शब्दानुशासन की समझ बढ़ाती है पुस्तक ‘भाषा संशय-शोधन’

          • प्रमोद दीक्षित मलय

भाषा लोक जीवन में परस्पर कार्य-व्यवहार का साधन, अभिव्यक्ति का हेतु है। भाषा लिखित साहित्य और बोलचाल के रूप में प्रयोग की जाती है। प्राय: न केवल बातचीत में बल्कि लेखन में भी भाषाई अशुद्धियां सुनने-पढ़ने को मिलती हैं। हिंदी भाषा के संदर्भ में बात करूं तो कई शब्द तो अपने अशुद्ध रूप में ही भ्रमवश लोक में शुद्ध मानकर प्रयोग किए जा रहे हैं जैसे उपरोक्त, सुस्वागतम्, अनाधिकार, आद्योपांत, षड़यंत्र, अंतर्ध्यान, लघुत्तम आदि। हालांकि भाषा का सौंदर्य उसके शुद्ध रूप में आनन्द प्रदान करता है किंतु उच्चारण में मुख-सुख, क्षेत्रीयता-आंचलिकता के प्रभाव और अनभिज्ञता के कारण भाषा का स्वरूप विकृत होता है। भाषाई शुद्धता बनाये रखने और विद्यार्थियों, शिक्षकों, परीक्षार्थियों एवं आम पाठकों को भाषा के शुद्ध प्रयोग करने-समझने के लिए मार्गदर्शक पुस्तक की आवश्यकता हमेशा रही है पर इस क्षेत्र में ऐसी मानक पुस्तकों का सर्वथा अभाव रहा है। इस रिक्तता की पूर्ति की है भाषाविद कमलेश कमल विरचित प्रभात प्रकाशन से 2022 में प्रकाशित ‘भाषा संशय-शोधन’ ने। कमलेश कमल विगत 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर लेखन कर रहे हैं, साथ ही विभिन्न विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर ‘भाषा-संवाद’ कार्यक्रम  भी संचालित करते हैं जो बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। ‘भाषा संशय-शोधन’ साहित्यकारों और भाषा अध्येताओं के मध्य चर्चा के केंद्र में है। प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रतिभागियों ने इस पुस्तक के महात्म्य को समझा है। वास्तव में यह पुस्तक शब्दानुशासन की समझ बढ़ाने में सर्वथा समर्थ सिद्ध हुई है। आईए, आपको पुस्तक की अंत: सामग्री से परिचित कराता हूं।

  भाषा में शुद्ध वाक्य प्रयोग का पथ सुगम करती पुस्तक ‘भाषा संशय-शोधन’ चार खंडों  विभाजित है। खंड (क) अंतर्गत व्युत्पत्तिगत और अर्थपरक संशय, खंड (ख) में वार्तनिक एवं व्याकरणिक संशय तथा अर्थपरक विभेद, खंड (ग) में सामान्य वाचिक अशुद्धियां तथा अंतिम खंड (घ) अंतर्गत 750 ऐसे शब्दों की सूची है जिनके प्रयोग में प्रायः वर्तनीगत अशुद्धियां देखी जाती हैं। आम जीवन में बहुधा दैनिक कार्य व्यवहार में कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है जो सामान्य अर्थ में एकसमान प्रतीत होते हैं पर उनमें सूक्ष्म अंतर होता है। किसी कार्य के शुरू करने के लिए लोकजीवन में आरंभ और प्रारंभ शब्दों का प्रयोग होता है पर अंतर की दृष्टि से देखें तो किसी कार्य या घटना की शुरुआत आरंभ है जबकि प्रारंभ से आशय विशिष्ट आरंभ से होता है। ऐसे ही विद्यार्थी, शिक्षक व कोई भी व्यक्ति लिखने में आदि एवं इत्यादि का समान अर्थ में प्रयोग करते दिखाई देते हैं। आदि संज्ञा, विशेषण और अव्यय के रूप में प्रयोग होता जैसे आदिकवि, आदिमानव आदि। अन्य अर्थ में आदि से व्यक्त होता है कि शुरू में जिसकी चर्चा है इस तरह से अन्य, जबकि इत्यादि एक अव्यय है। ऐसे ही आमंत्रण और निमंत्रण शब्दों के अंतर पर दृष्टिपात् करें। आमंत्रण का अर्थ बुलाने या पुकारने से है, लेकिन बुलाये जाने वाले व्यक्ति का जाना बाध्यकारी नहीं है। आप कार्यक्रम में सादर आमंत्रित हैं, पत्रिका के लिए रचनाएं आमंत्रित हैं आदि।आमंत्रित व्यक्ति का कार्यक्रम में पहुंचना या रचनाएं भेजना उसकी इच्छा पर है बाध्यता नहीं, किंतु निमंत्रण में आना आवश्यक है ऐसा भाव समाहित होता है। अब कार्रवाई और कार्यवाही शब्दों को लेते हैं। कार्यवाही शब्द आजकल  एक्शन अर्थात प्रक्रिया को दिखाता है जो गलत प्रयोग है। कार्रवाई शब्द क्रिया का द्योतक है। जबकि कार्यवाही किसी बैठक कार्यक्रम का विवरण या प्रोसीडिंग है। सदन में कार्यवाही जारी या स्थिगित होती है तथा अपराधियों पर कार्रवाई की जाती है। अंतर्राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शब्द को एक शब्द समझ कर प्रयोग किया जाता है। देश के अंदर एवं देश के बाहर अन्य देशों से संबंधित व्यवहार पर अंतर्राष्ट्रीय शब्द का ही प्रयोग देखने-पढ़ने को मिलता है जो पूर्णतः अशुद्ध और अनर्थकारी है। देश के अंदर संबंधित शब्द अंतर्राष्ट्रीय है तो विभिन्न देशों से परस्पर संबंध पर अंतरराष्ट्रीय शब्द प्रयोग उचित होगा। वृंद का अर्थ समूह से है तो वृंदा का आशय तुलसी के पौधे से हैं। परिक्षा का अर्थ है – कीचड़, गीली-मिट्टी जबकि परीक्षा से आशय जांच, परख से है।

खंड़ (ख)  में संज्ञा एवं विशेषण शब्दों पर विमर्श किया गया है। ऐसे संज्ञापदों पर चर्चा है दो शब्दों से मिलकर बनते हैं जैसे लालकिला एक संज्ञा पद है एक विशेष किला का नाम है जबकि लाल किला में लाल विशेषण है और किला संज्ञा। ऐसे सिरका एक खाद्य पदार्थ है किंतु सिर का अर्थ सिर पर धारण करने वाली वस्तु से है। उपरोक्त और उपर्युक्त शब्दों पर पाठकों को अवश्य ध्यान देना चाहिए। किसी सरकारी, गैर सरकारी पत्र या लेख में ऊपर वर्णित संदर्भ ग्रहण करने हेतु आजकल हर कहीं उपरोक्त शब्द प्रयोग होता है जो नितांत अशुद्ध है, यहां उपर्युक्त शब्द शुद्ध और सार्थक है पर उपरोक्त लोक व्यवहार में इतना रूढ हो गया है कि वही शुद्ध शब्द प्रतीत होता है। ऐसे ही राजनैतिक शब्द का प्रयोग खूब होता है किंतु यह ग़लत प्रयोग है, शुद्ध शब्द है राजनीतिक। नवरात्रि अशुद्ध और नवरात्र शुद्ध है। संख्यावाचक शब्द छ: बिलकुल गलत है तथा छह शुद्ध है पर प्रयोग में छ: किया जा रहा है। ऐसे ही दोपहर, दोपहिया, दोगुना अशुद्ध प्रयोग हैं जबकि दुपहर, दुपहिया और दुगुना शुद्ध हैं। अनुस्वार और अनुनासिक में तो इस समय बहुत गलतियां की जा रही हैं। हंस (पक्षी) हंस (हँसना) बराबर हैं। आजकल अनुनासिक की जगह अनुस्वार प्रयोग किया जा रहा है, जैसे – दांत, आंख, मांद, ऊंट, आंत आदि शब्द।

खंड (ग) में सामान्य वाचिक-अशुद्धियों पर बात की गई है। जैसे दान दिया नहीं, किया जाता है।‌ प्रश्न पूछ नहीं, किया जाता है। मन करता नहीं, होता है। जैसे आपसे मिलने का मन हो रहा है, न कि मन कर रहा है। ऐसे ही भारी प्यास नहीं, बहुत प्यास लिखना उचित है। खंड (घ) में  750 ऐसे शब्दों की सूची है जिनका सामान्यतः प्रयोग अशुद्ध हो जाता है। शुद्ध-अशुद्ध शब्दों की यह सूची बहुत उपयोगी है।

कह सकते हैं कि ‘भाषा संशय-शोधन अपने उद्देश्य में पूर्ण सफल। कागज की गुणवत्ता हल्की है किंतु मुद्रण साफ-सुथरा है। आवरण सादा परंतु मनमोहक है। यह पुस्तक न केवल शिक्षकों, विद्यार्थियों, परीक्षार्थियों बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए अत्यंत लाभप्रद है जिसे हिंदी भाषा से प्यार है, आत्मीयता है। मुझे विश्वास है भाषाई शुचिता के नवल आयाम स्थापित करती यह पठनीय कृति शब्दानुशासन के मानक स्थापित करेगी।

पुस्तक : भाषा संशय-शोधन​

लेखक : कमलेश कमल

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन, दिल्ली

पृष्ठ : 272, मूल्य : ₹400/-

प्रमोद दीक्षित मलय शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
प्रमोद दीक्षित मलय शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)