राणा सांगा का ये वंशज रखता था राजपूती शान
– श्रीमती चंद्रिका (रुपा ) सिंह
कर स्वतंत्रता का उद्घोष
वह भारत का था अभिमान।।
मानसिंह ने हमला करके
राणा जंगल दियो पठाय
सारे संकट क्षण में आ गए
घास की रोटी दे खवाय।।
हल्दी घाटी रक्त से सन गई
अरिदल मच गई चीख-पुकार
हुआ युद्ध घनघोर अरावली
प्रताप ने भरी हुंकार।।
शत्रु समूह ने घेर लिया था
डट गया सिंह सा कर गर्जन
सर्प सा लहराता प्रताप
चल पड़ा शत्रु का कर मर्दन
मानसिंह को राणा ढूंढे
चेतक पर बनके असवार
हाथी के सिर पर दो टापें
रख चेतक भर कर हुंकार ।।
रण में हाहाकार मचो तब
राणा की निकली तलवार
मौत बरस रही रणभूमि में राणा जले ह्रदय अंगार।।
आखंन बाण लगो राणा के
रण में न कछु रहो दिखाया
स्वामी भक्त चेतक ले उड़ गयो राणा के लय प्राण बचाय।।
मुकुट लगाकर राणा जी को मन्ना जी दय प्रांण गंवाय
प्राण त्याग कर घायल चेतक
सिधो स्वर्ग सिधारो जाय
सौ मूड को अकबर हो गयो।।
जीत ना सको बनाफर राय स्वाभिमान कभी नहीं छूटे चाहे तन से प्राण गवाएं ।।
जीत ना सको बनाफर राय स्वाभिमान कभी नहीं छूटे चाहे तन से प्राण गवाएं।…

