विश्वविद्यालय के 67 वें स्थापना दिवस पर शक्ति समाराधना एवं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

परहित की भावना मनुष्य के हृदय को उज्ज्वल कर विशाल बना देती है: कुलपति प्रो आनंद कुमार त्यागी

वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा से भारत विश्व गुरु बनेगा: कुलपति प्रो वांगचुक दोर्जे नेगी 

मानव जीवन दो भावनायें हैं स्वार्थ भावना और परहित भावना। स्वार्थ भावना मनुष्य के हृदय को संकीर्ण और निम्न स्तर का बना देती है; लेकिन परहित की भावना मनुष्य के हृदय को उज्ज्वल कर विशाल बना देती है। दूसरों के दु:ख दूर करने से स्वयं में आनन्द का आभास होता है। परमात्मा को भी ऐसे ही मनुष्य अत्यंत प्रिय होते हैं। इस प्रकार की प्रार्थना करने वाले मनुष्यों की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं। हमारी सनातन परंपरा भी इसी आधार की पोषक है।यही भारत देश की शक्ति है।विश्व में हम इसी आधार पर अलग है।

उक्त विचार सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के 67 वें स्थापना दिवस के शुभ अवसर पर  इस संस्था एवं इंटरनेशनल चंद्रमौलि चैरिटेबल ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित  ‘सनातन परम्परा और विश्वगुरु भारत’ विषय पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो. आनंद कुमार त्यागी ने बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किया।

सारस्वत अतिथि प्रो. वाङ्चुक दोर्जे नेगी,कुलपति (केंद्रीय तिब्बती संस्थान)ने कहा कि  वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा “विश्व एक परिवार है”। वाक्यांश का विचार आज भी प्रासंगिक है क्योंकि यह वैश्विक परिप्रेक्ष्य पर जोर देता है, व्यक्तिगत या पारिवारिक हितों पर सामूहिक भलाई को प्राथमिकता देता है। यह दर्शन सिर्फ भारत के पास है अन्य देशों में नहीं है।इसके साथ ही प्रतीत्यसमुत्पाद का चिंतन करना चाहिए।जिसे आश्रित उत्पत्ति या प्रतीत्य समुत्पाद के रूप में भी जाना जाता है, बौद्ध दर्शन में एक मौलिक अवधारणा है। 

इस विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा ने स्थापना दिवस समारोह  की अध्यक्षता करते हुए कहा कि इस संस्था की स्थापना अंग्रेजों ने 1791 ई मे भारतीय ज्ञान परम्परा के संरक्षण और संवर्धन के लिये किया था। जो कि देवभाषा संस्कृत के अन्दर निहित ज्ञान के संस्था के अभ्युदय एवं उत्थान के लिये यहाँ के आचार्यों, विद्यार्थियों, अधिकारियों का बहुत बड़ा दायित्व है जिसे सभी  के उत्थान के लिए संकल्पित भाव से आगे बढ़ाना है, भारतीय ज्ञान परंपरा को  वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित करना है। यह धरती, अर्पण,तर्पण, समर्पण ,साधना और उपासना की परम्परा है, हमे मिलकर इसे स्थापित करना है। यह स्वार्थ से सर्वार्थ की परंपरा है, इसे अपने जीवन में उतारकर चलने की जरूरत है। आज हमे आत्मावलोकन करने की जरूरत है।जिस उद्देश्य से यह संस्था स्थापित की गयी है उसको आगे बढ़ाने के अनवरत प्रयास किया जाना चाहिए।

इटली से डॉ. लूसी गेस्ट, स्पेन से मारिया लुइस, डॉ एंटीनोला, म्यामांर से डॉ रामचंद्र … ने अपने विचार व्यक्त किये।  मंच पर आसीन अतिथियों के द्वारा दीप प्रज्वलन एवं माँ सरस्वती के प्रतिमा पर माल्यार्पण। मंच पर आसीन अतिथियों का अंगवस्त्र एवं माला के साथ स्वागत और अभिनंदन किया गया। *कार्यक्रम का संचालन*- प्रो हरिशंकर पाण्डेय ने संचालन किया. 

पाली विभाग के आचार्य प्रो रमेश प्रसाद ने स्वागत भाषण किया। स्थापना दिवस समारोह के अवसर पर प्रातः10:30 बजे, वेद भवन में  कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा विश्वविद्यालय परिवार के कल्याण एवं राष्ट्र वैभव उत्थान के लिये “शक्ति समाराधन” किया गया। जिसमें वेद विभाग के आचार्यों के द्वारा दुर्गासप्तशती पाठ, गौरी-गणेश का विधि-विधान से षोडशोपचार विधि के साथ पूजन किया गया।

स्थापनोत्सव पर्व के प्रारम्भ से आज सम्पूर्ण परिसर में वाद्ययंत्र के अविरल ध्वनि से गुंजायमान हो गया। सम्पूर्ण विश्वविद्यालय परिसर में अनवरत शहनाई की धुन और हवन की सुगंध से आच्छादित है। स्थापना दिवस के अवसर पर कुलपति प्रो शर्मा ने  चन्दन, अंगवस्त्र एवं मिष्ठान खिलाकर सभी आचार्यों एवं अधिकारियों का सम्मान किया।

अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में कुलसचिव राकेश कुमार. प्रो रामपूजन,प्रो जितेन्द्र कुमार, प्रो सुधाकर मिश्र, प्रो अमित कुमार शुक्ल,डॉ पद्माकर,प्रो राजनाथ, प्रो कमलाकांत, प्रो विधु द्विवेदी, प्रो विजय कुमार पाण्डेय, प्रो दिनेश कुमार गर्ग,डॉ ब्रह्मचारी, डॉ विशाखा शुक्ला, डॉ रविशंकर पाण्डेय,डॉ विश्व आत्मा दुबे, अध्यापक एवं विद्यार्थियों ने सहभाग किया।