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गुरु पूर्णिमा पर्व पर कुलपति प्रो आनन्द कुमार त्यागी का संदेश

यहां से सम्पूर्ण राष्ट्र व विदेश को भारतीय सनातन धर्म संस्कृति एवं ऋषि/आचार्य परम्परा से बहुत उम्मीद- कुलपति प्रो आनन्द कुमार त्यागी।

“गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाये, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाये।” कबीरदासजी का यह दोहा गुरु के प्रति सम्मान को व्यक्त करते हुए है। आदिकाल से हमारे समाज ने गुरु की महत्ता को स्वीकारा है। ‘गुरु बिन ज्ञान न होहि’ का सत्य भारतीय समाज का मूलमंत्र रहा है। माता बालक की प्रथम गुरु होती है,क्योंकि बालक उसी से सर्वप्रथम सीखता है। भगवान दत्तात्रेय ने अपने चौबीस गुरु बनाए थे। इनके अलावा भी भारतीय धर्म, साहित्य और संस्कृति में अनेक ऐसे दृष्टांत भरे पड़े हैं , जिनसे गुरु का महत्व प्रकट होता है। यहां तक वशिष्ठ को गुरु रूप में पाकर श्रीराम ने ,अष्टावक्र को पाकर जनक ने और संदीपनी को पाकर श्रीकृष्ण-बलराम ने अपने आपको बड़ी भागी माना।

उक्त विचार सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय,वाराणसी के कुलपति प्रो आनन्द कुमार त्यागी ने गुरु पूर्णिमा  पर गुरु शिष्य परम्परा को समाज दर्पण एवं संदेश के रूप मे व्यक्त किया। कुलपति प्रो त्यागी ने कहा कि देववाणी भाषा  संस्कृत का विश्व में स्थापित यह प्रधान मन्दिर है, यहां से सम्पूर्ण देश व विदेश को भारतीय सनातन धर्म संस्कृति एवं ऋषि/आचार्य परम्परा से बहुत उम्मीद है,आज इसी दृष्टि से देश के यशस्वी मा प्रधानमंत्री जी, महामहिम राज्यपाल राज्यपाल/ कुलाधिपति एवं मा मुख्यमंत्री ने इस संस्था के अभ्युदय एवं वैश्विक स्तर पर स्थापित करने के सद्प्रयास में योगदान स्थापित कर रहे हैं।

इसी ज्ञान राशि से पुन: विश्व गुरु बनने के सोपान पर खडे हैं

कुलपति प्रो आनन्द कुमार त्यागी ने कहा कि इसी संस्था के दुर्लभ पाण्डुलिपियों में संरक्षित ज्ञान तत्व के नवीन अन्वेषण के माध्यम से सनातन ऋषि परम्परा के शोध को जन- जन तक ले जा सकते हैं,इससे भारतीय ज्ञान परम्परा एवं संस्कृत शास्त्रों की विशेषता को दर्शा सकते हैं,हम पुन: विश्व गुरु बनने के सोपान पर खडे हैं,जरुरत है हौसले और दृढ संकल्प करने की।

-गुरु शिष्य परम्परा निस्वार्थ और निहशब्द की धरोहर है

गुरु पूर्णिमा का यह पावन पर्व सनातन संस्कृति के अथ का एक प्रमुख हिस्सा है,यहांं के आचार्य गण एवं विद्यार्थी जन गुरु पूर्णिमा के विशेषता को आत्मसात् कर स्वंय को जन- जन के लिये उपयोगी और उदहारण सिद्ध हों।गुरु शिष्य परम्परा निस्वार्थ और निहशब्द की धरोहर है,यह महसूस कर आदर्श जीवन का महत्वपूर्ण अध्याय है।आप भी जागृत हो इस अध्याय को कर्तव्य पथ पर स्थापित करें,सभी को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।

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