युवा – किशोर दोस्ती प्रेम का दायरा समझें

14 फरवरी वैलेंटाइन डे पर विशेष-

– सुरेश सिंह बैस शाश्वत

आज के आधुनिक समाज में रिश्तों और संबंधों में भी पहले की अपेक्षा आपसी समझ व खुलापन आने लगा है। हालांकि हर बदलाव की हवा पश्चिम जगत से बहनी शुरु होती है, यह परंपरा यानी “वेलेंटाइन डे” मनाना भी वहीं से शुरु हुआ। अब भारत में भी शहरी क्षेत्रों में प्रायः हर जगह इस दिन को महत्व दिया जाने लगा है। प्रेम, दोस्ती ये शब्द भावनात्मक दृढ़ संबंधों की अटूट कड़ी है। कोई खून का रिश्ता नहीं, यह न जात पांत देखती और न ही उंचनीच,या छोटा-बड़ा देखती। बस हृदय और मनोमस्तिष्क की उत्ताल भावनाओं ने जोर मारा नहीं की दो पक्षों के बीच प्रेम का अटूट रिश्ता कायम हो जाता है। यह रिश्ता इतना मजबूत होता है कि अच्छे अच्छे खून के रिश्तों में दरार पड़ जाती है, पर इन रिश्तों में नहीं, तभी शायद इसकी महत्ता देखकर ही महान् संत कवि कबीर दास जी ने कहा है- 

“ढ़ाई आखर प्रेम का पढै सो पंड़ित होय”।

      प्रेम की भावना का यह संबंध महान संबंधों में जाना जाता है। इसकी परिभाषा नहीं होती, स्वार्थ, दुश्मनी, निजी इच्छाओं का न होना ही प्रेम है। हर लड़का या लड़की यह चाहते हैं कि उनका कोई ऐसा सच्चा दोस्त हो जो उनकी भावनाओं को समझे, सुख दुःख के समय में साथ निभाये। ऐसे दोस्तों की चाह कमोवेश सभी को होती है, और होना भी चाहिए। इसमें समलैगिंक दोस्ती जितनी सहज व सरल है, विषम लैगिक दोस्ती उतनी ही कठिन व दूभर होती है। लड़का लड़के से दोस्ती करें और लड़की लड़की से दोस्ती करें तो सामान्यतः सफल होते हैं। लेकिन यदि वह दॉस्ती लड़के और लड़की में हो तो मैत्री को प्यार में बदलते देर नहीं लगती। वे पल दो पल के आकर्षण से प्रभावित होकर समझने लगते है कि हम दोनों बने ही एक दूजे के लिये हैं। और फिर शुरु हो जाता है मर्यादाओं का उल्लंघन ।

      यह भी सही है कि प्रत्येक मैत्री या प्यार या संबंध का स्वरुप बदलकर समस्या का रूप ले लेता है। इसके अपवाद भी है। दोस्ती करना जितना आसान है उसको निभाना उतना ही कठिन। लड़का-लडकी दोस्ती करें लेकिन अपने पारंपरिक मर्यादाओं की सीमाओं में बंधकर मित्रता को मित्रता ही रहने दे। दूसरे रिश्तों का नाम न दें, तभी वे आपस में एक दूसरे के अच्छे सहयोगी सिद्ध होगे, दोस्ती और प्यार दो अलग-अलग बात हैं, अलग तथ्य है। दोस्ती में जहां सहयोग और अनेकाधिकार होता है, वहीं प्रेम में समर्पित होने की भावना और एकाधिकार अधिक होता है। दोस्ती में जहां दोनों के लिये भविष्य निर्माण की कल्पनायें होती हैं, वही प्रेम में परिवार निर्माण की। किशोरावस्था में बहकाव भटकाव अधिक होता है वास्तविक प्यार कम, भावुकता में आकर क्षणिक दोस्ती को प्यार में बदलते देर नहीं लगती और वे उसे शीघ्र ही शादी का रुप देने पर उतारू हो जाते है। नई पीढ़ी का नव निर्माण करने में अभिभावकों को सख्ती और नरमी दोनों से काम लेना पड़ता है। इस अवस्था में अभिभावक उनके बागी होने या फिर उनके बिगड़ने की चिंता से पहले ही सचेत रहकर सतर्क कदम उठायें। आज के समय में कुछ व्यक्ति जहां एक ओर अपने आपको आधुनिक समझते हैं, वही दूसरी ओर लड़के लडकी की दोस्ती की बात आते ही निचली मानसिकता का लबादा ओढ लेते हैं। यह भी सही है कि कुछ लड़के-लड़कियों ने मित्रता की आड़ में पारिवारिक मर्यादा एवं अभिभावको के विश्वास को भावनाओं को चोट पहुंचाई है, परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि सभी एक से हों।

पालक स्वयं भी तो उनके दोस्त बनकर उनके एक अच्छे दोस्त साबित हो सकते हैं। जिसे घर में प्यार नहीं मिलता वह उसे बाहर खोजता है। घर में यदि उन्हें एक अच्छा दोस्त मिलेगा तो सीमाओं में रहना वो स्वयं ही सीख जायेंगे। अपनी प्रत्येक बात माता-पिता से कहने को उतावले रहेंगे। उनका कहना भी स्वेच्छा एवं खुशी से मानेंगे। इसके अतिरिक्त युवा लड़के लड़कियों का भी यह दायित्व होता है कि वे बाहर अगर दोस्ती करते हैं तो वे दोस्ती को सिर्फ दोस्ती के “रुप में निभाये ताकि इन संबंधों पर किसी की उंगली न उठ सके, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अपनी दोस्ती के विषयं में अपने परिवार जनों को पूरी तरह अवगत रखे। इस तरह की दोस्ती उचित भी है और सार्थक भी। प्रत्येक किशोर मन एक अच्छा साथी, हम सफर दोस्त बनाना चाहता है। अच्छे मित्र आपके कैरियर निर्माण में सहयोगी सिद्ध होंगे, वहीं अंहकार के वशीभूत होकर प्रेमी प्रेमिका अपने मार्ग के रुकावट स्वयं बन जाते है। ऐसी अवस्था में कोई भी निर्णय बुजुर्गो की अनुमति के बिना लेना घातक सिद्ध हो सकता है, इसलिये स्वच्छंद, निर्मल पवित्र वासना रहित दोस्ती निभाइने और अपना यह बहुमुल्य समय कैरियर (भविष्य) बनाने में लगायें।

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”