चटके हुए गिलास हम

उमेश कुमार सिंह

पिछले कई वर्षाे से हिंदी कविता के क्षेत्र में अनेक छंद एक काव्य-विधा के रूप में उभर कर आये हैं जिनमें जनक छंद भी एक है। जनक छंद को आधार बनाकर अनेक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन भी हुआ है। अनेक पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं। इस छंद की व्याख्या, उसके तत्व और इस छंद की संरचना के सम्बन्ध में भी अनेक कवियों, विद्वानों और छंद-शास्त्रियों ने अपने आलेऽों, पुस्तकों और परिचर्चाओं में अपने विचार प्रकट किये हैं। अगर सभी विचारों का मंथन किया जाए तो जनक छंद एक ऐसा छंद है जो तीन पंत्तिफ़यों में होता है और प्रत्येक पंत्तिफ़ में 13 मात्रएँ होने के कारण कुल 39 मात्रओं वाला छंद है। जो मूल जनक छंद है उसमें पहली और तीसरी पंत्तिफ़ के अंतिम शब्द के तुकांत मिलाये जाते हैं। और इस तुकांत का अंतिम वर्ण गुरु (ै) होता है और अंतिम वर्ण से पहले का वर्ण लघु (।) होता है। हर पंत्तिफ़ में प्रवाह का होना, यति गति का होना आवश्यक है। एक यह बात और कि इन तीनों पंत्तिफ़यों में भाव और विचार की दृष्टि से अंतर्संबंध का होना जरूरी है। 

जैसे-

फ्लेटो चादर तानकर

जितनी है चादर उसे

अपना ही घर मानकरय्

उपर्युत्तफ़ छंद में ‘तानकर’ शब्द में ‘कर’ एवं ‘मानकर’ में भी ‘कर’ यद्यपि लघु-लघु हैं, किन्तु उच्चारण की दृष्टि से यह गुरु हैं। डायमण्ड बुक्स द्वारा प्रकाशित बुक ‘चटके हुए गिलास हम’ डा- कँुअर बेचैन। डॉ- कुँअर बेचैन ने गीत, ग़्ाजल, दोहे, माहिया, हाइकू, उपन्यास आदि विधाओं में बहुत काम किया। इसके साथ-साथ फ्पाँचालीय् एक महाकाव्य भी लिखा। ग़्ाजल की बारीकियाँ बताते हुए फ्ग़्ाजल का व्याकरणय् नामक एक पुस्तक भी लिखी। इन पुस्तकों को पढ़कर लाखों लोगों ने ज्ञान अर्जित किया। और अब जनक छंद, नया कलेवर, नई विधा। पाँच सौ अड़तालीस जनक छंद इस पुस्तक में हैं। डॉ- कुँअर बेचैन जी की सेना के सेनापति/संरक्षक श्री शरद एच रायजादा की अनुयायी में इस पुस्तक का सम्पादन हुआ है। वन्दना और (दुर्गेश अवस्थी) एक सैनिक की तरह काम किये थे। महाकवि डॉ- कुँअर बेचैन फाउण्डेशन की तरफ से डायमंड प्रकाशन के चेयरमैन श्री नरेन्द्र वर्मा जी का आभार व्यक्त करता हूँ। आप सभी पाठकों से निवेदन है कि इस पुस्तक के सारे जनक छंदों को पढ़ें और अपना आशीष प्रदान करें। आशा है कि इन जनक छंदों में से आपको कुछ अवश्य ही पसंद आयेंगे और शायद आपकी जिंदगी में भी कुछ काम आयें।

बेटा क्या तब आएगा 

जब माँ का जीवन-सुमन 

धरती पर मुरझायेगा

जब बूढ़े हो जाओगे

तब ही तुम माँ-बाप का 

दर्द समझ कुछ पाओगे

राह पुत्र ने वह चुनी

जहाँ पुकारें रह गईं 

 मात-पिता की अनसुनी