नरक चतुर्दशी का व्रत अक्षम्य पाप से मुक्ति दिलाता है

-30 अक्टूबर नरक चतुर्दशी पर विशेष-

पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में नरकासुर राक्षस ने अपनी शक्तियों से देवताओं और ऋषि-मुनियों के साथ सोलह हजार एक सौ कन्याओं को भी बंधक बना लिया था। नरकासुर के अत्याचारों से त्रस्त देवता और साधु-संत भगवान श्री कृष्ण की शरण में गए। नरकासुर को स्त्री के द्वारा ही मरने का श्राप था, इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया। और उसकी कैद से सोलह हजार एक सौ कन्याओं को आजाद कराया। कैद से आजाद करने के बाद समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए श्री कष्ण ने इन सभी कन्याओं से विवाह कर लिया। 

मान्यता है कि जब श्रीकृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया था, तो वध करने के बाद उन्होंने तेल और उबटन से स्नान किया था। तभी से इस दिन तेल, उबटन लगाकर स्नान की प्रथा शुरू हुई। माना जाता है कि ऐसा करने से नरक से मुक्ति मिलती है और स्वर्ग व सौंदर्य की प्राप्ति होती है। वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार नरकासुर के कब्जे में रहने के कारण सोलह हजार एक सौ कन्याओं के उदार रूप को फिर से कांति श्रीकृष्ण ने प्रदान की ने थी, इसलिए इस दिन महिलाएं तेल के उबटन से स्नान कर सोलह शृंगार करती हैं। माना जाता है कि नरक चतुर्दशी के दिन जो महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं, उन्हें सौभाग्यवती और सौंदर्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी मनाई जाती है।

इसे नरक चौदस, रूप चौदस या रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान है। दिवाली से ठीक एक दिन पहले मनाए जाने की वजह से नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली भी कहा जाता है। नरक चतुर्दशी पर यम का दीपक जलाया जाता है।  इस दिन कुल बारह दीपक जलाए जाते हैं। इस दिन भगवान कृष्ण की उपासना भी की जाती है, क्योंकि इसी दिन उन्होंने नरकासुर का वध किया था।  कई जगहों पर ये भी माना जाता है की आज के दिन हनुमान जी का जन्म हुआ था।  अगर आयु या स्वास्थ्य की समस्या हो तो इस दिन किए गए उपाय बहु लाभकारी माने जाते हैं।

हिंदू पंचांग के अनुसार, नरक चतुर्दशी यानी छोटी दिवाली

कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि को होती  है।  चतुर्दशी तिथि का समापन होने पूर्व अभिस्ट कार्य कर लेना चाहिए। इसलिए चतुर्दशी तिथि बीतने से पहले ही नरक चतुर्दशी की पूजा कर लेना चाहिए। इसके बाद अमावस्या लग जाता है, जिसमें दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। क्या आप जानते हैं इस दिन के महत्व को, शायद बहुत कम लोग इस बारे में जानते  होंगे कि इस चतुर्दशी को नरक चतुदर्शी कहा जाता है। असल में धनतेरस से लेकर दिवाली मनाते हुए भैया दूज तक लगातार पांच पर्व रहते हैं। इस बीच नरक का नाम कौन लेना चाहेगा। भले ही वह चतुर्दशी के साथ आता हो। लेकिन आपकी जानकारी के लिये बता दें कि यह दिन हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार अपना विशेष महत्व रखता है। नरक चतुर्दशी के दिन व्रत भी किया जाता है इस बारे में एक कथा भी प्रचलित है। कहानी कुछ यूं है कि बहुत समय पहले रन्ति देव नामक बहुत धर्मात्मा राजा हुआ करते थे। उन्होंने अपने जीवन में भूलकर भी कोई पाप नहीं किया था।

उनके राज्य में प्रजा भी सुख शांति से रहती थी। लेकिन जब राजा की मृत्यु का समय नजदीक आया तो उन्हें लेने के लिये यमदूत आन खड़े हुए। रन्तिदेव यह देखकर हैरान हुए और उनसे विनय करते हुए कहा कि हे दूतों मैनें अपने जीवन में कोई भी पाप नहीं किया है फिर मुझे यह किस पाप का दंड भुगतना पड़ रहा है, जो आप मुझे लेने आये हैं। क्योंकि आप के आने का सीधा संबंध यही है कि मुझे नरक में वास करना होगा। उसके बाद यमदूतों ने कहा कि राजन वैसे तो आपने अपने जीवन में कोई पाप नहीं किया है। लेकिन एक बार आपसे ऐसा पाप हुआ जिसका आपको भान नहीं है। एक बार एक विद्वान गरीब ब्राह्मण को आपके पथ से भूखा लौट जाना पड़ा था यह उसी कर्म का फल है। राजा को इसके लिए राज पुरोहित ने उपाय बताया  कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को व्रत करने से बड़े से बड़ा पाप भी क्षम्य हो जाता है अतः आप चतुर्दशी का विधिपूर्वक व्रत करें और तत्पश्चात ब्रह्माणों को भोजन करवाकर उनसे उनके प्रति हुए अपने अपराध के लिये क्षमा याचना करें। फिर क्या था राजा रन्ति को तो बस मार्ग की तलाश थी।

उन्होंने ऋषियों के बताये अनुसार चतुर्दशी का व्रत किया जिससे वे पापमुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। तब से लेकर आज तक नर्क चतुर्दशी के दिन पापकर्म व नर्क गमन से मुक्ति के लिये कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्दशी का व्रत किया जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तिल के तेल से मालिश कर पानी में चिरचिटा अर्थात अपामार्ग या आंधीझाड़ा के पत्ते डालकर स्नान किया जाता है। स्नानादि के बाद विष्णु और कृष्ण मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन कर पूजा की जाती है। ऐसा करने से पाप तो कटते हैं साथ ही रूप सौन्दर्य में भी वृद्धि होती है। इसलिये इसे रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है। यम देवता पाप से मुक्त करते हैं इसलिये यम चतुर्दशी भी इस दिन को कहा जाता है। नरक चतुर्दशी पर किये जाने वाले स्नान को अभ्यंग स्नान कहा जाता है जो कि रूप सौंदर्य में वृद्धि करने वाला माना जाता है। स्नान के दौरान अपामार्ग के पौधे को शरीर पर स्पर्श करना चाहिये और नीचे दिये गये मंत्र का जाप को पढ़कर उसे मस्तक पर घुमाना चाहिये।

सितालोष्ठसमायुक्तं सकण्टकदलान्वितम्।
हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाणः पुनः पुनः ।।

स्नानोपरांत स्वच्छ वस्त्र धारण कर तिलक लगाकर दक्षिण दिशा में मुख कर तिलयुक्त तीन-तीन जलांजलि देनी चाहिये। इसे यम तर्पण कहा जाता है। इससे वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते हैं। यह तर्पण विशेष रूप से सभी पुरूषों द्वारा किया जाता है। चाहे उनके माता-पिता जीवित हों या गुजर चुके हों।

ॐ यमाय नमः,
ॐ धर्मराजाय नमः,
ॐ मृत्यवे नमः,
ॐ अंतकाय नमः,
ॐ वैवस्वताय नमः,
ॐ कालाय नमः,
ॐ सर्वभूतक्षयाय नमः,
ॐ औदुम्बराय नमः,
ॐ दधाय नमः,
ॐ नीलाय नमः,
ॐ परमेष्ठिने नमः,
ॐ वृकोदराय नमः,
ॐ चित्राय नमः,
ॐ चित्रगुप्ताय नमः।। 

इन सभी देवताओं का पूजन करके सांयकाल में को दीपदान करने का भी विधान है।

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”