कवना काम के बजट

विधा- कविता

कवना काम के बजट।
जवना से दिक्कते नइखे हटत।
मार-मार के महंगाई से
लगा देले बा कचट।
कवना काम के बजट।
जवना से दिक्कते नइखे हटत।

रोज़मर्रा के सामान के आसमान छुवता भाव।
चाहे कवनो शहर होखे चाहे कवनो गांव।
इनकम जाता घटत
खाली टैक्से बाटे कटत।
जीएसटी के डोज लगाई के
बढ़ गईल बा झंझट।
कवना काम के बजट।
जवना से दिक्कते नइखे हटत।

जब-जब बनेला बजट कहाला दिन अब सम्हरी।
ज़िंदगी के तोहार रेलिया रफ़्तार अब धरी।
समइया बितता खटत-खटत
ना होता कुछु बचत
देहिया के खून जराई के
चलत बानी हम लटकत
कवना काम के बजट।
जवना से दिक्कते नइखे हटत।
मार-मार के महंगाई से
लगा देले बा कचट।
कवना काम के बजट।
जवना से दिक्कते नइखे हटत।



रौनक द्विवेदी
(आरा)