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शैक्षिक संवाद मंच द्वारा आयोजित पुस्तक परिचर्चा में उठती रही भावनाओं की लहर

‘स्मृतियों की धूप-छाँव’ को रचनाकारों एवं पाठकों ने सराहा

अतर्रा (बांदा): शैक्षिक संवाद मंच उत्तर प्रदेश द्वारा गत दिवस सायंकाल एक ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया। इसमें मंच द्वारा प्रकाशित संस्मरण विधा पर आधारित पुस्तक स्मृतियों की धूप-छाँव के रचनाकारों और पाठकों ने पुस्तक के विभिन्न पहलुओं पर बेबाकी से अपना विचार रखे। परिचर्चा की शुरुआत करते हुए साहित्यकार एवं संग्रह के संपादक प्रमोद दीक्षित मलय ने पुस्तक के संपादन प्रक्रिया का जिक्र करते हुए कहा- “संस्मरणों में भावनाओं का प्रवाह इतना गहरा है कि संपादन करते समय कई बार मै पाठक बन बैठता, आंखें नम हो जातीं और संपादन कार्य रोकना पड़ता। ”

आगे चर्चा को बढ़ाते हुए ‘अखबार वाला आदमी‘ की लेखिका पायल मालिक ने  पुस्तक कवर को आकर्षक बताते हुए ‘अम्मा तुम उज्ज्वल प्रकाश‘ और ‘सुक्कू संस्मरणों‘ की सराहना की तो बहुत याद आते हैं ‘पापा‘ की लेखिका बिधु सिंह ने पिता पर लिखे संस्मरणों की मुक्त कंठ से तारीफ की। ‘फिर आना गौरैया‘ की लेखिका स्मृति दीक्षित ने ‘शिवम की योग यात्रा‘ और ‘मणि मैडम’ के संस्मरणों का जिक्र करते हुए अनुशासन और समन्वय को जीवन के लिए अति आवश्यक बताया।

नया सवेरा‘ की लेखिका अर्चना रानी अग्रवाल और ‘स्मृति के आंगन‘ में के लेखक संतोष कुशवाहा ने ‘सपनों की दुकान‘ संस्मरण के भावों की सराहना की। ‘मेरी मां‘ के लेखक अशोक प्रियदर्शी और ‘मेरे पिता मेरे अभिमान‘ की लेखिका फरहत माबूद ने कवर पृष्ठ के रंगों और चित्रों के संयोजन को आकर्षित करने वाला बताया तो डा. श्रवण कुमार गुप्ता ने अपने जीवन पर आधारित संस्मरण ‘अहसास‘, श्रुति त्रिपाठी ने अपने मित्र को न्याय न दिला पाने के दर्द का जिक्र करते हुए संपादकीय लेख को बहुत ही सारगर्भित और उपयोगी बताया।

सुक्कू की लेखिका डॉ. शालिनी गुप्ता ने अपने लेख का जिक्र करते हुए कहा कि पुस्तक इतनी अच्छी है कि क्या ही कहें। वह ‘रंगोली के सामान वाला‘ की लेखिका कंचनबाला सावित्री दीदी लेख से तो ‘प्यारी दादी मां‘ की लेखिका वत्सला मिश्र सुंदरी के सुरक्षित आशियाने की यात्रा से प्रभावित दिखीं।

मेरे पिताजी‘ की लेखिका डॉ. कुमुद सिंह ने ग्रामीण परिवेश आधारित संस्मरणों का जिक्र किया तो ‘मेरा बचपन‘ के लेखक राजेंद्र राव ने मंच के अब तक के प्रकाशनों को नवोदित लेखकों के लिए उपयोगी बताया। ‘सावित्री दीदी‘ की लेखिका माधुरी त्रिपाठी ने कई संस्मरणों पर अपने विचार रखे तो ‘मणि मैडम‘ संस्मरण के लेखक दुर्गेश्वर राय ने ‘नन्हे कदमों की आहट‘ सहित कई संस्मरणों का जिक्र करते हुए ‘मणि मैडम‘ के व्यक्तित्व को अत्यंत प्रभावशाली, अनुशासनप्रिय और मिलनसार बताया।

मिट्टी के आंगन‘ में की लेखिका उषा रानी, ‘नन्हे कदमों की आहट‘ की लेखिका अपर्णा नायक और ‘एक लड़की की जिजीविषा‘ की लेखिका डॉ. प्रज्ञा त्रिवेदी ने पुस्तक और अपने संस्मरणों की चर्चा करते हुए  इस उत्कृष्ट कार्य के लिए संपादक महोदय के प्रति कृतज्ञता व्यक्त किया। इसके अतिरिक्त साधना मिश्रा, सुधा रानी, विनोद कुमार, मीरा रविकुल आदि पाठकों ने पुस्तक को नए लेखकों के लिए प्रेरक बताया।

कार्यक्रम के अंत में प्रमोद दीक्षित ने आगामी पुस्तकों विद्यालय में एक दिन, क्रांतिपथ के राही, कोरोना काल में कविता के द्वितीय संस्करण, यात्रा वृत्तांत, डायरी और पत्र लेखन विधा पर आधारित पुस्तकों की योजना पर चर्चा करते हुए सभी प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया।

प्रमोद दीक्षित मलय
शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
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