यत्र तत्र सर्वत्र मेरे आराध्य राम

मेरे आराध्य राम

 राम केवल भारत में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में पूजनीय हैं। सातों महाद्वीप में वाल्मीकि एवं वाल्मीकि कृत रामायण के प्रसंग स्थानीय साहित्य में मिलते हैं। शिलालेखों, सिक्कों, गुफाओं एवं मंदिरों के भग्नावशेषों में राम के साक्ष्य मिलते हैं। विश्व की अनेक भाषाओं में प्रचलित लोककथाओं में रामकथा प्रमुखता से सुनी सुनाई जाती है। इतना ही नहीं अनेक देशों में रामलीला का मंचन आज भी होता है। इन रामलीलाओं में स्थानीय संस्कृति के दर्शन होते हैं। वस्तुत:, राम किसी एक संप्रदाय, जाति, वर्ग, क्षेत्र, धर्म और संस्कृति के आराध्य देव नहीं है। वह तो सभी के देव हैं। आराध्य हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि राम केवल एक नाम नहीं बल्कि एक जीवन पद्धति हैं। जीवन शैली हैं। पुरूषोत्तम हैं।

डॉ संदीप कुमार शर्मा द्वारा सम्पादित पुस्तक मेरे आराध्य राम पुस्तक एक ऐसी ही पुस्तक है। यह पुस्तक युवाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि देश-दुनिया में जो भ्रांतियां व्याप्त है उनका निराकरण करती है यह पुस्तक। पुस्तक को सारगर्भित बनाने के लिए अनेक पुस्तकों के प्रसंग समाहित करने का प्रयास किया है। अनेक अध्यायों में अन्य पुस्तकों के संदर्भ हु-ब-हु रखने का दुस्साहस भी किया और वह इसलिए ताकि हमारे युवा पाठक राम, रामायण और रावण से संबंधित सभी तथ्यों को एक ही पुस्तक में पढ़ सकें। हमारे लिए वाल्मीकि कृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस दोनों ही ग्रंथ धरोहर है। महत्वपूर्ण हैं। त्रेतायुग को समझने के लिए अतिमहत्वपूर्ण ग्रंथ है वाल्मीकि कृत रामायण।

डा संदीप शर्मा का कहना है कि युवाओं से मेरा विशेष आग्रह है कि वह सबसे पहले महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण का अध्ययन अवश्य करें। शेष पाठकों पर निर्भर है कि किसे प्राथमिकता देते हैं। सभी पूर्वग्रहों से मुक्त होकर इस पुस्तक का अध्ययन करने से सभी भ्रांतियां समाप्त होंगी, ऐसा मेरा विश्वास है।  रामायण के राम किसी एक धर्म और विचारधारा के देव नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व के आदर्श हैं। त्रेतायुग के राम का जीवन मानव समुदाय के लिए आज भी प्रासंगिक हैं। उनकी शिक्षाएं, सामाजिक परिवेश और सर्वमानव संभाव उल्लेखनीय है। संपूर्ण विश्व के लिए यह परम सौभाग्य का विषय है कि जन्म भूमि अयोध्या में भव्य राम मंदिर शीघ्र ही दर्शनार्थ खुल जाएगा।  राम! दशरथ-कौशल्या नंदन, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न के अग्रज, सीता के प्रियवर प्रीतम, वनवासी राम! क्यों करते हो भेद प्रियवर! राम नाम के जाप में न नंद छिपा न द्वंद्व छिपा, जो छिपा कण-कण में उससे भला क्या छिपा। मत बांधो राम को सीमा बंधन में त्रिलोकी राम कण-कण में रमा। मेरे राम सिर्फ मेरे नहीं सभी दिलों में बसे। जात-पात से ऊपर उठकर भेद-भाव को रख ताक पर कहलाए मोक्षदा पुरुषोत्तम राम।  संतों की वाणी राम, मित्रता की साख राम, मर्यादा की सीख राम, सत्य की विजय राम, अधर्म की अंतिम सांस राम, प्रजा की सुख-समृद्धि राम, भूत, वर्तमान और भविष्य की आशाएं राम। डायमंड बुक्स के स्वामी आदरणीय नरेन्द्र वर्मा को विशेष वंदन के साथ हार्दिक धन्यवाद देना अपना परम कर्तव्य समझता हूँ जिन्होंने इस पुस्तक का प्रकाशन करने का संकल्प लिया।

दुनिया के लगभग 60 देशों में 22 जनवरी को अयोध्या में भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। उत्साह, उमंग और उल्लास हर हिंदुस्तानी अपने-अपने घरों में दीप प्रज्ज्वलित कर दीपोत्सव बनाने को तत्पर है। जय श्रीराम का उद्घोष सारी दुनिया में गूंजेगा। इसलिए तो कहते हैं यत्र तत्र सर्वत्र राम। सभी से मेरा विनम्र आग्रह है कि सभी पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर पाठक गण पुस्तक पढ़ेंगे तभी उन्हें ज्ञान और आनंद की प्राप्ति होगी। उमेश कुमार सिंह