भारत का न्यूट्रास्युटिकल उद्योग समर्थन देने वाली पहलों के साथ वैश्विक विकास के लिए तैयार है

अनुमान है कि वैश्विक पौष्टिक-औषधीय खाद्य पदार्थ (न्यूट्रास्युटिकल) बाजार वर्तमान में लगभग 400 बिलियन डॉलर का है, जिसमें खाद्य, औषधि और जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र शामिल हैं। भारत एक प्रमुख देश के रूप में उभर कर सामने आया है, जिसे विशेष रूप से आयुर्वेद के साथ पारंपरिक ज्ञान की अपनी समृद्ध विरासत और एक विशिष्ट इकोसिस्टम का समर्थन प्राप्त है, जो इस क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देता है। हालाँकि, भारत की हिस्सेदारी वैश्विक स्तर पर 2% से कम है, जिसका मुख्य कारण भारतीय मंत्रालयों के भीतर उद्योग वर्गीकरण की कमी है, जिससे लक्षित क्षेत्र का समर्थन सीमित हो जाता है।

इस क्षेत्र की अपार संभावनाओं की पहचान करते हुए, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने नवंबर 2021 में भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में एक न्यूट्रास्युटिकल सेक्टर टास्क फोर्स (टीएफ) का गठन किया। इस टास्क फोर्स में वाणिज्य विभाग, औषध विभाग, भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई), आयुष मंत्रालय और खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय सहित विभिन्न मंत्रालयों के प्रतिनिधि शामिल हैं। टास्क फोर्स में उद्योग जगत का भी महत्वपूर्ण प्रतिनिधित्व है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि उद्योग जगत की चिंताओं और चुनौतियों का सीधे समाधान किया जाएगा। टास्क फोर्स के कार्यादेश में चुनौतियों का समाधान करने के लिए नीतिगत उपाय प्रस्तावित करना और “नामकरण की सामंजस्यपूर्ण प्रणाली” और अन्य अंतरराष्ट्रीय मानकों की दिशा में पहल करना शामिल हैं।

भारत के लिए पौष्टिक-औषधीय खाद्य पदार्थ (न्यूट्रास्युटिकल) उद्योग के मुख्य लाभ हैं:

  • स्वास्थ्य विज्ञान, विशेष रूप से आयुर्वेद में एक लंबा इतिहास, जो विशिष्ट पारंपरिक ज्ञान प्रदान करता है।
  • 52 कृषि जलवायु क्षेत्रों की उपस्थिति, जो औषधीय पौधों की खेती के लिए भारत को आदर्श स्थिति प्रदान करती है।
  • विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त कर्क्यूमिन, बेकोपा और अश्वगंधा सहित 1,700 से अधिक औषधीय पौधों का एक मजबूत केंद्र, जो आधुनिक वैज्ञानिक मान्यता की प्रतीक्षा कर रहा है।
  • औषध निर्माण में विशेषज्ञता, जो उच्च गुणवत्ता वाले पौष्टिक-औषधीय (न्यूट्रास्युटिकल) मानकों को प्रभावित करती है।
  • एक तेजी से विकसित होता स्टार्टअप इकोसिस्टम और क्षेत्रीय विकास को प्रोत्साहन देने वाली पौष्टिक-औषधीय खाद्य पदार्थ कंपनियों की बढ़ती संख्या।
  • टीएफ की पहलों से महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, जिसमें शामिल हैं:
  • एचएसएन कोड की शुरूआत: सुव्यवस्थित व्यापार के लिए नामकरण की पहली सामंजस्यपूर्ण प्रणाली का विकास।
  • पीएलआई योजना: पौष्टिक-औषधीय खाद्य पदार्थ (न्यूट्रास्युटिकल) के लिए पहली बार उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना का निर्माण।
  • पौष्टिक-औषधीय खाद्य पदार्थ (न्यूट्रास्युटिकल) उद्योग पैनल: विनियामक और निर्यात सहायता बढ़ाने के लिए शेफेक्सिल (लाह और वन उत्पाद निर्यात संवर्धन परिषद) के तहत एक समर्पित पौष्टिक-औषधीय खाद्य पदार्थ (न्यूट्रास्युटिकल) उद्योग पैनल का गठन।
  • अनुपालन और निर्यात पहल: शेफेक्सिल ने सिफारिश की है कि पौष्टिक-औषधीय खाद्य पदार्थों को एफएसएसएआई के अधिकार क्षेत्र के तहत खाद्य उत्पादों के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, पौष्टिक-औषधीय खाद्य पदार्थ निर्यातकों को अब निर्यात उत्पादों पर शुल्क और करों की छूट (आरओडीटीईपी) योजना में शामिल किया गया है, जो निर्यात लागतों की भरपाई करने और यूरोपीय संघ के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए जैव विविधता अधिनियम 2023 के साथ संरेखित है।

भारत ने न्यूट्रास्युटिकल इनक्यूबेशन हब और उत्कृष्टता केंद्रों के साथ अवसंरचना के समर्थन को भी प्राथमिकता दी है। एनआईएफटीईएम-कुंडली, सेंचुरियन यूनिवर्सिटी और एआईसी-सीएसआईआर-सीसीएमबी ने नवाचार को बढ़ावा देने वाले केंद्र विकसित किए हैं, जबकि केरल सरकार ने 2024 में पहला सरकार समर्थित पौष्टिक-औषधीय खाद्य पदार्थ उत्कृष्टता केंद्र का उद्घाटन किया है।

वाणिज्य विभाग के माध्यम से, भारत ने वैश्विक व्यापार मेलों में पौष्टिक-औषधीय खाद्य पदार्थ क्षेत्र की अपनी ताकत का प्रदर्शन किया है, जिससे इस क्षेत्र में देश की पहचान का विस्तार हुआ है और अंतरराष्ट्रीय हितधारकों के साथ संबंध मजबूत हुए हैं। टास्क फोर्स और केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) के बीच सहयोग निर्यात को सुव्यवस्थित करने और सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को सरल बनाने के लिए एक अद्वितीय एचएसएन कोड की दिशा में काम कर रहा है।

इन रणनीतिक पहलों के साथ, भारत का पौष्टिक-औषधीय खाद्य पदार्थ (न्यूट्रास्युटिकल) क्षेत्र अभूतपूर्व विकास के लिए तैयार है। भारत का लक्ष्य, पौष्टिक-औषधीय खाद्य पदार्थ (न्यूट्रास्युटिकल्स) क्षेत्र में वैश्विक भागीदारी और निवेश को आकर्षित करने के लिए पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़ते हुए खुद को वैश्विक अग्रणी देश के रूप में स्थापित करना है।