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पोस्टपार्टम डिप्रेशन गर्भावस्था में होने वाला तनाव

मां बाप बनना हर इंसान के लिए बेहद खास एहसास होता है। पर गर्भावस्था और बच्चे के जन्म के बाद एक महिला के शरीर में तरह-तरह के बदलाव होते रहते है। कई बार यह बदलाव महिलाओं के लिए डिप्रेशन की वजह बन जाती है। जिसके कारण वे छोटी-छोटी बातो पर चिड़चिड़ी हो जाती हैं। बिना बात रोने लगती हैं या फिर दुखी रहती हैं। इतना ही नहीं वो अपना आत्मविश्वास खो देती हैं। उन्हें लगता है कि अब बच्चा पालना ही उनकी अकेली जिम्मेदारी है और अब वो जिंदगी मे और कुछ कर ही नहीं पाएंगी।

पोस्टपार्टम डिप्रेशन क्या है ?:-

बच्चा होने के बाद एक माता पिता में कई बदलाव आते है जैसे शरीर में हार्मोन्स के स्तर में बदलाव, तनाव महसूस करना, नींदपूरी न हाे पाना। इसके अलावा डर अत्याधिक भावुक होना, चिड़चिड़ापन और मनोदशा मे बदलाव भी बच्चे के जन्म के बाद सामान्य बात है। लेकिन कुछ माताओं में ये समस्या बच्चा होने के कई महीने बाद तक जारी रहती है। मेडिकल की दुनिया में इस स्थिति को पोस्टपार्टम या पोस्टनेटल डिप्रेशन कहा जाता है।

ये वो डिप्रेशन है जिसका इलाज ना किया जाए तो कई हफ्तों या महीनो तक दर्द और तकलीफ देता रहता है। पोस्टपार्टम डिप्रेशन यानी डिलीवरी के कुछ हफ्ते बाद का वो समय जब महिलाएं अवसाद महसूस करती हैं। अकसर इसी की वजह से वह बच्चो के साथ चिड़चिड़ा व्यवहार करती रहती हैं या फिर बिना किसी कारण रोना या उदास रहना उनकी आदत बन जाती है। यदि तुरंत इसका इलाज ना कराया जाए तो यह बच्चे के विकास को प्रभावित कर सकता है।

ओैर दूसरी तरफ ऐसे ही कुछ अनुवाद का एहसास पिता में भी हो सकता है पोस्टपार्टम डिप्रेशन नए पिताओं को भी हानि पहंुचा रहा है, लेकिन माताओं की तुलना में कम। इसके अलावा, महिला के अनुसार पुरुष में मौजूद पोस्टपार्टम डिप्रेशन बच्चे के विकास में कुछ पहलुओं पर अधिक नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। एक शोध अध्ययन में, 10 में से एक नए डैड गंभीर रूप से पोस्टपार्टम डिप्रेशन के मानक मापदंड से जुड़े है। अवसाद की सामान्य जनसंख्या में पुरुषों में 3 से 5 प्रतिशत आश्र्चयजनक वृद्धि हो रही है।

शोध से यह भी पता चला है कि नई माताओं में 14 प्रतिशत पोस्टपार्टम डिप्रेशन होता है। सामान्य जनसंख्या में महिलाओं में तुलनात्मक 7 से 10 प्रतिशत है। अवसादग्रस्त माता पिता अपने बच्चों को सभंावित का समझ पाते है। माता और पिता दोनों ही जो तनावग्रस्त होते है, उनका अपने बच्चों से बातचीत में संलग्न होने की संभावना कम होती है जैसे पढ़ाने, कहानी सुनाने और अपने शिशुओं को गाना गाने आदि में। यदि उनके पिता उदास थे और उनके साथ पढ़ाई नहीं कर पाते है तो शिशुओं की शब्दों की दुनिया बहुत ही छोटी रह जाएगी।

इसलिए ऐसे में परिवार वालो को तुरंत डाॅक्टर की सलाह लेनी चाहिए चूंकि हो सकता है महिला पोस्टपार्टम डिप्रेशन की शिकार हो।

पोस्टपार्टम डिप्रेशन का प्रभाव:

बच्चे के जन्म के बाद सिर्फ पोस्टपार्टम डिप्रेशनही नहीं होता है इसके साथ पोस्टपार्टम फ्लू और साइकोसिस भी असर डालते हैं। पोस्टपार्टम फ्लू थोड़े समय ही रहता है जबकि सबसे कम मामले साइकोसिस के होते हैं। ऐसे पेरंटस को पोस्टपार्टम डिप्रेशन का खतरा ज्यादा होता है जिनके परिवार में आनुवंशिक रूप से यह समस्या होती है। यानी आपके माता पिता को यह परेशानी रही है तो आप को भी हो सकती।

लक्षण:

कारण:

बचाव:

उपचार:

पोस्टपार्टम डिप्रेशन का उपचार प्रायः परामर्श और दवा से होता है।

याद रखें: अपने बच्चे की देखभाल करने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप अपनी देखभाल भी सबसे अच्छे तरीके से करें।

विनीता झा

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