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राज्यों को जल उपयोग दक्षता बढ़ाने के लिए नवीन सिंचाई प्रौद्योगिकियों को सामने लाने पर जोर देना चाहिएः सचिव, डीओडब्ल्यूआर

समिति ने फैसला किया कि अटल भूजल योजना को 2025 के बाद दो और वर्षों के लिए जारी रखा जाना चाहिए

विश्व बैंक ने बीते तीन साल के दौरान भूजल उपयोग दक्षता को प्रमुखता देने और इससे जुड़ी प्रगति के लिए अटल भूजल योजना की प्रशंसा की

 अटल भूजल योजना की राष्ट्रीय स्तर की संचालन समिति (एनएलएससी) की चौथी बैठक आज नई दिल्ली में जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग के सचिव की अध्यक्षता में आयोजित हुई। अटल भूजल योजना (अटल जल) अप्रैल, 2020 से सात राज्यों गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के 80 जिलों में 229 प्रशासनिक विकासखंडों/तालुकों की 8220 पानी की कमी वाली ग्राम पंचायतों में केंद्रीय क्षेत्र की योजना के रूप में पांच वर्ष की अवधि (2020-25) के लिए में लागू की जा रही है।

समिति ने योजना की समग्र प्रगति की समीक्षा की और राज्यों को जल सुरक्षा योजनाओं (डब्ल्यूएसपी) के तहत प्रस्तावित हस्तक्षेपों के कार्यान्वयन के लिए खरीद सहित सभी गतिविधियों में तेजी लाने का निर्देश दिया। समिति ने कहा कि शुरुआती दो वर्षों के दौरान कोविड के कारण योजना के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न हुई थी और यह देखते हुए कि सामुदायिक व्यवहार में बदलाव एक समय लेने वाली प्रक्रिया है, यह निर्णय लिया गया कि योजना के मौजूदा समय के समाप्त होने के बाद अगले दो वर्षों के लिए योजना को जारी रखा जाना चाहिए।

डीओडब्ल्यूआर सचिव श्री पंकज कुमार ने कहा कि योजना का समग्र प्रदर्शन संतोषजनक है और संवितरण से जुड़े संकेतकों के अंतर्गत उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं, हालांकि, राज्यों को अब सिंचाई संबंधी दक्षता बढ़ाने के लिए सिंचाई के क्षेत्र में नई प्रौद्योगिकियों लाने पर जोर देना चाहिए। उन्होंने राज्यों को पीने के पानी के स्रोतों का मानचित्रण करने और उनकी स्थिरता को समझने और अटल जल के तहत हस्तक्षेप से इन स्रोतों को कैसे समर्थन मिल सकता है, इस संबंध में अध्ययन करने के निर्देश दिए।

इस योजना में समुदाय सबसे आगे हैं, इसलिए बैठक में समुदायों के क्षमता निर्माण के महत्व पर भी जोर दिया गया। डीओडब्ल्यूआर में विशेष सचिव सुश्री देबश्री मुखर्जी ने ग्राम पंचायत स्तर पर प्रदान किए जा रहे प्रशिक्षणों की गुणवत्ता के मूल्यांकन के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने सभी भागीदार राज्यों से ग्राम पंचायत विकास योजनाओं (जीपीडीपी) में डब्ल्यूएसपी को एकीकृत करने का भी अनुरोध किया। इस एकीकरण से समय अवधि पूरी होने के बाद भी योजना द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण को स्थिरता मिलेगी।

विश्व बैंक की प्रैक्टिस मैनेजर ने जल उपयोग दक्षता को सबसे आगे रखने के लिए योजना की प्रशंसा की और पिछले तीन वर्षों के दौरान हुई प्रगति का उल्लेख किया। उन्होंने सामुदायिक नेतृत्व वाले स्थायी भूजल प्रबंधन के महत्व पर जोर दिया और इस योजना को अपना पूरा समर्थन दिया।

इस बैठक में उन 7 राज्यों, जहां योजना लागू की जा रही है, के साथ-साथ संबंधित विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया। जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग में विशेष सचिव और संयुक्त सचिव के साथ-साथ विश्व बैंक के दक्षिण एशिया में प्रैक्टिस मैनेजर भी बैठक में शामिल रहे। एनएलएससी की बैठक के बाद वर्कशॉप ऑन बेस्ट प्रैक्टिसेज ऑन सस्टेनेबिल ग्राउंड वाटर मैनेजमेंट हुई, जिसमें सभी 7 राज्यों ने अपने संबंधित राज्यों अटल भूजल योजना के तहत भूजल पुनर्भरण, कुशल जल उपयोग, सिंचाई के तहत नवीन प्रौद्योगिकियां, डाटा का सार्वजनिक प्रकटीकरण आदि पर सर्वश्रेष्ठ अभ्यासों पर प्रस्तुतीकरण दिया। साथ ही, यह योजना मांग पक्ष के हस्तक्षेप को बढ़ावा देने पर विशेष जोर के साथ भूजल प्रबंधन में कैसे बदलाव ला रही है, इस पर भी प्रस्तुतीकरण दिया गया।

अटल जल के प्रमुख पहलुओं में से एक समुदाय में खपत के मौजूदा रवैये लेकर संरक्षण और स्मार्ट जल प्रबंधन तक व्यावहारिक बदलाव लाना है। ग्राम पंचायत स्तर पर समुदायों को पानी से संबंधित डाटा एकत्र करने और फिर जल बजट और जल सुरक्षा योजनाओं (डब्ल्यूएसपी) को तैयार करने में सहायता की जा रही है। इन योजनाओं में एकजुट रूप से काम करने की कवायद के तहत विभिन्न लाइन विभागों द्वारा मांग के साथ-साथ आपूर्ति पक्ष के हस्तक्षेपों के कार्यान्वयन के रूप में समुदायों की इच्छा सूची तैयार की जाती है। इस योजना का उद्देश्य जल के क्षेत्र में काम करने वाले सभी संबंधित विभागों को एक मंच पर लाना है, ताकि डब्ल्यूएसपी को लागू करने में संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सके। यह योजना ऐसे हस्तक्षेपों पर भी जोर देती है जो सिंचाई में पानी की मांग को कम करते हैं और 4.5 लाख हेक्टेयर सिंचित क्षेत्र को कुशल जल तकनीकों जैसे ड्रिप/स्प्रिंकलर, पाइपलाइन के माध्यम से सिंचाई, मल्चिंग, फसल विविधीकरण आदि के तहत ला रहे हैं। योजना को चुनौती यानी प्रतिस्पर्धा पद्धति के रूप में लागू किया जा रहा है जिसमें अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों को अधिक प्रोत्साहन राशि जारी की जा सकती है। इन प्रदर्शनों को संवितरण से जुड़े संकेतक कहे जाने वाले पूर्व-निर्धारित लक्ष्यों के माध्यम से मापा जा रहा है और इससे राज्यों को प्रोत्साहन संवितरण का आधार तैयार होता है।

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