जानबूझकर धूम्रपान करते, लोग मौत को गले लगाते

     – सुरेश सिंह बैस शाश्वत

           किसी भी डॉक्टर के पास शिकायत लेकर जाने पर अक्सर पहली राय यही दी जाती है कि आप तंबाकू का सेवन या बीड़ी सिगरेट पीना छोड़ दो। और कभी कहीं यह भी देखेंगे तो कतई आश्चर्य नहीं होगा कि कुछ डाक्टर खुद सिगरेट का कश लेते हुए आपका नुस्खा लिख रहे हों।

       तंबाकू इस देश की ऐसी वस्तु है जिसे देश की विदेशों की भी अधिकांश जनता सेवन करती है । और विडम्बना यही है कि वे सभी जानते बुझाते हुये भी‌ कि यह हमारे जीवन के लिये अत्यंत हानिकारक है। फिर भी सेवन किए जा रहे हैं बेधड़क। फिर चाहे वह खाने में हो या पीने में हो। तंबाकू पीने के लिए हुक्का, बीडी सिगरेट सिगार, चुरूट, पाइप आदि की खोज कर ली गई, फलतः आज इन वस्तुओं का उद्योग दिन दुनी रात चौगुनी प्रकार से प्रगति कर रहा है।

     तंबाकू के बारे में सहभागिता  एवं भाईचारा तो देखते ही बनता है। भले ही आदमी दूसरे को अपने हाथ का मैल भी मांगने पर नहीं दे, लेकिन अगर आपसे कोई तंबाकू मलतें देखकर तंबाकू मांगता है तो बड़े प्रेम से उसे भी एक छुटकी तंबाकू जरूर दे देतें हैं। तंबाकू एक ऐसी वस्त है जिसे मांगकर खाने को कतई बुरा नहीं समझा जाता है। गरीब – अमीर सभी निःसंकोच तंबाकू मांगकर खाते हैं-खिलाते हैं। पर तंबाकू कितनी ज्यादा हानिकारक है यह तथ्य लोग देखकर जानकर भी अनदेखा कर रहे हैं। और अपने जीवन को भंयकर विषम परिस्थितियों की ओर ढकेल रहे हैं। एक समाचार के अनुसार जिन देशों में सिगरेट के दुस्प्रभाव को लोगों ने नजदीक से देखा है, उन देशों में सिगरेट पीने वालों की संख्या बहुत घट गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ऐसे कई विकसित देशों के राष्ट्रीय सर्वेक्षण के हवाले से जो आंकड़े दिये है उनसे पता चलता है कि कई देशों में अब तंबाकू एवं, सिगरेट पीने वालों का प्रतिशत दस से भी. नीचे आ गया है। लेकिन विकासशील देशो में स्थिति बिल्कुल उलट है। भारत जैसे देश में धूम्रपान का अभी तेजी से प्रसार हो रहा है, और उच्च आय वर्ग में यह फैशन का भी अंग बनता जा रहा है। यह कि लोग तंबाकू के दुष्प्रभाव को न समझते हो ऐसी बात भी नहीं है, पर उनकी यह जानकारी सैद्धांतिक ही है,। तंबाकू के जानलेवा दुष्प्रभाव को अभी विकासशील देशो में देखा ही नहीं गया है, इसलिये यहां तंबाकु छोड़ने की दर कम है, ऐसा विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है। 

      भारत जैसे देश में कुछ तबको को छोडकर परम्परा से औरते धूम्रपान नही किया करती। पर इधर कुछ सालों से “नारी मुक्त आदोलन” के प्रभाव से बहुत सी औरतो के लिए तंबाकू सिगरेट सुलगाना अपने बंधनों को तोड़ने का प्रतीक बन चुका है।  जिससे औरतों में धूम्रपान बढ़ा है। क्योंकि यहां धूम्रपान अभी तक महामारी के रूप में नहीं पहुंचा है जितना चार पांच दशक पहले यूरोप और अमेरिका में पहुंच गया था। इसलिये यहां तंबाकू से संबंधित रोगों से मरने वालों की संख्या कम है,। हालांकि अब यहां भी संख्या बढ रही है। अनुमान है कि विश्व में कम से कम पचास लाख व्यक्ति तंबाकू संबंधित कारणों से ही इस दुनियां से कूच कर जाते हैं। इनमें एक तिहाई विकासशील देशों के है। यह स्थिति कितनी विकट है कि इसका अनुमान इस बात से भी लग जाता है कि विकसित राष्ट्रों में वह कुल मौतों का बीस प्रतिशत हिस्सा है।

       औरतों में बढ़ते धूम्रपान की वजह से अब उनमें कैसर का खतरा ज्यादा मंडराने लगा है, अमेरिका और इंग्लैंड़ में फैफड़ों के कैंसर से मरने वाली -औरतों में तीन – चौथाई धूम्रपान करने वाली औरते होती हैं, और अनुमान है कि इस दशक में फेफड़ों के कैंसर से मारने वालो में नब्बे प्रतिशत औरतों की हो सकती है।असल में तम्बाकू जन्य बीमारियों के कारण अकाल काल का ग्रास बन जायेंगी। इसका यह मतलब नहीं  कि भारतीय उमहाद्वीप में औरतें भले ही धूम्रपान तुलनात्मक रुप से तम्बाकू का सेवन कम करती है तो वे राहत की सांस लेवें, लेकिन यहां सिगरेट, तम्बाकू चबाने एंव नसवार लेने का, बीडी पीने के साथ- साथ हुक्का पीने को जो आदत प्रचलित है। यह भी एक बड़ा खतरे के रूप में विद्यमान है ,उनके स्वास्थ्य के लिंए। और तो और बुरा हो उन धुम्रपान करने वालों का जो ट्रेन, बस व सार्वजनिक स्थानो में भी धूम्रपान करने से गुरेज नहीं करते हैं। क्योंकि इन लोगों के कारण ही तंबाकू या धूम्रपान से नाता न रखने वाले की भी जान खतरे में पड़ गई है। क्योंकि यह भले ही तंबाकू से दूर रहते हों। लेकिन आसपास उगले गए सिगरेट के धुएं या बीड़ी के धुएं से यह बच नहीं सकते । 

      पता चला है कि सिगरेट बीड़ी के धूएं से भरे वातावरण में सांस लेने के कारण ही धूम्रपान नहीं करने वालों में फेफड़े का कैंसर होने का जोखिम तीस से पैंतीस प्रतिशत बढ़ गया है। सांस के साथ धुआं पीने की प्रक्रिया यानी पैसिव स्मोकिंग का अप्रत्यक्ष धूम्रपान के कारण धूम्रपान न करने वालों में भी हृदय रोग के होने का जोखिम पचीस प्रतिशत तक बढ़ गया है । धूम्रपान नहीं करने वालों के पास भी अब एक ही चारा बचा है, कि वह औरों को तंबाकू बीड़ी का धूम्रपान छोड़ने को राजी करें। ध्यान रहे यह काम जोर जबरदस्ती से किया जाना संभव नहीं होगा। केवल सद्भावना एवं प्रेम पूर्वक समझाइश से ही यह किया जा सकता हैं। 

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”