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जैसा अपूर्व सौंदर्य वैसी ही अपूर्व वीरांगना: रानी दुर्गावती

24 जून महारानी दुर्गावती बलिदान दिवस पर विशेष:

 मध्य भारत के एक पहाड़ी राज्य की रानी ने अपनी सीमित ताकत और क्षमता को जानते बूझते हुये भी विशाल सल्तनत मुगल साम्राज्य की मनमानी नहीं चलने दी , ऐसी वीरांगना महारानी दुर्गावती ही हो सकती हैं। जिन्होंने मुगल सम्राज्य की एक न चलने दी। अपनी ताकत और सेना के घमण्ड में मुगल बादशाह और उसके सिपहसालार मद में चूर होकर समझते थे, गोंडवाना राज्य को चींटी की तरह मसल देंगे।

पर नहीं! उनके इरादों पर पानी फेरने वाली वीर रानी दुर्गावती ने अपने जीते जी कभी मुगलों को कामयाब नहीं होने दिया। दुर्गावती की बहादुरी के किस्से मुगलों तक जा पहुँचे थी यही वजह थी वे गोंडवाना राज्य ,जो उनकी आँख में खटकने लगा था। उसे जीतकर मुगल साम्राज्य का हिस्सा बनाने का असंभव सपना देखने लगे थे।

रानी दुर्गावती का विवाह गोंडवाना राज्य के महारा दलपति शाह के साथ हुआ था। रानी दुर्गावती अनिंद्य सुंदरी नारी थी। महाराज दलपति शाह अपनी रानी की दोहरी विशेषता से विशेष प्रभावित थे। जब उन्होंने देखा कि रानी दुर्गावती सुंदरता के साथ रण कौशल में भी पूर्ण पारंगत हैं। दुर्गावती ने घुड़सवारी, तलवार, तीर धनुष आदि सभी युद्धायाँ के संचालन की विधिवत शिक्षा ली थी। उनकी वीरता के डंके चारों और बजने लगे। वे पति के साथ राजकाज के कार्यों में पूरा सहयोग करती थी।

 परंतु रानी दुर्गावती का दुर्भाग्य भी साथ चल रहा था। उन्हें सुख के दिन ज्यादा नसीब नहीं हो पाये। उनके पति गोंडवाना के शासक दलपति शाह की शीघ्र मृत्यु हो गई। इस विपत्ति पर भी रानी दुर्गावती जरा भी विचलित नहीं हुई। इन दुःखद एवं दुष्कर भरे क्षणों में भी उन्होंने कुशलता पूर्वक राज्य का पूरा भार सहजता पूर्वक सम्हाल लिया। उन्होंने अपने अल्प वयस्क पुत्र वीर नारायण को राज्य का उत्तराधिकार सौंप कर उसे गद्दी पर वह बैठाया और स्वयं उसकी संरक्षिका बनकर पूरे राज्य का कार्यभार देखने लगीं। उनके कंधों पर राज्य की सुरक्षा और व्यवस्था मजबूत और सुचारु रुप से चलने लगी।  उनके अधीन बावन गढ़ थे।

 ऐसे समय में जबकि गोंडवाना राज्य धीरे-धीरे सम्हल रहा था तब कई पड़ोसी राजाओं की नीयत खराब हो गयी। उन लोगों ने समझा था कि गोंडवाना राज्य पर अभी आक्रमण कर उसे जीत लेने का का बहुत सुनहरा अवसर है। एक अल्पवयस्क राजा क्या खाक उनका सामना करेगा? यह सोचकर ही मालवा तथा बंगाल के राजाओं ने गोंडवाना राज्य पर आक्रमण उसे जीतने का प्रयास किया। पर रानी दुर्गावती के रहते उन राज्यों का प्रयास कहाँ सफल होना था। सो रानी दुर्गावती के कुशल संचालन में उनकी सेना ने आक्रमणकारियों के मंसूबों को धूल में मिला दिया। युद्ध में रानी दुर्गावती की वीरता के आगे आक्रमणकारियों ने दुम दबाकर भागने में ही अपनी भलाई समझी।

अब तक इन राज्यों की किरकिरी कर चुकी रानी दुर्गावती से चिढ़कर ही कुछ राज्यों ने मुगल साम्राज्य को गोंडवाना राज्य को जीतने का अच्छा अवसर है तथा दुर्गावती के खिलाफ अनाप शनाप भड़काकर मुगल साम्राज्य को  गोंडवाना पर हमला करने के लिये  उकसाया। 1564 ईसवी में आसफ खाँ के नेतृत्व में आखिरकार एक बड़ी मुगल सेना  ने गोंडवाना राज्य पर आक्रमण कर दिया। इस समय मुगलों का बादशाह अकबर था। रानी दुर्गावती भी आँख बंद कर नहीं बैठी थी। उन्हें भी इस बात की खबर हो गई थी कि उनके राज्य के खिलाफ षड्यंत्र रचा जा रहा है।

सो वे भी पूरी तैयारी के साथ कभी भी युद्ध के लिये विधिवत तैयार बैठी थी। रानी ने मुगल सेना का सामना करने के लिये सिंगपुर की धरती का चयन किया। आखिरकार वह दिन आ गया जब दोनों ओर की सेनाओं में रणभेरी बज उठी। तलवारें चमक उठीं। मुगल साम्राज्य की विशाल सेना और रानी दुर्गावती की सीमित सेना के बीच घनघोर युद्ध छिड़ गया। रानी दुर्गावती के नेतृत्व में उनकी सेना ने खूब वीरता का प्रदर्शन किया। राज्य का प्रत्येक योद्धा कई कई मुगल सैनिकों पर भारी  पड़ रहा था।

उधर रानी दुर्गावती की तलवार ने न जाने कितने मुगलों का रक्त पी लिया था। पर उसकी प्यास थी बुझ ही नहीं रही थी। रानी की सेना सहित रानी दुर्गावती के इस विकराल चण्डी रुप को देखकर मुगलों की सेना की घिघ्घी बंध गई। उन्होंने उन्हें चारों ओर से घेर लिया, और आक्रमण करने लगे आखिरकार 24 जून 1554 को युद्धभूमि में लड़ते लड़ते वीरांगना दुर्गादेवी वीरगति को प्राप्त हो गई।

दंत कथाओं में प्रसिद्ध है कि रानी दुर्गावती शेर से भी बहादुर थी। ये शेर का शिकार करती थीं। दुर्गावती की वीरगाथा आज भी जबलपुर, दमोह, सागर, संहित सारे बुंदेलखण्ड के गाँवों में घर घर गाई जाती है। रानी दुर्गावती की वीरगाथा तो बुंदेलखण्ड का मिट्टी में रची बसी हैं।

अद्भुत सुंदर और सौंदर्य की प्रतिमा दुर्गा रानी थी।

रण प्रांगण में मरते-मरते जिसने हार नहीं मानी थीं।।

रानी दुर्गावती के वंशज राजे सुंदरशाह के पास आज भी अनेक दस्तावेज तथा विरासत में मिली सामग्री है जिसमें महारानी दुर्गावती की वीरता भरी गाथा का अकाट्य प्रमाण मिलता है। सिगोरगढ़ के किले तथा सिंगापुर की पहाड़ियों में दुर्गावती काल के बिखरे पुराने रानी के अतीत की निशानियाँ हैं जिन्हें यदा – कदा देखने पर्यटक पहुँचते रहते हैं। जबलपुर स्थित विश्व विद्यालय का नामकरण भी ऐसी महान वीर रानी को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुये रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय का नाम दिया गया है।

सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”

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