दिवाली सुख समृद्धि, स्वच्छता, पवित्रता और रोशनी का प्रतीक है यह त्योहार

दीपावली को सबसे पसंदीदा त्योहार माना जाता है और इसके आगमन से पहले ही घरों में जोर-शोर से तैयारियां शुरू हो जाती है। यह पावन त्योहार उल्लास और उमंग के साथ ढेर सारी खुशियां लाता है। परिवार के सदस्य एक-दूसरे से मिलते जुलते हैं और खुशियां बांटते हैं। इस त्योहार का सबसे बेसब्री से इंतजार बच्चों को रहता है क्योंकि इन दिनों पटाखे जलाने, आतिशबाजी, नये कपड़े, ढेर सारे पकवान के साथ ही छुट्टियों का भी भरपूर आनंद उठाना चाहते हैं। भारत के इतिहास में त्योहारों का एक अपना ही एक गौरव है। दीपोत्सव ज्योति पर्व के रूप में मनाने की परंपरा अति प्राचीन हैै। यह पर्व ज्योति का प्रतीक माना जाता है क्यों कि कहा जाता हैै कि सुख-समृद्वि एवं ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी उन्हीं के घरों में प्रवेश करती हैं, जिनका घर साफ सफाई, रंगाई पुताई केे अलावा स्वच्छ, पवित्र एवं रोशनी से जगमगाता हो। अंधेर नगरी में तो लक्ष्मी जी कभी भूल से भी नहीं फटकती हैं। लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए दीपोत्सव पर हर व्यक्ति अपने घर दरवाजे की अच्छी तरह सफाई कर घर केे आस-पास भी प्रकाश की व्यवस्था करता हैै।

उत्तर भारत में तो लोग महीनों पूर्व से ही घरों की मरम्मत तथा इसकेे आस-पास एकत्रित कूडे-करकट एवं जंगल-झंखाड़ का दीपोत्सव पर पूरी तरह सफाया कर डालते हैैं। तदुपरांत मकानों की रंगाई, साफ सफाई, पुताई कर कुुछ शौकीन लोग अपने मकानों की दीवारों पर लक्ष्मी, काली, पार्वती, सरस्वती, हनुमान, गणेश, शिव एवं उनके वाहनों की चित्रकारी करवाते हैैं।
धर्मशास्त्रों केे अनुरूप उत्तर भारत में दीपोत्सव मनाने की परंपरा बिल्कुुल भिन्न हैै। दीपावली केे एक दिन पूर्व यहां शाम की बेला में घर केे बाहरी हिस्से में यम दीप जलाने की प्रथा हैै। घर की महिलाएं संध्या में स्नानकर के गोबर से निर्मित यम दीपों में सरसों का तेल और बाती डाल कर प्रज्ज्वलित करती हैैं। पुनः घर केे बाहरी भाग वाले टीले पर इसे रख दिया जाता है। इसे जलाने की परंपरा का मुख्य कारण यह हैै कि इससे यम देवता और उनके वंश अति प्रसन्न होते हैं।

दीपावली केे दिन प्रायः महिलाएं मिट्टी वाले फर्श को गोबर से लिपाई करकेे पुनः आंगन में रंगीन रंगोली बनाती हैं। संध्या में स्नान के पश्चात् महिलाएं धुले हुुए दीपों में गाय का शुद्घ घी डाल कर थाल सजाती हैैं और नए परिधानों को पहन कर इन दीपों को गांव स्थित दुर्गा गौरी, विषहरी, सरस्वती, लक्ष्मी एवं काली माता केे मंदिरों में जाकर उन्हेें अर्पित करती हैैं।
घर-आंगन में जो दिये जलाए जाते हैैं वे सभी सरसों के तेल से जलाए जाते हैं।

दिवाली का नाम सुनते ही बच्चों के मन मे आतिशबाजी दिमाग में घूमने लगती है। आतिशबाजी का सबसे पुराना जिक्र चीन के ग्रंथों में है। दीपोत्सव आतिशबाजी के बिना अधूरा सा है। लेकिन, आतिशबाजी भी करें तो संभलकर, इस उल्लास भरे त्योहार में कुछ सावधानियां बरतना भी जरूरी होता है क्योंकि आतिशबाजी के बाद निकलने वाला प्रदूषित धुआं और पटाखों की तेज आवाज हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती हैं। इसलिए प्रकाश के इस पर्व पर अपने नन्हे मुन्नों को सुरक्षित रखने के लिए  ध्यान रखें –

जब जलाएं पटाखे

आमतौर पर बच्चे उछल-कूद और खेल-खेल में पटाखे जलाने का प्रयास करते हैं। वे अपने दोस्तों के साथ मिलकर एकजुट हो पटाखे जलाने में खूब उत्साहित होते हैं लेकिन ऐसा करना उनके लिए खतरनाक साबित हो सकता है। इसलिए बच्चों को प्यार से समझाएं कि वे अकेले पटाखे जलाने से बचें। अपनी निगरानी में बच्चों को पटाखे जलाने दें। छोटे बच्चों की पहुंच से पटाखों को दूर रखें। इस बात का भी ध्यान रखें कि बच्चे पटाखें हाथ में लेकर फोड़ने न लग जायें। इस दिन बच्चों को ढीले कपड़े, स्कार्फ या दुपट्टा आदि न पहनने दे। कॉटन के कपडे पहनाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि समूह में पटाखे जलाते वक्त एक समय में एक ही व्यक्ति पटाखा जलाये। अक्सर बच्चे माचिस और पटाखे जेब में रख कर घूमने लगते हैं। उन्हें ऐसी गलती करने से रोकें। पटाखें हमेशा खुली जगह पर जलाएं। हमेशा अच्छी कंपनी के पटाखे खरीदे और उन्हें इस्तेमाल करने का तरीका सिख ले।  पटाखे जलाते समय पटाखे से दुरी बनाए रखे। पटाखे के ऊपर झुक कर पटाखा न जलाए। पटाखे जलाने के लिए लम्बी अगरबत्ती या फुलझड़ी का इस्तेमाल करे। अगर पटाखा नहीं फूटता है तो तुरंत पटाखे के पास न जाए। जो पटाखा नहीं जला है उस पर पानी डाल दे और दोबारा जलाने कि कोशिश न करे।  

स्वास्थ्य का रखें ध्यान

अगर अस्थमा है तो

आज के प्रदूषित वातावरण में छोटे बच्चे भी सांस की बीमारी की चपेट में आने लगे हैं। और दिवाली ऐसा त्योहार है जब जबर्दस्त आतिशबाजी के कारण वातावरण में सल्फर डाईऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी टॉक्सिक गैसें व लेड जैसे पार्टिकल्स की भरमार हो जाती है। इनकी वजह से अस्थमा और ह्रदय मरीजों की दिक्कतें कई गुना बढ़ जाती हैं। ऐसी स्थिति में थोड़ी सी भी लापरवाही हार्ट अटैक अथवा अस्थामेटिक अटैक की वजह बन सकती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि इन तत्वों की वजह से एलर्जी अथवा अस्थमा से पीड़ित लोगों की सांस की नली सिकुड़ जाती है। इस स्थिति में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाता, जिससे अटैक आ सकता है। ऐसे में बचाव के लिए कई दिनों तक सावधानी बरतने और दवाएं आदि नियमित रूप से लेने की जरूरत है। परेशानी से बचने के लिए अस्थमा से पीड़ित बच्चों को पटाखों से दूर रखें। अगर संभव हो तो धुएं और प्रदूषण से बचने के लिए बच्चे को घर के अंदर ही रखें। प्रदूषण से बचने के लिए मुंह पर गीला रुमाल या मास्क लगाए और इनहेलर आदि पास रखें। कोई भी समस्या हो तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें।

कान और आंख हैं अनमोल

हम सब इस बात को महसूस करते हैं कि दिवाली के बाद वातावरण में प्रदूषण से आंखों में जलन की समस्या भी काफी बढ़ जाती है। इसलिए आंखों की खास देखभाल बेहद जरूरी हो जाती है। अगर जलन बढ़ती है तो आंखों को सादे पानी से धोएं और डॉक्टर को दिखाएं। अगर दुर्घटनावश आंखों में छोटी सी भी छोट लग जाती है तो आंखों को मले नहीं। डॉक्टर की सलाह लेना आवश्यक होता है। इसलिए ध्यान रखें कि अगर ज्यादा तेज पटाखे जल रहे हों तो बच्चों को उनसे कम से कम 4-6 मीटर दूर रखें। बच्चों के कानों में कॉटन या प्लग लगा दें। छोटे बच्चों का खास ध्यान रखें। अगर बच्चा कान में दर्द की शिकायत करता है तो डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।

उमेश कुमार सिंह
उमेश कुमार सिंह