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’’मनभावन शब्द’’

शब्द से नहीं बड़ा हथियार तीखे शब्द न बोल होती बहुत चुभन।
मीठे शब्द रस घोल दे जाते अपनापन।।
शब्द ही है खींचता हमें अपनी ओर ।
प्रेम के शब्दों में बंधी है जीवन की डोर
जहां को मोह पास से बांधता ये शब्द
शब्द है वो तीर निकली जुबान से
न वापस आते कमान पर
मनभावन शब्द ही बोल।।

पहले सोच फिर बोल इसीलिए सखा बंधु सहेली।
लेंगे कि दिलों में मिश्री घोल तू तोल मोल के बोल।
शब्द ही तो महाभारत युद्ध रचाया था।
श्रापित शब्द ही तो अहिल्या को पत्थर बनाया था ।
इसलिए तीखे शब्द न बोल हिय में अमृत घोल।
तोड़ मरोड़ के ना बोल
दुनिया शब्दों का ही खेल
हां तोल मोल के ही बोल
मनभावन शब्द ही बोल।।

चंद्रिका (रूपा )सिंह
अधिवक्ता

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