रियालिटी शोज के चक्कर में लोग भूल रहे हैं अपनी रियालिटी

विनीता झा
कार्यकारी संपादक

क समय था जब सत्य पर आधारित कहानियां लिखी जाती थी। फिर दौर आया फिल्मों का, जिसमें हमने सत्य पर आधारित कहानियां देखनी शुरू की| फिर तो मानों रियालिटी शोज बनने का चलन ही बन गया| इस रियालिटी शोज ने जहाँ कई लोगों के भविष्य बनाए है, वही युवाओं को लक्ष्य से भटकाया भी है। आज रियालिटी शोज ने लोगों के सामने इतने सारे विकल्प रख दिए हैं कि वे कभी भी, कहीं भी, कुछ भी कर सकते हैं। पिछले कुछ साल दर साल से यही देखने को मिल रहा है कि भारत में दर्शकों की रुचि मनोरंजन चैनलों की तरफ बढ़ती जा रही है। सोनी टी वी, स्टार प्लस, जी टी वी, सब टी वी व अन्य मनोरंजन के चैनल लोगों के प्रिय बनते जा रहे हैं और आखिर हो भी क्यों न? दुनियाभर के नाटक, सीरियल्स तो इन्हीं चैनलों पर प्रसारित किए जाते हैं अब चाहे वे एकता कपूर के कभी न खत्म होने वाले ‘‘सास बहू ’’ नाटक हों या फिर अन्य विषयों पर आधारित सीरियल्स।

पर अब किए गए शोधों से यह साफ पता चलता है कि पिछले कुछ सालों से लोगों का रुझान इन काल्पनिक सीरियलों से हटकर रियालिटी शोज की तरफ बढ़ता चला जा रहा है। खैर, भारत में रियालिटी शोज का इतिहास तो करीब नब्बे से चला आ रहा है जब डी.डी. टी वी पर ‘‘मेरी आवाज सुनो’’ को प्रसारित किया जाता था। तब इक्का दुक्का ही रियालिटी शोज देखने को मिलते थे मगर अब तो पिछले दस तेरह सालों में रियालिटी शोज की भरमार सी लग गई है और सबसे ज्यादा क्रेज पैदा करने वाला रियालिटी शो रहा है स्टार प्लस का ‘‘कौन बनेगा करोड़पति’’ जिसने एक ही झटके में स्टार प्लस की निरंतर गिरती टी आर पी को आसमान पर पहुंचा दिया और ‘‘कौन बनेगा करोड़पति’’ के बाद तो जानकारी के आधार पर या सवाल जवाब के आधार पर पैसा बांटने वाले न जाने कितने रियालिटी शोज शुरू हो गए जैसे ‘‘छप्पर फाड़ के, बाजी किसकी, कमजोर कड़ी कौन’’ कई रियालिटी चल रहे है आदि जो बाद में धीरे-धीरे पिटते चले गए और अगर हिट हो भी तो कैसे? अब यदि एक सीरियल की नकल करके ठीक वैसे ही दस उसके हमशक्ल धारावाहिक प्रसारित किए जाएंगे तो उनके पिटने में कोई दो राय नहीं है।

किंतु हमारे देश का तो चलन यही है कि विदेशों में प्रचलित चलन को देखो,निहारो। वहां पुराने विषयों पर, भिन्न धारणाओं पर गौर करो और चुपके से उसे एक नए चोले में या नए रूप में जनता के सामने पेश कर दो और इतना ही नहीं अगर किसी भी चौनल पर जरा हटके या कुछ नया देखने को मिलता है तो एक महीने के अंदर आपको मालूम चलेगा कि बाकी हर चौनल पर उसी विषय के नए अन्य शोज शुरू हो जाएंगे। ताकि लोगों को कई विकल्प मिल सकें और लोग पूर्ण चुनाव कर सकें कि कौन सा शो कितना ज्यादा कॉपी किया हुआ झलकता है और उदाहरणों की चर्चा की जाए तो सबसे पहला नाम आता है ‘‘सारे गा मा पा’’ जिसकी नकल करके वी चौनल ने पॉपस्टार को प्रसारित किया, फिर जी टी वी ने आयोजन किया ‘‘जी सिनेस्टार्स’’,अब इस भीड़ में भला सोनी चौनल पीछे कैसे रह सकता था कभी ‘‘इंडियन आइडल’’ तो कभी ‘‘फेम गुरूकुल’’आदि है।

और इन सबसे सर्वोपरि है हमारी भारतीय जनता जो इन शोज के पीछे इस कदर दीवानी हो गई है कि आप कहीं भी चले जाइए किसी सरकारी दफ्तर मेें, किसी पार्टी में या किसी स्कूल या कॉलेज में आपको हर जगह इन शोज के ही चर्चे मिलेंगे। लोग इन शोज के दीवाने मिलेंगे। लोग इन शोज से इस कदर भावनात्मक तौर पर जुड़ जाते हैं कि अपनी जिंदगी के मूल मुद्दे भूलकर इन शोज के प्रतिनिधि उन्हें कहीं अधिक प्रिय हो जाते हैं। औरतें,जो अपने प्रिय जोड़ी या प्रतिनिधि के शो के बाहर हो जाने पर ऐसे आंसू बहाती हैं मानो उनकी खुद की बेटी विदा हो रही हो। और हर शो में यह जो वोटिंग सिस्टम लागू कर दिया गया है उससे ये शोज तो अच्छा खासा पैसा व प्रसिद् िकमा लेते हैं लेकिन हमारी प्रिय जनता अपने प्रिय प्रतिनिधि को बचाने के चक्कर में वोट पर वोट करती रहती है। यह सब कुछ ठीक है लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि इन सबका आगे चलकर क्या परिणाम होने वाला है?बच्चे व युवा जो पढ़ते लिखते हैं यदि आप उनसे राष्ट्रीय हित से जुड़ा हुआ कोई सवाल पूछें या देश-विदेश की कोई चर्चा करें तो शायद वे जवाब न दे पाएं लेकिन यदि आप इन शोज या सीरियल से संबंधित कोई भी जानकारी मांगेंगे तो अधिकतर बच्चे आपको जबाव देते हुए मिल जाएंगे। बच्चे शायद अखबार पढना भूल जाएं लेकिन इन सीरियल्स का कोई एपिसोड छोड़ दें, नहीं जी ऐसा तो हो ही नहीं सकता।

जनता आखिर यह समझने को तैयार क्यों नहीं होती कि इन शोज से जुड़े हर प्रतिनिधि या विजेता को तो ढ़ेर सारा पैसा या प्रसिद्वि मिल जाएगी लेकिन उसे क्या मिलेगा? इसलिए रियालिटी शोज को देखने में कोई बुराई नहीं है मगर अत्यधिक भावनात्मक रूप में उनसे जुड़ जाने पर और किसी का नहीं बल्कि हम अपना ही नुकसान कर रहे हैं। उतना ही जुडने की कोशिश करिए कि आप पर या आपके बच्चे पर किसी भी प्रकार का नकारात्मक प्रभाव न पड़े।