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…वक्त की रफ्तार…

वक्त की रफ्तार इतनी तेज है कि पता ही नहीं चलता कब आया और कब चला गया। बचपन की बेफिक्री से कॉलेज के क्लास रूम तक बहुत से दोस्त से परिचय होता है और भूल जाते हैं समय के साथ किंतु उनमें से कोई एक जो  समय की रफ्तार में भी गायब नहीं होता। सिर्फ एक दोस्त ही नही परिवार बन जाता है उससे मिलने की चाह और कुछ बातें छूट जाने का डर…मात्र एक कोशिश है उस दोस्त के लिए जो अब मेरे परिवार में भी शामिल हो गई  है…

मगर फिर भी कुछ बात अधूरी रह जाएगी
 
राहें दोबारा से आसान हो जाएंगी।
मुरझाई यादों में फिर जान आ जाएगी।।

वो रास्ते रुके से फिर चल पड़ेंगे।
एकबार फिर हम बेवजह लड़ेंगें।।

खुलकर हंसने का फिर सिलसिला होगा।
खोया सा है जो वो सब मिला होगा।।

साथ मुस्कुराने की ख्वाहिश पूरी हो जाएगी।
 मगर फिर भी कुछ बात अधूरी रह जाएगी।।

अंदाज मेरे फिर से वही हो जाएंगे।
ये थोड़े गलत वक्त भी पूरे सही हो जाएंगे।।

विश्वास की सिलन जो कुछ कुछ टूटी है।
आस ज़िंदगी से जो थोड़ी सी छूटी है।।

वो सब जुड़कर पक्की हो जाएगी।
तुम मिलोगी तो सपनों की फिर तरक्की हो जाएगी।। 

कुछ कर दिखाने के जज़्बात निखरेंगे, मेहनत जरूरी हो जाएगी।
मगर फिर भी कुछ बात अधूरी रह जाएगी।।

छोटे मोटे तूफानों से मन ना घबरायेगा।
मुश्किल से मुश्किल समय भी न रत्ती भर डराएगा।।

सहमा हुआ आत्मविश्वास फिर उठ खड़ा हो जाएगा।
तुम्हारे मिलने से ये छोटा मन फिर बड़ा हो जायेगा।।

फिर सावन हो या पतझड़, दोनों ही खिलेंगे।
जब साल भर बाद हम फिर से एकबार मिलेंगे।।

फिर इंतजार को भी थमने की मजबूरी हो जाएगी।
मगर फिर भी कुछ बात अधूरी रह जाएगी।।

-श्रीमती चंद्रिका (रूपा ) सिंह
श्रीमती चंद्रिका ( रूपा ) सिंह
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