रशिक्षित करने और माता-पिता को परामर्श देने का 26 वर्षों का बड़ा अनुभव है और वे बड़े परिदृश्य को देखने में विश्वास करती हैं. उनका कहना है कि स्कूल आपको केवल यूनिवर्सिटी के लिए नहीं बल्कि यूनिवर्स के लिए तैयार करता है. दूसरी पैनलिस्ट डॉ.माला गुप्ता को शिक्षा के क्षेत्र में 24 वर्षों का अनुभव है. साथ ही उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा जुलाई 2021 में राधाकृष्णन शिक्षक पुरस्कार भी मिला हुआ है. ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और कोरिया में पाठ्यक्रम विकास और छात्र विनिमय कार्यक्रमों में भाग लेने के बाद वह शिक्षा को वैश्विक व बड़े दृष्टिकोण से देखती हैं. तीसरी पैनलिस्ट माया फर्नांडीस दृढ़ता से छात्रों को अपने स्वयं के दिमाग द्वारा निर्धारित सीमाओं को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करने में विश्वास करती हैं. उनकी शिक्षण शैली में नवीन विधियों को विकसित करना शामिल है. वह कहती हैं कि एक शिक्षक आजीवन शिक्षार्थी होता है और उसके पास बूढ़ा होने का समय नहीं होता.
इस वेबिनार में तीन पैनलिस्टों ने जेनरेशन जेड और कोविड के बाद शिक्षा पाने के लिए विकसित तकनीक को लेकर चर्चा शुरू की. इस चर्चा में यह निकलकर सामने आया कि वर्तमान में शिक्षा का तरीका बदल गया है. इस बदलाव के बाद शिक्षा अधिक सुविचारित और लक्ष्य-उन्मुख, विश्लेषणात्मक, सरलीकरण हो गयी है. छाबड़ा ने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा ने हमें चुनौती दी और कक्षा में उपयोग किए जा रहे लक्ष्यों और उपकरणों पर पुनर्विचार करवाया. वर्तमान में शिक्षकों और अभिभावकों को अपने छात्रों की महत्वपूर्ण सोच, कौशल पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है. फर्नांडीस ने कहा कि खासतौर पर जेनरेशन जेड छात्रों ने शिक्षा के ऑनलाइन माध्यम का इस्तेमाल किया. वहीं शिक्षकों ने इन छात्रों के तकनीक के प्रति जुड़ाव को बनाये रखने के लिए कड़ी मेहनत की. पैनलिस्टों ने चर्चा की है कि कैसे उन्होंने छात्रों की एकाग्रता को बनाए रखने के लिए विभिन्न मनोरंजक गतिविधियों के साथ प्रयोग किया.
डॉ. गुप्ता ने छात्रों के इस विशेष समूह को डिजिटल नेटिव के रूप में संदर्भित करते हुए कहा कि ऑनलाइन माध्यम के चलते छात्रों और शिक्षकों ने कक्षाओं के मल्टीमीडिया दायरे का आनंद लिया, जिसने दृश्य सीखने को भी बढ़ावा दिया. कक्षाएं लेने, समूह परियोजनाओं को संभालने और पाठ्येतर गतिविधियों के आयोजन के लिए कई ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का उपयोग किया गया, जिसके माध्यम से शिक्षकों ने पाठ्यपुस्तक सीखने के बजाय अनुभवात्मक शिक्षा को सफलतापूर्वक पेश किया. छात्रों को उप-समूहों में रखना और उन्हें अकेले काम करने के बजाय एक केस स्टडी-समस्या समाधान सौंपना, लंबे असाइनमेंट लिखना छात्रों के लिए अद्भुत काम करता है. जूम ऐप ने छात्रों को अकेले काम करने और काम पूरा करने के बजाय समूहों में काम करने और समस्या को सुलझाने में मदद करने के लिए एक सुविधा दी. इस दौरान सौरभ नंदा ने निष्कर्ष निकाला कि कई प्लेटफार्मों पर सीखने के माध्यम से एक गहन संज्ञानात्मक जुड़ाव का उच्च शिक्षा के माहौल पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा. शिक्षकों ने अपने छात्रों के लिए सीखने के अनुभवों की योजना बनाने में घंटों बिताए, साथ ही छात्रों को सीखने के लिए सशक्त बनाया. उन्होंने आगे कहा, कि महामारी हम सभी के लिए सीखने की जगह रही है, खासकर शिक्षा से जुड़े लोगों के लिए.