यह संस्था 233 वर्षों से निरंतर अपने माध्यम से भारतीय ज्ञान परम्परा को संरक्षित किये हुये है– कुलपति प्रो आनन्द कुमार त्यागी।
वाराणसी: भारत,भारतीय और भारतीयता का संरक्षण संस्कृत शास्त्रों से सम्भव है,संस्कृत से ही हमारी संस्कृति और संस्कार सुरक्षित होंगे।इसी से हमारे चरित्र का निर्माण और संरक्षण होगा। उक्त विचार आज पूर्वान्ह 11:30 बजे सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय,वाराणसी में ऑनलाइन संस्कृत प्रशिक्षण केन्द्र का सम्यक् अवलोकन कर उत्तर प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री श्री जयवीर सिंह ने बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किया।
पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने कहा कि ऑनलाइन संस्कृत प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना कर इस संस्था ने वेद शास्त्रों में निहित भारतीय ज्ञान राशि का व्यापक स्तर पर प्रसार होगा, इससे वैश्विक पटल पर भारतीय संस्कृति से लोग परिचित होकर लाभान्वित होंगे।
इस माध्यम से ज्योतिष,वास्तुशास्त्र,कर्मकांड एवं वेद आदि के वस्तुस्थिति से परिचित हो सकेंगे।ऑनलाइन माध्यम से जुड़कर लोगों के अनेकों प्रश्न विचारों का प्रमाण सहित तत्काल निराकरण होगा। यह संस्था 233 वर्षों पूर्व से स्थापित है इसी संस्था के माध्यम से हमारी विरासत और संस्कृति संरक्षित है।हमारे देश व प्रदेश की सरकार इस संस्था की रक्षा के लिये सदैव समर्पित भाव प्रत्येक कार्य के सहयोगी बन संरक्षण करती रहेगी। हमारे देश के प्रधानमंत्री जी एवं मुख्यमंत्री जी सदैव संस्कृत के प्रति अनुरागी हैं इस संस्था के लिये सहयोगी हैं।
मंत्री जयवीर सिंह ने कहा कि जब संस्कृत मजबूत होगी तभी हमारी संस्कृति और विरासत भी सुरक्षित होगी।इस संस्था का अब स्वर्णिम युग प्रारम्भ होने वाला है उक्त पाठ्यक्रम में दस विषयों में ऑनलाइन पाठ्यक्रम संचालित होंगे। क्रमश: 01- संस्कृत भाषा शिक्षण ,02-अर्चक 03-कर्मकाण्ड, 04-ज्योतिष,05- वास्तु विज्ञान,06-व्याकरण ,07-दर्शन , 08-वेदान्त ,09-. योग ,10- वेद संचालित होगा।
इस पाठ्यक्रम में तीन एवं छ माह का सर्टीफिकेट तथा एक वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम संचालित होगा। पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने विश्व सरस्वती भवन पुस्तकालय मे संरक्षित दुर्लभ पाण्डुलिपियों को देखकर आह्लादित होकर बोले अद्भुत और भारतीय संस्कृति की अनोमल धरोहर है।हमारे संतो एवं आचार्यों ने दशकों पूर्व से ही इस संस्कृति को संरक्षित करने के लिये अद्भुत तकनीक का प्रयोग किया है।
पाण्डुलिपियों को देखकर कहा कि यह हमारे देश की धरोहर है–
1-श्रीमद्भागवतम्ं(पुराण)-संवत्-1181
देश की प्राचीनतम कागज आधारित पाण्डुलिपि है।
2- भगवद्गीता (पुराण) – स्वर्णाक्षरों में लिपि है।
3- दुर्गासप्तशती – कपड़े के फीते पर दो इन्च चौड़ाई रील में अतिसूक्ष्म (संवत 1885) मैग्नीफाइड ग्लास से देखा जा सकता है।
4-रासपंचाध्यायी-(सचित्र)-पुराणोतिहास विषय से युक्त-देवनागरी लिपि(स्वर्णाक्षर युक्त)इसमें श्री कृष्ण जी के सूक्ष्म चित्रण निहित है।
5- कमवाचा (त्रिपिटक पर अंश),
वर्मी लिपि- लाख पत्र पर स्वर्ण की पालिस।सहित अनेकों पाण्डुलिपियों को देखकर कहा कि यह हमारे देश की धरोहर है हमारी सरकार इसके संरक्षण के लिये कार्य कर रही है शीघ्र ही केन्द्रीय सरकार के माध्यम से वृहद् स्तर पर इन्दिरा गाँधी कला केन्द्र के माध्यम से संरक्षण के कार्य प्रारम्भ होंगे।
संस्कृति मंत्रालय से प्राप्त 20 लाख रुपए से हेरिटेज गैलरी व कल्चरल क्लब विकसित किया जाय।इससे नई पीढ़ी को अपने संस्था,क्षेत्र और व्यक्तित्व की जानकारी मिल सकेगी। बतौर विशिष्ट अतिथि विधायक पिंडरा डॉ अवधेश सिंह ने कहा कि पाण्डुलिपियों के संरक्षण एवं ऑनलाइन संस्कृत पाठ्यक्रम से संस्कृत और संस्कृति का सरक्षण होगा इसी से हम राष्ट्रीयता और उत्तम चरित्र का निर्माण कर सकेंगे।
विधायक सैयदराजा सुशील सिंह ने बतौर विशिष्ट अतिथि कहा कि ऑनलाइन संस्कृत पाठ्यक्रम से दूरगामी बहुत अच्छे परिणाम आयेंगे।इससे भारत मे ही नही बल्कि विश्व मे स्थापित होंगे। अध्यक्षता करते हुये कुलपति प्रो आनन्द कुमार त्यागी ने कहा कि संस्कृत शास्त्रों के संरक्षण का यह पवित्र स्थल चरित्र निर्माण और राष्ट्रीयता के जागृति करने का केन्द्र है। संस्कृत शास्त्रों की बदौलत ही हम नई शिक्षा निति को अनुकरणीय और अद्भुत बना पा रहे हैं। यह संस्था 233 वर्षों से निरंतर अपने माध्यम भारतीय ज्ञान परम्परा को संरक्षित करते हुये राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर स्थापित करने में अनवरत संलग्न है।
संस्कृत का ऑनलाइन पाठ्यक्रम माध्यम से ज्ञान के विशिष्ट स्वरुप को सहजता से प्राप्त कर जन उपयोगी सिद्ध होगी। कुलसचिव राकेश कुमार ने संस्कृत शास्त्रों के महत्व पर प्रकाश डालते हुये सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किये हैं। कुलपति प्रो आनन्द कुमार त्यागी एवं कुलसचिव राकेश कुमार ने पुष्पगुच्छ देकर अतिथियों का स्वागत और अभिनंदन किया।
ऑनलाइन संस्कृत प्रशिक्षण केन्द्र के सम्पूर्ण पाठ्यक्रम एवं समस्त प्रक्रिया का संचालन ज्योतिष विभाग के विशिष्ट सहायक आचार्य डॉ राजा पाठक ने किया। विश्वविद्यालय परिवार के प्रो हरिशंकर पान्डेय, प्रो राजनाथ,प्रो दिनेश कुमार गर्ग,क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ सुभाष यादव,डॉ रविशंकर पान्डेय,डॉ दिनेश कुमार तिवारी,उपकुलसचिव केशलाल,अभियंता रामविजय सिंह आदि उपस्थित थे।