-सरदार वल्लभभाई पटेल की 149वीं जन्मजयन्ती, 31 अक्टूबर, 2024-
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन एवं आजादी के बाद आधुनिक भारत को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने के कारण सरदार वल्लभभाई पटेल ने राजनीतिक इतिहास में एक गौरवपूर्ण, ऐतिहासिक एवं स्वर्णिम स्थान प्राप्त किया। वास्तव में वे आधुनिक भारत के शिल्पी थे। भारत की माटी को प्रणम्य बनाने एवं कालखंड को अमरता प्रदान करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। उनकी अखण्ड भारत को लेकर जितनी बड़ी कल्पनाएं थी, जितने बड़े सपने थे, उसी के अनुरूप लक्ष्य बनाये और उतने ही महत्वपूर्ण कार्य किये। उनके कठोर व्यक्तित्व में बिस्मार्क जैसी संगठन कुशलता, कौटिल्य जैसी राजनीति सत्ता तथा राष्ट्रीय एकता के प्रति अब्राहम लिंकन जैसी अटूट निष्ठा थी। जिस अदम्य उत्साह, असीम शक्ति एवं कर्मठता से उन्होंने नवजात भारत गणराज्य की प्रारम्भिक कठिनाइयों का समाधान किया, उसके कारण विश्व के राजनीतिक मानचित्र पर वे एक अमिट आलेख बन गये। राजनीतिक कारणों से इस लोकपुरुष को उतना गौरवपूर्ण स्थान नहीं मिला, जितना अपेक्षित था। कांग्रेस के शासन में पटेल को भुलाने की भरपूर कोशिशें हुई, लेकिन नरेन्द्र मोदी ने इस कमी को पूरा किया।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 2015 में सरदार पटेल की याद में देश की एकता व अखंडता के लिए पूरे देश को संकल्पित करने हेतु ‘राष्ट्रीय एकता दौड़’ का आयोजन शुरू किया था। इस वर्ष इस ऐतिहासिक राष्ट्रीय एकता दौड़ के आयोजन को गृहमंत्री अमित शाह ने हरी झंडी दिखाकर प्रारंभ किया। 143वीं जयंती के मौके पर गुजरात के केवड़िया में उनकी 182 मीटर ऊंची प्रतिमा का अनावरण भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। उनके व्यक्तित्व के अनुरूप प्रतिमा का निर्मित होना एवं राष्ट्रीय एकता दिवस का आयोजन, उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि एवं एक बड़ी भूल का सुधार है। सरदार पटेल भारत के देशभक्तों में एक अमूल्य रत्न थे। वे आधुनिक भारत के शक्ति स्तम्भ थे। आत्म-त्याग, अनवरत सेवा तथा दूसरों को दिव्य-शक्ति की चेतना देने वाला उनका जीवन सदैव प्रकाश-स्तम्भ की अमर ज्योति रहेगा।
सरदार पटेल मन, वचन तथा कर्म से एक सच्चे भारतीय एवं भारतीयता के प्र्रतीक पुरुष थे। वे वर्ण-भेद तथा वर्ग-भेद के कट्टर विरोघी थे। वे अन्तःकरण से निर्भीक थे। अद्भुत अनुशासन प्रियता, अपूर्व संगठन-शक्ति, शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता एवं अनूठी प्रशासनिक क्षमता उनके चरित्र के अनुकरणीय अलंकरण थे। कर्म उनके जीवन का साधन था। संघर्ष को वे जीवन की व्यस्तता समझते थे। गांधीजी के कुशल नेतृत्व में सरदार पटेल का स्वतन्त्रता आन्दोलन में योगदान उत्कृष्ट एवं महत्त्वपूर्ण रहा है। स्वतन्त्रता उपरान्त अदम्य साहस से उन्होंने देश की विभिन्न 562 रियासतों का विलीनीकरण किया तथा भारतीय प्रशासन को निपुणता तथा स्थायित्वता प्रदान किया। उनका जन्म गुजरात के नडियाद (ननिहाल) में 31 अक्टूबर 1875 को हुआ।
सरदार पटेल विदेश में शिक्षा पूरी कर भारत लौट आए और स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान देने लगे। सरदार पटेल ने अपना महत्वपूर्ण योगदान 1917 में खेड़ा किसान सत्याग्रह, 1923 में नागपुर झंडा सत्याग्रह, 1924 में बोरसद सत्याग्रह के उपरांत 1928 में बारडोली सत्याग्रह में देकर अपनी राष्ट्रीय पहचान कायम की। अनेक राष्ट्रहित के फैसलों एवं दृढ़ता के कारण सरदार पटेल का व्यक्तित्व कुछ राजनीतिक दलों एवं नेताओं की नजरों में विवादास्पद रहा है। प्रायः उन्हें ‘असमझौतावादी’’, ‘पूँजी समर्थक’, ‘मुस्लिम विरोधी’, तथा ‘वामपक्ष विरोधी’ कहा जाता है। पटेल की राजनीतिक भूमिका, योगदान तथा चिंतन का सही विश्लेषण किया जाना एवं उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को लेकर पैदा की गयी भ्रान्तियाँ दूर कर पक्षपातों तथा पूर्वाग्रहों से रहित वास्तविक तथ्यों को उजागर किये जाने के प्रयास किये जाने अपेक्षित है। उनके राजनीतिक जीवन से सम्बन्धित उपेक्षित या छिपे हुए महत्त्वपूर्ण तथ्यों को सामने लाकर उसका आलोचनात्मक विश्लेषण किया जाये, ताकि भारत के स्वतंत्रता संग्राम एवं आधुनिक भारत के निर्माण के प्रारंभिक इतिहास का वास्तविक स्वरूप सामने आये।
सरदार पटेल ने कुल 562 रियासतों को जोड़ने का असंभव जैसा कार्य संभव कर दिखाया, कुछ रियासतें स्वतंत्र रहना चाहती थी, जो देश की एकता के लिए खतरा थी। सरदार पटेल ने इन्हें बुलाया और समझाया। वे मानने के लिए तैयार नहीं हुए तो पटेल ने सैन्य शक्ति का इस्तेमाल किया। आज एकता के सूत्र में बंधे भारत के लिए देश सरदार पटेल का ही ऋणी है। कहा जाता है कि एक बार उनसे किसी अंग्रेज ने इस बारे में पूछा तो सरदार पटेल ने कहा- मेरा भारत बिखरने के लिए नहीं बना। निःसंदेह स्वतंत्र भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री व गृहमंत्री सरदार पटेल भारतीय स्वाधीनता संग्राम के अग्रणी योद्धा व भारत सरकार के आधार स्तंभ थे। आजादी से पहले भारत की राजनीति में इनकी दृढ़ता और कार्यकुशलता ने इन्हें स्थापित किया और आजादी के बाद भारतीय राजनीति में उत्पन्न विपरीत परिस्थितियों को देश के अनुकूल बनाने की क्षमताओं ने सरदार पटेल का कद काफी बड़ा कर दिया। निःसंदेह सरदार पटेल द्वारा रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था।
भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। सरदार पटेल ने फरीदकोट के नक्शे पर अपनी लाल पैंसिल घुमाते हुए केवल इतना पूछा कि ‘क्या मर्जी है?’ राजा कांप उठा। आखिर 15 अगस्त 1947 तक केवल तीन रियासतें-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद छोड़कर उस लौह पुरुष ने सभी रियासतों को भारत में मिला दिया। इन तीन रियासतों में भी जूनागढ़ को 9 नवम्बर 1947 को मिला लिया गया तथा जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। 1948 में हैदराबाद भी केवल 4 दिन की पुलिस कार्रवाई द्वारा मिला लिया गया। न कोई बम चला, न कोई क्रांति हुई, जैसा कि डराया जा रहा था। पटेल ने इन्हें एक सूत्र में पिरोया और वह काम कर दिखाया जिसकी उस वक्त कल्पना भी कठिन थी। अटल इरादों और लौह इच्छाशक्ति के कारण ही उन्हें लौह पुुरुष कहा जाता है। महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, ‘रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।’
सरदार पटेल गृहमंत्री के रहते जहां पाकिस्तान की छद्म व चालाकीपूर्ण चालों से सतर्क थे वहीं देश के विघटनकारी तत्वों से भी सावधान करते थे। विशेषकर वे भारत में मुस्लिम लीग तथा कम्युनिस्टों की विभेदकारी तथा रूस के प्रति उनकी भक्ति से सजग थे। अनेक विद्वानों का कथन है कि सरदार पटेल बिस्मार्क की तरह थे। लेकिन लंदन के टाइम्स ने लिखा था ‘बिस्मार्क की सफलताएं पटेल के सामने महत्वहीन रह जाती हैं।’ यदि पटेल के कहने पर चलते तो कश्मीर, चीन, तिब्बत व नेपाल के हालात आज जैसे न होते। पटेल सही मायनों में मनु के शासन की कल्पना थे। उनमें कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता तथा महाराज शिवाजी की दूरदर्शिता थी। वे केवल सरदार ही नहीं बल्कि भारतीयों के हृदय के सरदार थे।
जहां तक कश्मीर रियासत का प्रश्न है इसे पंडित नेहरू ने स्वयं अपने अधिकार में लिया हुआ था, परंतु यह सत्य है कि सरदार पटेल कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर बेहद क्षुब्ध थे। यद्यपि विदेश विभाग पं॰ नेहरू का कार्यक्षेत्र था, परंतु कई बार उप-प्रधानमंत्री होने के नाते कैबिनेट की विदेश विभाग समिति में उनका जाना होता था। उनकी दूरदर्शिता का लाभ यदि उस समय लिया जाता तो अनेक वर्तमान समस्याओं का जन्म न होता। यदि पटेल की बात मानी गई होती तो 1961 तक गोवा की स्वतंत्रता की प्रतीक्षा न करनी पड़ती। गृहमंत्री के रूप में वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) बनाया। अंग्रेजों की सेवा करने वालों में विश्वास भरकर उन्हें राजभक्ति से देशभक्ति की ओर मोड़ा। यदि सरदार पटेल कुछ वर्ष जीवित रहते तो संभवतः नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता। पडौसी देशों एवं कश्मीर की समस्या भी इतनी लम्बी नहीं होती। क्योंकि सरदार पटेल शास्त्रों के नहीं, शस्त्रों के पुजारी थे। पटेल अखण्ड एवं सुदृढ़ भारत का सपना देखते थे।