एडुकेशनिस्ट, लेखिका एवं मोटिवेशनल स्पीकर
सोच हर दिन की नई ले पल रही है ज़िंदगी,
बस कभी हँस कर कभी रो ढल रही है ज़िंदगी।
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काट कर यूँ मत रुलाना तुम ज़रा-सा भी इसे,
प्यार की उम्मीद पर ही चल रही है जिंदगी ।
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इश्क से ही सम्भले, तो चैन मिल भी पाएगा,
बैर से कड़वी दवा-सी खल रही है ज़िंदगी।
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बेवजह ही जीतने की होड़ में हम लड़ रहे,
लड़-झगड़ कर बस बिगड़ती, गल रही है ज़िंदगी। ————–
आज आओ सब मिलें सोचें ज़रा समझें ज़रा,
लौ लिए दिल में ‘मिलन’ की जल रही है ज़िंदगी।

